श्राद्ध करने से मिलती है आयु, पुत्र, यश, बल, लक्ष्मी, धान्य की समृद्धि

नई दिल्ली: शास्त्रों में अश्विन मास के कृष्ण पक्ष के अमावस्या तक की तिथिके 15 दिन श्राद्ध कर्म के लिए तय किए गए हैं। इसका मतलब है कि इन 15 दिनों में अपने पूर्वजों को याद किया जाता है। इस दौरान पुरखों की तिथि के दिन उनका श्राद्ध किया जाता है।

संतान को स्वर्ग लोक गए अपने पुरखे जैसे अपने दादा-दादी, माता पिता का श्राद्ध जरूर करना चाहिए। कहा जाता है कि इन 15 दिन वे धरती पर आते हैं और अपनी संतानों से तर्पण मांगते हैं. जो उनका श्राद्ध कर उनका तर्पण विधि विधान और ब्रह्मणों को भोजन कराकर करता है, उन्हें आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, धान्य की समृद्धि का आशीर्वाद देकर पितर वापस स्वर्गलोक को जाते हैं।

इसलिए उनकी निमित तिथि के दिन उन्हें याद करते हुए उनका श्राद्ध करना चाहिए, उन्हें जल चढ़ाना चाहिए, जिससे वे प्यासे ना रहे हैं और ब्रह्मण को भोजन कराना चाहिए, जिससे भूखे ना रहें। इसके विपरीत जो लोग जो मृत आत्माओं का श्राद्ध नहीं करते, उनके पितर सदैव नाराज रहते हैं।

इससे उन्हें पितृदोष लगता है, जो सालों साल एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है। इसलिए देवी-देवताओं की आराधना के साथ ही स्वर्ग को प्राप्ति होने वाले पूर्वजों की भी श्रद्धा और भाव के साथ पूजा व तर्पण किया जाता है।

जिन प्राणियों की मृत्यु के बाद उनका विधिनुसार श्राद्ध नहीं किया जाता है, उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। जो भी अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करते हैं, उन्हें पितृदोष का सामना करना पड़ता है। पितृदोष होने पर जातकों के जीवन में धन और सेहत संबंधी कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पितरों का तर्पण करने से उन्हें मृत्युलोक से स्वर्गलोक में स्थान मिलता है।

इसलिए अपने पितरों की तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। दक्षिण दिशा में जल दें। पूर्व की ओर मुख करके पितरों का मानसिक आह्वान करें। हाथ में तिल कुश लेकर बोलें कि आज मैं इस तिथि को अपने अमूक पितृ के निमित्त श्राद्ध कर रहा हूं। इसके बाद जल धरती पर छोड़ दें।

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