28 अक्टूबर को अहोई अष्टमी का व्रत

बृहस्पतिवार और पुष्य नक्षत्र होने से बन रहा है अद्भुत संयोग
उदय दिनमान डेस्कःइस वर्ष संतान की लंबी आयु और प्रगति के लिए रखा जाने वाला अहोई अष्टमी का व्रत 28 अक्टूबर को रखना शास्त्र सम्मत है बृहस्पतिवार और पुष्य नक्षत्र होने से व्रत की महत्ता कई गुना बढ़ गई है.

उत्तराखंड ज्योतिष रत्न आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल बताते हैं कि यद्यपि 28 अक्टूबर को प्रातः काल से सप्तमी तिथि है जो दोपहर 12:49 तक रहेगी उसके बाद अष्टमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी निर्णय सिंधु के अनुसार शुक्ल पक्ष में अष्टमी का व्रत नवमी युक्त तथा कृष्ण पक्ष में सप्तमी युक्त लिया जाता है और अहोई अष्टमी का संबंध विशेष रुप से तारों से है जिस स्थिति में तारे उदय हो रहे हो उसी तिथि को व्रत होता है और उस दिन अष्टमी तिथि में तारों का उदय हो रहा है इसलिए व्रत 28 तारीख को ही रखा जाएगा.

ज्योतिष में अंतरराष्ट्रीय हस्ताक्षर आचार्य चंडी प्रसाद घिल्डियाल विश्लेषण करते हुए बताते हैं की अष्टमी तिथि 29 तारीख को दोपहर 2:11 तक रहेगी 28 तारीख को सुबह से पुनर्वसु नक्षत्र 9:39 तक है उसके बाद ज्योतिष शास्त्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण पुष्य नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा जो 29 तारीख को प्रातः 11:38 तक रहेगा बृहस्पतिवार भी और पुष्य नक्षत्र भी एक साथ होना बहुत बड़ा संयोग है इसलिए मातृशक्ति को चाहिए कि 28 तारीख को प्रातः काल स्नान कर माता पार्वती और भगवान शिव सहित पूरे शिव परिवार का पूजन करें सायंकाल तारों को दूध फूल का अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारायण करें.

मुख्यमंत्री द्वारा ज्योतिष रत्न ज्योतिष विभूषण और ज्योतिष वैज्ञानिक संस्कृत गौरव जैसे सम्मान से सम्मानित डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल का कहना है कि जिन स्त्रियों को विवाह के कुछ वर्ष बाद भी संतान की प्राप्ति अभी तक नहीं हुई है वह भी इस दिन श्रद्धा से यदि व्रत रखें तो उन्हें भी संतान की प्राप्ति होगी और जिनकी संतान है उनकी संतान को दीर्घायु एवं सर्वत्र यशऔर सम्मान की प्राप्ति इस व्रत से होती है आचार्य ने यह भी बताया कि इस व्रत में कोई विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है सामान्य रूप से निराहार रहकर देवी का ध्यान करते हुए व्रत रखने से ही फल की प्राप्ति हो जाती है.

एक नगर में एक साहूकार रहा करता था, उसके सात लडके थे, सात बहुएँ तथा एक पुत्री थी। दीपावली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातों बहुएँ अपनी इकलौती नंद के साथ जंगल में मिट्टी लेने गई। जहाँ से वे मिट्टी खोद रही थी। वही पर स्याऊ–सेहे की मांद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ सेही का बच्चा मर गया।

तब ननंद अपनी सातों भाभियों से बोली कि तुम में से कोई मेरे बदले अपनी कोख़ बंधा लो सभी भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इंकार कर दिया परंतु छोटी भाभी सोचने लगी, यदि मैं कोख न बँधाऊगी तो सासू जी नाराज होंगी। ऐसा विचार कर ननंद के बदले छोटी भाभी ने अपने को बंधा ली। उसके बाद जब उसे जो बच्चा होता वह सात दिन बाद मर जाता।एक दिन साहूकार की स्त्री ने पंडित जी को बुलाकर पूछा की, क्या बात है मेरी इस बहु की संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है?

तब पंडित जी ने बहू से कहा कि तुम काली गाय की पूजा किया करो। काली गाय स्याऊ माता की भायली है, वह तेरी कोख छोड़े तो तेरा बच्चा जियेगा।इसके बाद से वह बहु प्रातःकाल उठ कर चुपचाप काली गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती।

एक दिन गौ माता बोली– कि आज कल कौन मेरी सेवा कर रहा है, सो आज देखूंगी। गौमाता खूब तड़के जागी तो क्या देखती है कि साहूकार की के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है।गौ माता उससे बोली कि तुझे किस चीज की इच्छा है जो तू मेरी इतनी सेवा कर रही है ?मांग क्या चीज मांगती है? तब साहूकार की बहू बोली की स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उन्होंने मेरी कोख बांध रखी है, उनके मेरी को खुलवा दो।

गौमाता ने कहा,– अच्छा तब गौ माता सात समुंदर पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली। रस्ते में कड़ी धूप थी, इसलिए दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर में एक साँप आया और उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी के बच्चे थे उनको मारने लगा। तब साहूकार की बहू ने सांप को मार कर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चों को बचा लिया। थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई तो वहां खून पड़ा देखकर साहूकार की बहू को चोंच मारने लगी।

तब साहूकारनी बोली– कि, मैंने तेरे बच्चे को मारा नहीं है बल्कि साँप तेरे बच्चे को डसने आया था। मैंने तो तेरे बच्चों की रक्षा की है।यह सुनकर गरुड़ पंखनी खुश होकर बोली की मांग, तू क्या मांगती है?वह बोली, सात समुंदर पार स्याऊमाता रहती है। मुझे तू उसके पास पहुंचा दें। तब गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठा कर स्याऊ माता के पास पहुंचा दिया।

स्याऊ माता उन्हें देखकर बोली की आ बहन बहुत दिनों बाद आई। फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूं पड़ गई है। तब सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने सिलाई से उसकी जुएँ निकाल दी। इस पर स्याऊ माता प्रसन्न होकर बोली कि तेरे सात बेटे और सात बहुएँ हो।सहुकारनी बोली– कि मेरा तो एक भी बेटा नहीं, सात कहाँ से होंगे ?स्याऊ माता बोली– वचन दिया वचन से फिरूँ तो धोबी के कुंड पर कंकरी होऊँ।तब साहूकार की बहू बोली माता बोली कि मेरी कोख तो तुम्हारे पास बन्द पड़ी है ।

यह सुनकर स्याऊ माता बोली तूने तो मुझे ठग लिया, मैं तेरी कोख खोलती तो नहीं परंतु अब खोलनी पड़ेगी। जा, तेरे घर में तेरे घर में तुझे सात बेटे और सात बहुएँ मिलेंगी। तू जा कर उजमान करना। सात अहोई बनाकर सात कड़ाई करना। वह घर लौट कर आई तो देखा सात बेटे और सात बहुएँ बैठी हैं । वह खुश हो गई। उसने सात अहोई बनाई, सात उजमान किये, सात कड़ाई की। दिवाली के दिन जेठानियाँ आपस में कहने लगी कि जल्दी जल्दी पूजा कर लो, कहीं छोटी बहू बच्चों को याद करके रोने न लगे।

थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा–अपनी चाची के घर जाकर देख आओ की वह अभी तक रोई क्यों नहीं?बच्चों ने देखा और वापस जाकर कहा कि चाची तो कुछ मांड रही है, खूब उजमान हो रहा है। यह सुनते ही जेठानीयाँ दौड़ी-दौड़ी उसके घर गई और जाकर पूछने लगी कि तुमने कोख कैसे छुड़ाई?

वह बोली तुमने तो कोख बंधाई नही मैंने बंधा ली अब स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी को खोल दी है। स्याऊ माता ने जिस प्रकार उस साहूकार की बहू की कोख खोली उसी प्रकार हमारी भी खोलियो, सबकी खोलियो। कहने वाले की तथा हुंकार भरने वाले तथा परिवार की कोख खोलिए।।

व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके संकल्प करें कि संतान की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें। अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए माता पार्वती की पूजा करें।

अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवाल पर अहोई माता का चित्र बनायें और साथ ही स्याहु और उसके सात संतानो का चित्र बनायें। उनके सामने अनाज मुख्य रूप से चावल ढीरी (कटोरी), मूली, सिंघाड़े रखते हैं और सुबह दिया रखकर कहानी कही जाती है। कहानी कहते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी/ सूट के दुप्पटे में बाँध लेते हैं। सुबह पूजा करते समय जि गर (लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं।

यह करवा, करवा चौथ में इस्तेमाल हुआ होना चाहिए। इस करवे का पानी दिवाली के दिन पूरे घर में छिड़का जाता है। संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें। | पके खाने में चौदह पूरी और आठ पूयों का भोग अहोई माता को लगाया जाता है। उस दिन बयाना निकाला जाता है – बायने मैं चौदह पूरी या मठरी या काजू होते हैं। लोटे का पानी शाम को चावल के साथ तारों को आर्ध किया जाता है। शाम को माता के सामने दिया जलाते हैं और पूजा का सारा सामान (पूरी, मूली, सिंघाड़े, पूए, चावल और पका खाना) पंडित जी या घर के बडो को दिया जाता है।

अहोई माता का कैलंडर दिवाली तक लगा रहना चाहिए। अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं।

अगर घर में कोई नया मेम्बर आता है, तो उसके नाम का अहोई माता का कैलंडर उस साल लगाना चाहिए। यह कैलंडर, जहाँ हमेशा का अहोई माता का कैलेंडर लगाया जाता है, उसके लेफ्ट में लगते हैं। जब बच्चा होता है, उसी साल कुण्डवारा भरा जाता है। कुण्डवारे में चौदह कटोरियाँ/ सर्रियाँ, एक लोटा, एक जोड़ी कपडे, एक रुमाल रखते हैं। हर कटोरी में चार बादाम और एक छुवारा (टोटल पांच) रखते हैं और लोटे में पांच बादाम, दो छुवारे और रुमाल रखकर पूजा करते हैं। यह सारा सामान ननद को जाता है।

आचार्य का परिचय
नाम-आचार्य डॉक्टर चंडी प्रसाद घिल्डियाल
पब्लिक सर्विस कमीशन उत्तराखंड से चयनित प्रवक्ता संस्कृत।
निवास स्थान- 56 / 1 धर्मपुर देहरादून, उत्तराखंड। कैंप कार्यालय मकान नंबर सी 800 आईडीपीएल कॉलोनी वीरभद्र ऋषिकेश
मोबाइल नंबर-9411153845
उपलब्धियां
वर्ष 2015 में शिक्षा विभाग में प्रथम गवर्नर अवार्ड से सम्मानित वर्ष 2016 में लगातार सटीक भविष्यवाणियां करने पर उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत सरकार ने दी उत्तराखंड ज्योतिष रत्न की मानद उपाधि। त्रिवेंद्र सरकार ने दिया ज्योतिष विभूषण सम्मान। वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा की सबसे पहले भविष्यवाणी की थी। इसलिए 2015 से 2018 तक लगातार एक्सीलेंस अवार्ड प्राप्त हुआ शिक्षा एवं ज्योतिष क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए 5 सितंबर 2020 को प्रथम वर्चुअल टीचर्स राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त किया। मंत्रों की ध्वनि को यंत्रों में परिवर्तित कर लोगों की समस्त समस्याओं का हल करने की वजह से वर्ष 2019 में अमर उजाला की ओर से आयोजित ज्योतिष महासम्मेलन में ग्राफिक एरा में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिया ज्योतिष वैज्ञानिक सम्मान।

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