उदय दिनमान डेस्कः भारत में सरकारी स्कूल और नीदरलैंड में जेलें बन्द होने की कगार पर ! इसे पढ़कर आप भी सोच में पड़ गए होंगे। क्योंकि बात ही ऐसी है। भारत जहां विश्व में वसुधैव कुटुंबकं की बात करता है वही अपने देश का यह हाल उसे दूसरे देशों की तुलना में क्यों नहीं दिखायी देता है। हमारे भाग्यविधाता इस ओर कब ध्यान देंगे। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि ऐसा भी होता है विश्व के कई देशों में वहीं भारत में जहां नित्य सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं यह चिंता का विषय तो है ही।
नीदरलैंड उन नौ देशों में से भी प्रमुख देश है जहां धर्म भी खत्म होने के कगार पर है। यह आंकड़े उनके लिए महत्वपूर्ण है जो यह सोचते हैं कि धर्म-ईश्वर के बिना मनुष्य दिशाहीन हो जाता है या अराजक नीदरलैंड उनके लिए सबसे बेहतर उदाहरण है। वहां की जेलें इसलिए बन्द करनी पड़ रही है क्योंकि उन्हें कोई अपराधी ही नहीं मिल रहे हैं, आस-पास के देशों से कैदी मंगवाकर खानापूर्ति हो रही है।
वर्ष 2013 तक वहां की जेलों में केवल 19 कैदी ही रह गये थे। और वर्ष 2019 आते आते वहां कैदियों की संख्या शून्य हो गई । अब वहां जेलों की आवश्यकता ही नहीं हो रही है । इसलिए या तो जेलों को बंद किया जा रहा है । या जेलों के कर्मचारियों की नौकरी बचाने के लिए दूसरे देशों के कैदियों को आयात किया जा रहा है। जब कहीं नौकरी बचाई जा रही है । देश लगातार शांति और सुरक्षा की ओर बढ़ता जा रहा है।
दूसरी ओर हमारे देश में जेलों की बड़ी संख्या होने पर भी उनमें क्षमता से अधिक अपराधी भरे हुए हैं। लेकिन समाज में न तो अपराध कम हो पा रहे हैं और न ही अपराधी, दोनों ही बढ़ते जा रहे हैं। जीवन में शांति और सुरक्षा में कमी बनी रहती है। जो किसी भी राष्ट्र और समाज सभी के लिए अतिआवश्यक है।
हमे सोचना है कि हम किस देश को सभ्य, संस्कारी और श्रेष्ठ माने यह विषय विचारणीय और अनुकरणीय है। वैसे तो विश्व के और भी कुछ देश जैसे जापान, स्विटजरलैंण्ड आदि को इस श्रेणी में रखा जा सकता है। कुछ देश शांति की ओर बढ़ रहे हैं तो कुछ अशांति और असुरक्षा की ओर क्या हमारी दिशा ठीक है? क्या हम उचित राह की ओर बढ़ रहे हैं? क्या स्वयं को श्रेष्ठ बताने से श्रेष्ठ बना जा सकता है? हां ऐसा कह कह कर स्वयं तो खुश हो सकते हैं विश्व पटल पर नहीं।
भारत के वे नागरिक जो भारतीय संस्कृति को विश्व में सर्वश्रेष्ठ बताते हैं, जो भारत को विश्व गुरु होने की बात करते हैं, जो स्वयं को धर्म और संस्कृति के रक्षक होने की बात करते हैं, जो देश भक्त होने और वसुधैव कुटुंबकम् की बात करते हैं ऐसे सभी व्यक्तियों को इस विषय पर भी गहन विचार करना चाहिए, अपनी सोच और गतिविधियों का परीक्षण और मूल्यांकन करना चाहिए कि हमने अब तक क्या किया है और वह कितना उचित है, हमे आगे क्या करना चाहिए।
हमें सैद्धांतिक मूल्यों को खोजना है, वैचारिक मूल्यों को बढ़ावा देना है और अमानवीय मूल्यों को त्यागना है। सबका भला हो, सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो, भारत समृद्धि करे, जाग्रति करे, प्रगति करे, उन्नति करे। यह सब उचित शिक्षा, सोच और भाईचारे से ही सम्भव है। इसे समाज, सरकार और संविधान की बदौलत ही हासिल किया जा सकता है।