हिमालय में बनी 77 झीलें !

नैनीताल: हिमालय श्रृंखला एक व्यापक पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र है, जो ग्लोबल वार्मिंग के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। यह क्षेत्र दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में तेजी से गर्म हो रहा है। ट्रांस हिमालय, जो तिब्बती पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित है, विशेष रूप से हिमालय के बाकी हिस्सों की तुलना में तेज गति से गर्म हो रहा है।

मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, आल्स-एंडीज के साथ ही पृथ्वी के अन्य बर्फ आच्छादित क्षेत्रों के ग्लेशियरों को पिघलने का प्रमुख कारण बन चुके हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण सीमांत पिथौरागढ़ जिले का हिमालय क्षेत्र भी इससे बच नहीं पा रहे है। ग्लोबल वार्निंग व पिथौरागढ़ में अस्थिर मानव जनित विकास हिमालय की संवेदनशीलता को बढ़ा रहा है।

कुमाऊं विवि भूगोल विभाग डीएसबी परिसर के डॉ. देवेंद्र सिंह परिहार के पिथौरागढ़ जिले में गोरी गंगा क्षेत्र के ग्लेशियरों का व्यापक अध्ययन किया। 2017 से 2022 तक किए अध्ययन में उन्होंने बताया कि ग्लेशियर पिघलने से वहां 77 झीलें बन गई हैं। ग्लेशियरों के पिघलने व हिमखंड टूटकर बिखरने वजह मानवीय गतिविधियां मुख्य हैं।

उच्च हिमालयी क्षेत्र में बढ़ता परिवहन, वनों की कटाई, बड़ी मात्रा में जीवाश्म ईधन का जलना, जंगलों व बुग्यालों में तीव्रता से बढ़ती आगजनी के घटनाएं, ग्लेशियरों के आस-पास बड़ी संख्या में मानवीय हस्तक्षेप, अन्य मानव गतिविधियों के बीच कार्बन डाइ ऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की वायुमंडलीय साद्रता, ग्रह को गर्म करती है और ग्लेशियरों को पिघलाती है।

वन क्षरण और जैव विविधता की हानि जलवायु परिवर्तन और आधुनिक कृषि विस्तार दोनों के साथ-साथ अन्य मानवजनित दबाव भी ग्लेशियरों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। डा. परिहार के अनुसार हिमनद का पीछे हटना, हिमनद झील का अधिक विस्तार और विस्फोट, तेजी से बर्फ पिघलना, वर्षा, सूखा और मरुस्थलीकरण, मौसम व वर्षा चक्र में बदलाव, फलदार पौधों में समय से पहले फूल-फल आना हिमालय के गर्म होने का संकेत है।

हिमालयी क्षेत्र में वायुमंडलीय गर्मी के कारण हिमनद पीछे हटते है, झीलें बनती है। कई बार हिमालयी क्षेत्र में हिमखंड टूटकर इन झीलों में गिरते है,इससे बाढ़ की संभावना बढ़ती जा रही है, जो ना केवल एक पर्यावरणीय खतरा है बल्कि प्रभावित आबादी के लिए सामाजिक और आर्थिक कठिनाई का कारण भी हैं।

ग्लोबल वार्निंग के कारण घास के मैदानों और जंगलों का विस्तार कम हो रहा है, जिसका जैव विविधता संरक्षण पर प्रभाव पड़ रहा है, यह परिवर्तन महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को प्रभावित करते हैं।

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