72 मिनट में 5 अरब लोगों की होगी मौत !

उदय दिनमान डेस्कः अगर तीसरे विश्व युद्ध के हालात बने और न्यूक्लियर वॉर हुई तो सिर्फ 72 मिनट में पांच अरब लोगों की जान चली जाएगी. न्यूक्लियर वॉर के प्रभाव सिर्फ विस्फोट तक नहीं होंगे, बल्कि इतने विनाशकारी हालात पैदा हो जाएंगे, जिससे लोगों की जानें जाएंगी. पूरी दुनिया बर्फ की चादर से ढक जाएगी, सूरज की रोशनी भी जानलेवा बन जाएगी और ओजोन लेकर बर्बाद हो जाएगी.

न्यूक्लियर वॉर की एक्सपर्ट और इनवेस्टेगेटिव जर्नलिस्ट एनी जैकबसन ने बताया है कि परमाणु युद्ध के बाद पूरी दुनिया में ऐसी विनाशकारी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है. पूरी दुनिया बर्फ की चादर से ढ़क जाएगी, फसलें खराब हो जाएंगी और तापमाान इतना गिर जाएगा कि इंसान बर्दाश्त नहीं कर पाएगा. फिर भी दो देश ऐसे होंगे जिन पर इस भयंकर स्थिति का कोई असर नहीं पड़ेगा.

एनी जैकबसन साल 2016 में पुलित्जर की फाइनलिस्ट थीं. अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन की रिसर्च एजेंसी DARPA पर किए गए उनके खोजी कार्य के लिए वह फाइनलिस्ट थीं. एनी जैकबसन ने ‘डायरी ऑफ ए सीईओ’ पॉडकास्ट में कहा कि साल 1959-60 के दौरान न्यूक्लियर फिजिस्ट और पेंटागन के पूर्व साइंटिस्ट ने परमाणु युद्ध को लेकर जो एनालिसिस किए थे, वे तब भी सही थे और आज भी.

एनी जैकबसन ने कहा कि न्यूक्लिर वॉर का प्रभाव सिर्फ विस्फोट तक नहीं होगा, बल्कि उसके बाद ऐसी विनाशकारी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें लोगों के लिए जिंदा रहना बहुत मुश्किल होगा. उन्होंने एटमोस्फेरिक साइंस के एक्सपर्ट प्रोफेसर ब्रायन टून की रिसर्च का भी हवाला दिया है, जिन्होंने चेतावनी दी थी कि वैश्विक जलवायु को विनाशकारी क्षति होगी.

एनी जैकबसन ने कहा कि न्यूक्लियर वॉर के बाद पूरी दुनिया बर्फ की चादर से ढक जाएगी, खासतौर पर वो देश जो मध्य अक्षांश पर हैं. फसलें बर्बाद हो जाएंगी और जब फसलें नहीं होंगी तो इंसान कैसे जिंदा रहेगा. उन्होंने कहा, ‘सूरज की रोशनी जानलेवा हो जाएगी.

ओजोन लेयर इतनी बर्बाद हो चुकी होगी कि इंसान सूरज की रोशनी में बाहर भी नहीं निकल पाएगा. रेडिएशन जहरीली हो जाएंगी. लोगों को अंडरग्राउंड रहना पड़ेगा और एक-एक दाने के लिए लोग एक-दूसरे से लड़ रहे होंगे. फिर भी सिर्फ दो देश होंगे जहां ऐसा हाहाकार नहीं मचा होगा और वो हैं न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया.’

प्रोफेसर ब्रायन टून ने भी बताया था कि सिर्फ ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ही न्यूक्लियर वॉर की वजह से उत्पन्न ठंडक से बच पाएंगे. उन्होंने कहा कि इन देशों की भौगोलिक स्थिति और स्थिर जलवायु इन्हें बचाएंगे और ये खाद्य उत्पादन प्रणाली को संरक्षित कर सकेंगे.

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