भीमाशंकर लिंग ही रहेंगे केदारनाथ के रावल

रुद्रप्रयाग: केदारनाथ धाम के रावल को फिलहाल नहीं बदला जा रहा है। यह बात खुद केदारनाथ धाम के रावल भीमाशंकर लिंग ने कही है। उन्होंने कहा कि वे पूरी तरह स्वस्थ हैं और 18 अप्रैल को पंचकेदार गद्दीस्थल ऊखीमठ में पहुंच जाएंगे।

पिछले कुछ दिनों से रावल भीमाशंकर लिंग के खराब स्वास्थ्य के मद्देनजर नए रावल की नियुक्ति को लेकर चर्चाएं गरम थीं। इन अटकलों पर रावल भीमाशंकर लिंग ने विराम लगा दिया है। उन्होंने कहा कि रावल परंपरा सदियों पुरानी है।

तीर्थ स्थलों में रावल का बदलना एक सामान्य प्रक्रिया है। केदारनाथ में वे 324वें रावल हैं। उनके बाद 325वें रावल को आना ही पड़ेगा, यह सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन अभी इस दिशा में कुछ नहीं होने जा रहा है। केदारनाथ जी के आदेश पर ही बदलाव होता आया है।

उन्होंने कहा कि वे स्वस्थ्य हैं और बाबा केदार की सेवा के लिए 18 अप्रैल को पंचकेदार गद्दीस्थल ऊखीमठ में पहुंच जाएंगे। वरिष्ठ पत्रकार व धार्मिक मामलों के जानकार बृजेश सती ने बताया कि एतिहासिक प्रमाण के हिसाब से रावल की पदवी टिहरी नरेश ने दी है।

केदारनाथ क्षेत्र में रावल को राजा ने कुछ गांव दान के रूप में दिए थे। केदारनाथ के रावल को अपने शिष्य रखने का अधिकार है। लेकिन श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के वर्ष 1948 के एक्ट के हिसाब से रावल की नियुक्ति का अधिकार समिति के पास है।

केदारनाथ के वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित और बीकेटीसी के सदस्य श्रीनिवास पोस्ती बताते हैं कि रावल केदारनाथ के लिए पुजारी अधिकृत करते हैं। साथ ही कपाट खुलने व बंद होने पर वे केदारनाथ धाम में मौजूद रहते थे। यहां तक कि यात्राकाल में भी वहां प्रवास करते थे।

321वें रावल नीलकंठ लिंग के समय तक मंदिर का पूरा आधिपत्य रावल के अधीन था। बाद में श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने रावल को एक वेतन भोगी कर्मचारी के तौर पर सीमित कर दिया। रावल के कार्यकाल का कोई निश्चित समय नहीं है।

केदारनाथ के रावल नैरिष्ट ब्रह्मचारी होते हैं। परंपरानुसार पूर्व में रावल शीतकालीन गद्दीस्थलों में ही वर्षभर निवास करते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से शीतकाल में रावल सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए देश के अन्य राज्यों के भ्रमण पर जाते रहे हैं।

केदारनाथ के 320वें रावल विश्व लिंग, 321वें रावल नीलकंठ लिंग, 322वें रावल सांत लिंग और 323वें रावल सिद्घेश्वर लिंग रहे। पहले रावल भकुंट भैरव थे।

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