चतुर्मास: चार महीने तक नहीं होगा शुभ कार्य

उदय दिनमान डेस्कः चातुर्मास जिसमें सावन, भादौ, आश्विन और कार्तिक का माह आता है उसमें खान-पान और व्रत के नियम और संयम का पालन करना चाहिए। दरअसल इन 4 महीनो में व्यक्ति की पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है। इससे अलावा भोजन और जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है। इस समय पानी को ऊबालकर पीना ज्यादा लाभकारी होता है। धार्मिक दृष्टिकोण से जगत के पालनहार विष्णु जी की अनुपस्थिति के कारण चातुर्मास में विवाह या अन्य संस्कार, गृह प्रवेश जैसे अन्य मांगलिक कार्य रुक जाते हैं। वहीं जब कार्तिक शुक्ल की एकादशी जिसे देवउठनी एकादशी कहते हैं आती है तब भगवान विष्णु जागते हैं और फिर पुनः शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है।

चातुर्मास प्रारंभ हो चुका है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे हरिशयनी एकादशी कहते हैं से शुरू हो जाता है और कार्तिक माह शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली देवउठनी एकादशी के दिन समाप्त होता है। देवउठनी एकादशी 14 नवंबर 2021 है इसलिए चातुर्मास 14 नवंबर को समाप्त होगा। हिन्दू धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व होता है। चातुर्मास मास का पहला माह सावन आता है। नियमानुसार इस महीने हरी पत्तेदार सब्जियों को नहीं खाना चाहिए। दूसरा माह भाद्रपद आता है। इस माह दही खाने से बचना चाहिए। चातुर्मास का तीसरा माह अश्विन होता है जिसमें दूध से परहेज बाताया गया है। चातुर्मास का अंतिम माह कार्तिक में दालों का सेवन नहीं करना चाहिए। चातुर्मास में खानपान से जुड़े ये नियम अच्छी सेहत के लिए उत्तम होते हैं।

मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु पाताल लोक में चार महीने के लिए विश्राम करते हैं। ऐसे में सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। चातुर्मास में ही भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना सावन आता है। इन चार माह में श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक माह आते है। चातुर्मास में मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। शास्त्रों में चातुर्मास से जुड़े कुछ विशेष नियम बताए गए हैं जिनका पालन करने से जातकों को लाभ प्राप्त होता है। इस दौरान जातकों को विशेष सावधानी भी बरतने की आवश्यकता होती है।चातुर्मास का समय साधना के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। हालांकि साधना के संचरण नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि एक स्थान पर ही बैठकर साधना करनी चाहिए। इन चार महीनों में सावन का महीना सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस माह में जो व्यक्ति भागवत कथा, भगवान शिव का पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दान करेगा उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।

 

विशिष्ट व्रत तथा यज्ञ को चातुर्मास्य कहते हैं। व्रतसंबंधी चातुर्मास्य को “लौकिक चातुर्मास्य” और यज्ञसंबंधी चातुर्मास्य को “वैदिक चातुर्मास्य” कहते हैं।लौकिक चातुर्मास्य का पालन वर्षा के चार महीनों में किया जाता है। महाभारत (शांति. 320/26) में पंचशिखा द्वारा इसके पालन का उल्लेख मिलता है। इस व्रत का विशद वर्णन भट्टोजी दीक्षितकृत तिथिनिर्णय (पृ.12-13), रघुनंदनकृत कृत्यतत्व (पृ.434-36), स्मृतितत्व (जीवानंद संस्क., द्वितीय भाग) आदि ग्रंथों में मिलता है। आषाढ़ शुक्ल द्वादशी से कार्तिक शुक्ल द्वादशी तक इसका पालन होता है किंतु अन्य मत से इसकी अवधि आषाढ़ संक्रांति से कार्तिक संक्रांति तक मान्य है। व्रतकाल में मांस, गुड़, तैल आदि का व्यवहार वर्जित है और यथाशक्ति जप, मौनादि का विधान है। इसे कहीं-कहीं विष्णुव्रत भी कहते हैं।

वैदिक चातुर्मास्य द्विविध है – स्वतंत्र और राजसूयांतर्गत। स्वतंत्र चातुर्मास्य अग्निहोत्रादि की भाँति नित्यकर्म है और प्रति वर्ष राजसूय यज्ञ के अंतर्गत अनुष्ठेय है। चातुर्मास्य में चार पर्वों का उल्लेख है- वैश्यदेव, वरुण प्रधास, साकमेघ एवं शुनासीरीय। जो तीन ही पर्व मानते हैं, वे शुनासीरीय की गणना नहीं करते। इन चारों में अनुष्ठेय कार्यों का विवरण चिन्नस्वामिकृत “यज्ञतत्वप्रकाश” (पृ. 45-53) और काणेकृत हिस्ट्री ऑव दि धर्मशास्त्र (भाग 2, पृ. 1091-1108) में है। स्वतंत्र चातुर्मास्य के दो पक्ष हैं- उत्सर्ग पक्ष और अनुत्सर्ग पक्ष। वैदिकों की परंपरा में सोमयज्ञ के अंतर्गत उत्सर्ग पक्ष ही स्वीकृत है। एक दृष्टि से चातुर्मास्य का त्रिविध वर्गीकरण भी है- ऐष्टिक, पाशुक और सौमिक। पशुद्रव्य से किए जाने पर पाशुक और सोमद्रव्य से निष्पन्न होने पर सौमिक चातुर्मास्य होता है।

कोरोना संक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए लगाए गए लाकडाउन ने बाजार पर प्रतिकूल असर डाला। व्यवसायिक गतिविधि लगभग ठप हो गई थी। कोरोना संक्रमण की रफ्तार धीमी पडऩे के बाद अनलाक की प्रक्रिया शुरू की गई। अनलाक में अब भी बाजार में दुकानें अल्टरनेट डे (एक दिन बाद एक दिन) खुल रही हैं। लगन के कारण बाजार में रौनक लौटी थी, लेकिन अब चतुर्मास आरंभ हो गया है।

मंगलवार को देवशयानी एकादशी के बाद से ही चतुर्मास की शुरुआत हो गई है। ऐसी मान्यता है कि चतुर्मास में लगन सहित शुभ कार्य बंद हो जाते हैं। चार महीने तक लगन की तिथि नहीं होने के कारण भागलपुर में तीन सौ से अधिक के कारोबार के प्रभावित होने की आशंका है। लाकडाउन के बाद अब चतुर्मास ने व्यवसायियों की परेशानी बढ़ा दी है। व्यवसायी की माने तो लगन के समय भागलपुर में प्रतिदिन सिर्फ पांच से सात करोड़ के आभूषण बिक जाते हैं। वहीं, दो से पांच करोड़ का जूता-चप्पल और कपड़े का कारोबार होता है। व्यवसायी अब पर्व त्योहार से उम्मीद लगाए हुए हैं। दुर्गा पूजा, काली पूजा जैसे त्योहार बाजार को ताकत दे सकते हैं।

कोरोना संक्रमण के कारण घोषित लाकडाउन ने बाजार को पूरी तरह से प्रभावित किया। बाजार 20 से 25 फीसदी तक रह गया। अनलाक में भी सरकार ने एक दिन बाद एक दिन दुकान खोलने की अनुमति दी। इस निर्णय ने भी व्यवसाय को प्रभावित किया। कोरोना के मरीज मिलने लगभग कम हो गए। ऐसे में सरकार को प्रत्येक दिन दुकान खोलने की अनुमति देनी चाहिए। बीते एक महीना में लगन के कारण बाजार में रौनक लौटी थी, लेकिन चतुर्मास के बाद बाजार एक बार फिर से नीचे चला जाएगा। व्यवसाय के लिए सावन और भादो का महीना सबसे सुस्त माना जाता है।

कोरोना संकट के कारण कपड़ा व्यवसाय पर प्रतिकूल असर पड़ा है। कारोबार महज दस फीसदी पर सिमट गया है। लगन का समय कपड़ा व्यवसाय के लिए काफी अनुकूल माना जाता है। चतुर्मास में कोई लगन नहीं होगा, तो कपड़ा की बिक्री पर प्रतिकूल असर पड़ेगा ही। इस बार बकरीद का बाजार भी फीका रहा। अब दुर्गा पूजा के समय ही बाजार की स्थिति सुधरेगी।

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