सिंगापुर में लगी आग में फंसे बच्चों के लिए देवदूत बने 18 भारतीय

सिंगापुर:सिंगापुर में बीते सप्ताह लगी आग में फंसे बच्चों और लोगों को 18 भारतीयों ने देवदूत बनकर बचाया। भारतीय श्रमिकों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए बच्चों को सुरक्षित आग से बाहर निकाला। सिंगापुर सरकार के सिंगापुर नागरिक सुरक्षा बल (एससीडीएफ) ने सभी भारतीयों को सामुदायिक जीवनरक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया है।

आठ अप्रैल की सुबह भारतीयों ने पास की इमारत से बच्चों की चीखें सुनीं और धुआं निकलते देखा, तो वे तुरंत हरकत में आ गए। उन्होंने अपने निर्माण स्थल से मचान और सीढ़ी उठाई और सामने की इमारत में फंसे बच्चों को बचाने पहुंच गए। यह शॉपहाउस बच्चों के लिए कुकिंग कैंप चलाता है। आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण का सात वर्षीय बेटा भी आग में फंसा था।

एससीडीएफ अग्निशमन दल के पहुंचने से पहले 18 लोगों ने छह से 10 वर्ष की आयु के बच्चों और 23 से 55 वर्ष की आयु के छह वयस्कों को बचाया और उनकी देखभाल की। आग से बचाई गई 10 वर्षीय ऑस्ट्रेलियाई लड़की की बाद में एक अस्पताल में मौत हो गई थी।

एससीडीएफ डिवीजन के कमांडर कर्नल ताई जी वेई ने कहा कि सभी आग की घटनाओं के लिए समय महत्वपूर्ण है। इसलिए, हम वास्तव में जनता के सदस्यों को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने उस दिन एससीडीएफ के आने से पहले ही प्रतिक्रिया दी। उनकी बहादुरी, उनकी त्वरित कार्रवाई और उनके सामूहिक कार्य ने वास्तव में उस दिन लोगों की जान बचाई।

बच्चों को बचाने वालों में चिन्नाप्पा कन्नदासन, हसन इमामुल, शकील मोहम्मद, दास तपोश, हसन राजीब, रवि कुमार, वरुवेल क्रिस्टोफर, गोविंदराज एलंगेश्वरन, मुथुकुमार मुगेश, इंद्रजीत सिंह, सिवासामी विजयराज, नागराजन अनबरसन, सुब्रमण्यम सरनराज, इस्लाम शफीकुल, सुब्रमण्यम रमेशकुमार, बेन्सन लो, शेख अमीरुद्दीन बिन कमालुद्दीन और डॉ. लौरा बिफिन शामिल हैं।

बच्चों को बचाने में मदद करने वाले निजी-किराए के ड्राइवर बेन्सन लो ने कहा कि इमारत के किनारे पर मौजूद बच्चे कांप रहे थे और किनारे से कूदना चाहते थे। भारतीयों श्रमिकों ने उन्हें रुकने के लिए चिल्लाया। निर्माण श्रमिक शकील मोहम्मद, 35, साथी निर्माण श्रमिकों हसन इमामुल, 20, और चिन्नाप्पा कन्नदासन, 32 के साथ सबसे आगे थे। उन्होंने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए मानव श्रृंखला बनाई।

शकील ने कहा कि पहले हमने इमारत की तीसरी मंजिल पर जाने की कोशिश की, लेकिन दूसरी मंजिल पर लगी आग को पार नहीं कर सका और मदद के लिए बाहर गया। इमारत से कोई बचने का रास्ता नहीं था। मैंने एक बच्चे को किनारे से कूदने की कोशिश करते देखा। मैंने उसे कहा मत कूदो। मैं तुम्हारी मदद करूंगा।

भारतीय निर्माण श्रमिक रवि कुमार ने कहा कि वह अपनी छोटी बहन के बारे में सोच रहा था जो लगभग उन्हीं की उम्र की है और उसे डर लगने लगा। मैंने जान बचाई और आज भी मुझे इसका अहसास होता है। जब मैं काम कर रहा होता हूं या खा रहा होता हूं, तब भी मैं उसके बारे में सोचता रहता हूं और बहुत दुखी होता हूं।

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