नई दिल्ली: भारत, चीन को एक नई टेंशन देने की तैयारी में है। दरअसल लद्दाख के चांगथंग और काराकोरम अभयारण्यों के नक्शे में बड़े बदलाव का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास अंतिम मंजूरी के लिए पहुंच गया है। ये इलाके रक्षा, अनोखी जैव विविधता और स्थानीय आर्थिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। लद्दाख राज्य वन्यजीव बोर्ड ने 19 सितंबर को हुई बैठक में यह प्रस्ताव रखा था।
इसके तहत, काराकोरम वन्यजीव अभयारण्य का नया क्षेत्रफल 16,550 वर्ग किलोमीटर और चांगथंग का 9,695 वर्ग किलोमीटर होगा। यह 1987 में तय किए गए लगभग 5,000 वर्ग किलोमीटर और 4,000 वर्ग किलोमीटर के मुकाबले काफी ज्यादा है। हालांकि, इस नए नक्शे में काराकोरम (नुब्रा-श्योक) वन्यजीव अभयारण्य से 1,742 वर्ग किलोमीटर और चांगथंग के ऊंचाई वाले ठंडे रेगिस्तान वन्यजीव अभयारण्य से 164 वर्ग किलोमीटर का इलाका बाहर रखा जाएगा।
इस ‘सुधार’ का प्रस्ताव वन्यजीव संस्थान भारत (WII) की विस्तृत जांच और स्थानीय लोगों और प्रशासन के साथ बातचीत के बाद आया है। WII ने दोनों संरक्षित इलाकों में ‘उच्च संरक्षण मूल्य वाले क्षेत्र’ की पहचान की है। इन क्षेत्रों को सबसे ज्यादा सुरक्षा और गतिविधियों पर काफी पाबंदियों की जरूरत है। काराकोरम अभयारण्य में 10 और चांगथंग में 17 ऐसे क्षेत्र पहचाने गए हैं। काराकोरम में वन्यजीवों के आने-जाने के लिए 9 वर्ग किलोमीटर के गलियारे भी बनाए गए हैं।
खास बात यह है कि जिन इलाकों को अभयारण्यों से बाहर रखा जा रहा है, उनमें दोनों अभयारण्यों के 67 और 45 गांव शामिल हैं। इन इलाकों को खोलने से हिमालयी क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों और पर्यटन की संभावनाओं को बढ़ावा मिलेगा। 19 सितंबर को हुई लद्दाख राज्य वन्यजीव बोर्ड की 13वीं बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि बड़े व्यावसायिक उद्यमों के बजाय अभयारण्यों के अंदर रहने वाले लोगों की मदद पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
लेह लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल के मुख्य कार्यकारी पार्षद, ताशी ग्याल्सन ने बताया कि इन दूरदराज के इलाकों में बिजली, पीने के पानी और सड़क जैसी जरूरी सुविधाओं की कमी लोगों को वहां रहने से हतोत्साहित कर रही है।
इससे सीमावर्ती गांवों की ‘जनसंख्या में कमी’ चिंता का विषय बन रही है। ग्याल्सन ने यह भी कहा कि सीमावर्ती इलाकों में ग्रामीणों की मौजूदगी ‘निगरानी बनाए रखने और हमारी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है’। यह एक अहम चिंता है, क्योंकि ये दोनों अभयारण्य भारत के रणनीतिक हितों के लिए बहुत मायने रखते हैं।
लद्दाख के मुख्य सचिव पवन कोटवाल ने बैठक में बताया कि अभयारण्यों के अंदर रहने वाले कई लोग अपनी आजीविका के लिए पर्यटन पर बहुत निर्भर थे। लेकिन, वन्यजीव अधिनियम के कारण वे होमस्टे और गेस्ट हाउस जैसे छोटे पर्यटन-संबंधी बुनियादी ढांचे भी विकसित नहीं कर पा रहे थे। अनुमति लेने की प्रक्रिया अक्सर ‘लंबी और समय लेने वाली’ होती थी, जो लोगों के लिए एक बाधा थी।

