बांग्लादेश फिर से बना पूर्वी पाकिस्तान !

ढाका: सोमवार को शेख हसीना को फांसी की सजा दिए जाने के बाद मोहम्मद यूनुस के कट्टरपंथी शासन ने साफ कर दिया है कि बांग्लादेश की आजादी की वैचारिक बुनियाद को ध्वस्त कर दिया गया है। मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश की पहचान, उसकी 1971 की मुक्ति संग्राम से उपजी राष्ट्रवाद की धारा और धर्मनिरपेक्ष ढांचे को तहस नहस कर दिया है। अगस्त 2024 में जब प्रदर्शन शुरु हुआ था, उस वक्त बांग्लादेश के निर्माण के लिए सालों तक संघर्ष करने वाले और बाद में अपनी जान देने वाले शेख मुजीबुर रहमान की मुर्तियों को ढाह दिया गया था। अल्पसंख्यकों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया था।

लेकिन अब शेख हसीना को फांसी की सजा देकर मोहम्मद यूनुस ने साबित कर दिया है कि उनका मकसद दरअसल एक स्वतंत्र बांग्लादेश नहीं, बल्कि फिर से पूर्वी पाकिस्तान बनना है, जहां अल्पसंख्यकों के पास कोई अधिकार नहीं हैं, जहां कट्टरपंथियों का वर्चस्व है, जहां इस्लामवादी विचारधाराएं समाज का रूख तय करती हैं, सरकार के फैसलों पर दखल देती हैं और जहां स्वतंत्र न्याय जैसे शब्दों के लिए कोई जगह नहीं है।

मोहम्मद यूनुस ने शेख हसीना की उस अवामी लीग पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसने बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई लड़ी और जिसके हजारों नेताओं ने पाकिस्तान की क्रूर फौज से लड़ते हुए अपनी जान की बाजी लगा दी थी। फर्स्ट पोस्ट की रिपोर्ट में पत्रकार और ‘बीइंग हिंदू इन बांग्लादेश: द अनटोल्ड स्टोरी’ और ‘इंशाअल्लाह बांग्लादेश: द स्टोरी ऑफ एन अनफिनिश्ड रेवोल्यूशन’ के लेखक दीप हलदर ने कहा कि “शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन कभी भी सिर्फ राजनीतिक विरोध नहीं था, बल्कि इसका उद्देश्य यह तय करना था कि बांग्लादेश को किस विचारधारा से चलाया जाएगा।”

शेख हसीना की आलोचना जरूर की जाती थी, लेकिन उन्होंने अपने शासनकाल में कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों को दबाए रखा। उन्होंने जमात-ए-इस्लामी जैसे कठोर और भारत-विरोधी कट्टरपंथी नेटवर्क को सीमित रखा। लेकिन शेख हसीना के पतन के साथ ही जमात अब सिर्फ एक सालों में अपने पैरों पर खड़ा हो चुका है। जमात के तमाम जेल में बंद कट्टरपंथी और आतंकी नेता रिहा किए जा चुके हैं।

फर्स्ट पोस्ट की रिपोर्ट में दीप हालदार ने कहा है कि “आज बांग्लादेश में 1947 की शक्तियां फिर उभर रही हैं, वहीं ताकतें जिन्हें 1971 की आजादी के दौरान हराया गया था। इन समूहों के उभार का अर्थ है कि बांग्लादेश की मूल आत्मा, जो धार्मिक राष्ट्रवाद के खिलाफ एक पहचान के रूप में जन्मी थी, उसे कुचलना शुरू कर दिया गया है।

बांग्लादेश ने 1971 में आजादी जरूर हासिल कर ली, लेकिन उसके अंदर पूर्वी पाकिस्तान हमेशा से जिंदा था। मुजीब उर रहमान से लेकर शेख हसीना तक, कभी भी पाकिस्तान-समर्थक तत्वों को पूरी तरह बाहर कर पाए। शिक्षित वर्ग से लेकर नौकरशाही तक, इन समूहों के समर्थक मौजूद रहे और अब उन्हें सत्ता का खुला संरक्षण मिल गया है।

इसी विचारधारा ने लगातार शेख हसीना की सत्ता को कमजोर किया और आखिरकार छात्र आंदोलन में उनकी सत्ता का गला घोंट दिया गया। अब वही विचारधारा बांग्लादेश के राजनीतिक ढांचे को पूरी तरह पुनर्गठित कर रहा है।

बांग्लादेश का पाकिस्तान की विचारधारा में रंगने का सबसे ज्यादा असर भारत पर होगा। भारत ने शेख हसीना में सालों से भारी निवेश किए हैं, जबकि विपक्षी बद BNP के कट्टर इस्लामी जमात-ए-इस्लामी और पाकिस्तान, दोनों से गहरे संबंध रहे हैं। लेकिन अब जब मोहम्मद यूनुस अंतरिम सरकार चला रहे हैं तो उन्होंने पाकिस्तान के तलबे चाटने शुरू कर दिए हैं।

पाकिस्तान के कई सीनियर आर्मी अधिकारी और नेता ढाका का दौरा कर चुके हैं। ऐसे में शेख हसीना को फांसी की सजा देने का मतलब, बांग्लादेश से अवामी लीग का जड़ से खत्म करना है। यानि, पाकिस्तान से आजादी दिलाने वाले पार्टी को मिट्टी में दफनाना है, यानि बांग्लादेश को एक बार फिर से पूर्वी पाकिस्तान बनाना है।

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