नई दिल्ली। भारत ने ‘जापद 2025’ अपने सैनिक भेजे हैं, जो रूस और बेलारूस के साथ युद्धाभ्यास में शामिल हुए। ये निर्णय ऐसे समय में लिया गया, जब नाटो अपने दरवाजे पर युद्धाभ्यास को लेकर चिंतित है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया के मुताबिक, सैन्य विश्लेषकों का मानना है कि यह युद्धाभ्यास यूरोप को डराने के लिए किए जा रहे हैं।
‘जापद 2025’ में भारत का शामिल होना भारत और रूस के दीर्घकालिक संबंधों को और गहरा करने के रूप में देखा जा रहा है। यह दोनों सेनाओं के बीच सहयोग को भी मजबूत करता है, जो महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत के अधिकांश सशस्त्र बल अभी भी रूसी-निर्मित हार्डवेयर का उपयोग करते हैं। रक्षा क्षेत्र में सरकार का ‘आत्मनिर्भर भारत’ उस निर्भरता को कम करने की एक योजना है।
नाटो की बेचैनी यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख, काजा कल्लास की टिप्पणियों में झलकती है, जिन्होंने कहा कि भारत के साथ साझेदारी उस व्यापार समझौते से कहीं आगे तक फैली हुई है जिस पर दोनों के हस्ताक्षर होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, “यह नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा करने और सैन्य अभ्यासों में भाग लेने, तेल खरीदने के बारे में है। ये हमारे सहयोग में बाधाएं हैं।”
हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि भारत, जिसने रूस से तेल खरीदकर अरबों डॉलर बचाए हैं, इस संबंध से “पूरी तरह अलग” नहीं होगा, और ब्रुसेल्स और दिल्ली को अपने मुद्दों पर बातचीत करने की जरूरत है।इस बीच, अमेरिका ने पुष्टि की है कि उसने इन युद्धाभ्यासों का निरीक्षण करने के लिए सैन्य प्रतिनिधि भेजे थे, जो तीन साल पहले मॉस्को द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से पहला ऐसा रूसी-बेलारूसी अभ्यास था।
जापद युद्धाभ्यास में भारत की मौजूदगी पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के साथ संबंधों को, कम से कम फिलहाल, एक अस्पष्ट क्षेत्र में डाल देती है। अमेरिका ने टैरिफ के जरिए भारत सरकार पर दबाव डालने की कोशिश की है।भारत ने अपना रुख कड़ा रखा है, अमेरिका के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने से इनकार कर दिया है। एक्सपर्ट की मानें तो भारत सरकार ने वास्तव में अमेरिका और डोनाल्ड ट्रम्प के मुद्दे को काफी अच्छी तरह से संभाला है, मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखे हैं और द्विपक्षीय व्यापार वार्ता को जारी रखा है। साथ ही अपनी सीमाओं का भी ध्यान रखा है।