सांसों पर संकट

नई दिल्लीः सांसों का संकट फिर से लौटने के बाद केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य दिशानिर्देश जारी किए। केंद्र ने वायु प्रदूषण के चलते बच्चे, गर्भवती महिलाएं व बुजुर्गों को उच्च जोखिम की श्रेणी में रखते हुए प्रदूषित क्षेत्रों के प्रत्येक सरकारी अस्पताल में चेस्ट क्लिनिक शुरू करने का आदेश जारी किया। राज्यों से त्वरित कार्रवाई के निर्देश देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने उत्तर भारत के सभी राज्यों को 33 पन्नों के दिशा-निर्देश जारी किए।

इसमें स्वास्थ्य तंत्र को अलर्ट करते हुए कहा है कि प्रदूषण से होने वाले श्वसन और हृदय रोगों के मामलों में बढ़ोतरी होती है। इसलिए अस्पतालों को विशेष तैयारी रखनी चाहिए। केंद्रीय सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने मुख्य सचिवों को लिखे पत्र में कहा है कि वायु गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है जो जन स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती बन चुकी है। हमें मिलकर एक स्वस्थ व स्वच्छ वातावरण बनाने की दिशा में काम करना होगा।

चेस्ट क्लिनिक में प्रदूषण से प्रभावित रोगियों को किस तरह रिपोर्ट करना है और उनकी परेशानी का प्रबंधन कैसे करना है? इसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिशानिर्देश में एक फॉर्मेट भी साझा किया है, जिसे प्रतिदिन अस्पताल से जिला और फिर वहां से दिल्ली तक भेजना अनिवार्य है।

केंद्र ने राज्यों से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई करने के साथ साथ निर्माण स्थलों पर भी ध्यान देने के लिए कहा है। केंद्र ने कहा है कि इन स्थलों पर धूल नियंत्रण के लिए पानी का छिड़काव, सामग्री को ढक कर रखना और मजदूरों को किट और मास्क उपलब्ध कराना अनिवार्य है। निर्माण कार्य में लगे श्रमिकों की नियमित स्वास्थ्य जांच और प्रशिक्षण भी अनिवार्य है।

केंद्रीय सचिव ने पत्र में राज्यों से कहा है कि वे अपने राज्य और जिला टास्क फोर्स को तत्काल सक्रिय करते हुए पर्यावरण, परिवहन, नगर विकास, महिला एवं बाल विकास और श्रम विभागों के साथ समन्वय बढ़ाएं। साथ ही दिल्ली-एनसीआर में पहले से लागू ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) का सख्ती से पालन कराएं। मंत्रालय ने कहा है कि वायु प्रदूषण सिर्फ सांस की बीमारी नहीं, बल्कि दिल, दिमाग और तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित करता है।

सुबह और देर शाम बाहर घूमने, दौड़ने, सैर व शारीरिक व्यायाम से बचें। सुबह और देर शाम के समय बाहरी दरवाजे और खिड़कियां ना खोलें।

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