कपूर कचरी की खेती और संरक्षण 

कपूर कचरी के संरक्षण का प्रयोग सामाजिक संस्था आगाज द्वारा पीपलकोटी में किया गया 

देहरादूनःउत्तराखंड हिमालय अनेकों जड़ी बूटियों और वनस्पतियों के लिए जग प्रसिध्द है ! इनमे से ही एक बहुमूल्य कंद वाली जड़ी बूटी है – कपूर कचरी यानी जिंजर लिली जिसका वानस्पतिक नाम है – Hedychium spicatum . उत्तराखंड में इसको – स्येडू, सैडू भी कहते हैं वानस्पतिक नाम – Hedychium हैं और आम बोल चाल की भाषा में जिंजर लिल्ली ( Ginger lilly) कहते हैं ! इसका कुल नाम जिन्जिबेरेसी है !

चमोली जनपद के गांवों में शादियों के मंगल स्नान में कपूर कचरी के और सुगंधबाला के के कंद और जड़ों को हल्दी आदि के साथ पीस कर दूल्हा दुल्हन के स्नान सामग्री में इसका उपयोग किया जाता है ! पीपलकोटी चमोली में समुद्र तल से 1300 मीटर की उंचाई पर कपूर कचरी की सफल खेती के प्रयोग उत्तराखंड महिला एवं बाल विकास परियोजना और डाबर इंडिया के सहयोग से सफल हुए हैं.

वैसे ये एक प्रकार से जंगली जिंजर लिली मानी जाती है लेकिन भोजन में इसका प्रयोग वर्जित है जबकि आयुर्वेद में इसके अनेकों प्रयोग किये जाते हैं ! सामान्यतः कपूर कचरी घने बांज बुरांश के जंगलों में समुद्र तल से 1500 मीटर से अधिक और 2400 मीटर से नीचे प्राकृतिक रूप से उगती है !

कपूर कचरी का आयुर्वेद में प्रयोग – सबसे पहले जिंजर लिली या कपूर कचरी के कंद के चिप्स बन लिए जाते हैं फिर उनको छाया और ड्रायर में सुखा लिया जाता है ! सूखे हुए चिप्स से पाउडर बना कर – उससे एंटीसेप्टिक क्रीम या दवाई बनाई जाती है. ऐसा भी पता चला है की, बोरोप्लस क्रीम में भी कपूर कचरी का प्रयोग किया जाता है!

जंगली जानवरों से फसल सुरक्षा – पहाड़ में अगर खेती वाली भूमि के चारों और कपूर कचरी की बाढ़ कर दी जाए तो इसकी गंध से जंगली सूअर खेती को नुक्सान नहीं पहुंचा पाते हैं साथ ही इसके सूखे चिप्स को जलाने से मच्छर भी निकट नहीं आते हैं !

कैसे उगायें कपूर कचरी – कपूर कचरी की खेती भी अदरक और हल्दी की तरह राइजोम या कंद से की जाती है, इसके कंदों का रोपण फ़रवरी मार्च में किया जाता है ! इसके कंदों की बुवाई लाईनों में की जाती है ! इसके लिए खूब भुर भूरी गोबर वाली मिटटी अच्छी मानी जाती है ! इसके कंद कई वर्षों तक बार बार उगाये जा सकते हैं !

खेती से लाभ – एक नाली भूमि में 40-50 किलो कंद बोकर एक वर्ष में 150 किलो तक कंद पैदा किया जा सकत है ! वर्तमान में कपूर कचरी के सुखाये गए कंद का बाजार मूल्य 150 रुपये किलो तक है ! एक नाली भूमि से प्रति वर्ष 5000-8000 रुपये तक की आमदनी की जा सकती है!

( जे पी मैठाणी )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *