उदय दिनमान डेस्कः इस वर्ष का नवरात्रि का ग्रह-संयोग बेहद विशेष है। इस वर्ष मां अश्व पर सवार होकर आ रही हैं। इसके अलावा जिस संयोग में इस बार नवरात्र पड़ रहे हैं, वह अब से बीते 427 साल तक पंचांग में नहीं पड़ा। इस कारण इस नवरात्रि में मां दुर्गा की उपासना करने वालों को अभीष्ट फल प्राप्त होगा।
इस वर्ष नवरात्रि भी 9 की बजाए 10 दिन के पड़ रहे हैं। इसके पहले यह संयोग 1589 में बना था, इसके बाद यह संयोग फिर 450 वर्ष बाद बनेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ये संयोग अद्भुत है…, शुभकारी है…, फलकारी है…, कल्याणकारी है…।
जानकारों का मानना है कि पितृपक्ष का घटना और नवरात्रि के दिनों का बढ़ना बेहद शुभ संकेत होता है। ये शुभ, लाभ तथा आरोग्य प्रदान करता है। सुबह-शाम करें दुर्गा सप्तशती का पाठ…। इन 10 दिनों के नवरात्रि के बारे में बताया गया है कि तृतीया 2 दिन पड़ेगी।
यदि भली प्रकार से मां की आराधना की जाए और पूरे नवरात्रि में सात्विक आचार-विचार का पालन कर रोज मां दुर्गा के सामने दुर्गा सप्तशती का सुबह-शाम पाठ करें तो निश्चित ही उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
प्राचीन शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि पूजन का आरंभ घटस्थापना या कलश स्थापना से माना जाता है। घटस्थापना को आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के पश्चात अथवा अभिजीत मुहूर्त में करना चाहिए। इस मुहूर्त को ज्योतिष शास्त्र में स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है।
सम्पूर्णप्रतिपद्येव चित्रायुक्तायदा भवेत।
वैधृत्यावापियुक्तास्यात्तदामध्यदिनेरावौ।
अभिजितमुहूर्त्त यत्तत्र स्थापनमिष्यते।
अर्थात अभिजीत मुहूर्त में ही कलश स्थापना करना चाहिए। भारतीय ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार नवरात्रि पूजन द्विस्वभाव लग्न में करना श्रेष्ठ होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मिथुन, कन्या, धनु तथा कुंभ राशि द्विस्वभाव राशि है अत: इसी लग्न में पूजा प्रारंभ करनी चाहिए।