ब्रिटेन :एक वक्त था कि अमीर देश हर किसी को अपना लेते थे. कोई भी उनके यहां भागकर जाता था, तो शरणार्थी के रूप में अपने पास रख लेते थे. काम करने का मौका देते थे. लेकिन अब यही अमीर देश प्रवासियों को भगा रहे हैं. कोई विमानों से भरकर भेज रहा है तो कोई आर्मी को डिपोर्ट करने का आदेश दे रहा है.
प्रवासियों को खदेड़ने के लिए ब्रिटेन और फ्रांस ने ‘वन इन, वन आउट’ डील की है. यानी एक आदमी जाएगा और बदले में दूसरा आदमी आएगा. ब्रिटेन ने पहली बार एक प्रवासी को फ्रांस को वापस भेज भी दिया है. कहा तो यहां तक जा रहा है कि ब्रिटेन ने जिस शख्स को सौंपा है वह भारतीय है. आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी? कौन सी आफत गई कि अमीर देशों को ये कदम उठाने पर मजबूर होना पड़े. सवाल-जवाब से समझिए पर्दे के पीछे की पूरी कहानी.
यह डील ब्रिटेन और फ्रांस के बीच प्रवासियों के संकट से निपटने के लिए बनी है. इसके तहत ब्रिटेन उन लोगों को, जो छोटी नावों से अवैध तरीके से इंग्लिश चैनल पार करके आते हैं, फ्रांस लौटा देगा. लेकिन इसके बदले उतनी ही संख्या में वैध शरणार्थी, जिनके परिवार ब्रिटेन में हैं, उन्हें ब्रिटेन स्वीकार करेगा. जरूरतमंद और असली शरणार्थियों को मौका देने का इरादा है.
हां, यह पहली बार है जब ब्रिटेन ने किसी प्रवासी को फ्रांस लौटाया है. ब्रिटेन का कहना है कि 2025 में 30,000 से अधिक लोग छोटी नावों से देश में घुस चुके हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है. इनकी वजह से स्थानीय लोगों का हक मारा जा रहा है.ब्रिटेन और फ्रांस के अलावा जर्मनी, इटली और ग्रीस भी लगातार प्रवासियों को बाहर भेज रहे हैं. अमेरिका भी मैक्सिको बॉर्डर से आने वाले प्रवासियों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाता है. इन देशों की दिक्कत यह है कि हजारों प्रवासी युद्धग्रस्त या गरीब देशों से आकर यहां बसना चाहते हैं.
ब्रिटेन में इस साल 30,000 से ज्यादा लोग इंग्लिश चैनल पार करके आ चुके हैं. इनके पास कोई कागजात नहीं. वे पहले आते हैं, फिर जमीन पर कब्जा करने लगते हैं. कम पैसे में काम करते हैं. इसकी वजह से स्थानीय लोगों की नौकरियां छिन रही हैं. हेल्थ सिस्टम कोलैप्स हो रहा है.नहीं. लेकिन बड़ी संख्या में प्रवासी मुस्लिम देशों जैसे सीरिया, अफगानिस्तान, इराक और सोमालिया से आते हैं. ब्रिटेन का दावा है कि वह केवल अवैध प्रवेश करने वालों पर सख्त है. दूसरी ओर, अगर कोई वैध शरणार्थी है और उसके परिवार ब्रिटेन में रहते हैं तो उसे स्वीकार भी किया जाएगा.
ब्रिटेन की आबादी पहले ही बढ़ी हुई है और उसके पास सीमित संसाधन हैं. साथ ही, राजनीतिक तौर पर भी यह मुद्दा संवेदनशील है क्योंकि सरकार वादा करके आई थी कि अवैध रूप से घुस आए लोगों को बाहर निकालेंगे. इसलिए सरकार अपना वादा पूरा कर रही.फ्रांस ने इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में स्वीकार किया है. पेरिस का मानना है कि इससे इंग्लिश चैनल पार करने की प्रवृत्ति पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। हालांकि फ्रांस में भी आलोचक हैं, जो कहते हैं कि ब्रिटेन अपनी समस्या फ्रांस पर थोप रहा है.
मुख्य रूप से हां. गरीब और युद्धग्रस्त देशों के लोग बेहतर जीवन की तलाश में अमीर देशों की तरफ रुख करते हैं. इन्हें लगता है कि यहां नौकरी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं ज्यादा हैं. इसी वजह से अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और कनाडा जैसे देशों पर प्रवासियों का दबाव बढ़ता है. अफ्रीका, एशिया और मध्य-पूर्व से लाखों लोग हर साल यूरोप और उत्तरी अमेरिका की तरफ पलायन करते हैं.
प्रवासियों का सबसे बड़ा रास्ता कौन सा है?
ब्रिटेन में आने वाले ज्यादातर प्रवासी फ्रांस से होकर आते हैं और इंग्लिश चैनल पार करते हैं. यह दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री रास्तों में से एक है. प्रवासी छोटी-छोटी नावों में इसमें उतरते हैं और ब्रिटेन की सीमा में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं. यह यात्रा बेहद खतरनाक होती है, क्योंकि नावें ओवरलोड होती हैं और कई बार हादसे भी हो जाते हैं. इसके बावजूद हजारों लोग हर साल इसी रास्ते से ब्रिटेन पहुंचने की कोशिश करते हैं.
प्रवासी क्यों मजबूर होते हैं?
ज्यादातर प्रवासी युद्धग्रस्त, असुरक्षित या अत्यधिक गरीब देशों से आते हैं। सीरिया में लंबे समय से गृहयुद्ध चल रहा है, अफगानिस्तान तालिबान शासन में है, इराक और सोमालिया में हिंसा और आतंकवाद की समस्या बनी रहती है. इसके अलावा अफ्रीका के कई देशों में गरीबी, भूख और बेरोजगारी इतनी अधिक है कि लोग जोखिम उठाकर भी अमीर देशों की तरफ भागते हैं. उनके लिए यह एकमात्र रास्ता लगता है सुरक्षित जीवन और बच्चों के भविष्य की तलाश में.

