सस्ते ड्रोन बने रूस का काल

नई दिल्ली: 1 जून को यूक्रेन ने रूस पर जो हमला किया, उसे दुनिया की ‘सबसे साहसी’ ड्रोन स्ट्राइक में गिना जा रहा है. इस ऑपरेशन का नाम था Operation Spiderweb, और इसमें 100 से ज्यादा सस्ते, लेकिन बेहद स्मार्ट ड्रोन यूज़ किए गए. नतीजा ये कि रूस के मिलिट्री एयरबेस पर खड़े करीब 40 लॉन्ग-रेंज बमवर्षक और अन्य फाइटर प्लेन तबाह हो गए. कुल नुकसान? लगभग 7 बिलियन डॉलर. अब सवाल ये उठता है कि क्या एक लाख के ड्रोन अब 800 करोड़ के जेट को हरा सकते हैं? और अगर हां, तो क्या F-35 जैसे सुपर-स्टील्थ जेट्स अब सिर्फ म्यूजियम की शोभा बढ़ाएंगे?

यूक्रेन का ये हमला रूस के पांच अलग-अलग क्षेत्रों में एक साथ किया गया. रूस के डिफेंस मिनिस्ट्री के मुताबिक, ये ड्रोन रूस के कई टाइम जोन में फैले एयरफील्ड्स तक पहुंचे और वहां मौजूद अत्याधुनिक बमवर्षकों को जला कर खाक कर दिया. Tu-95 और Tu-22M जैसे जेट, जो यूक्रेन पर मिसाइल्स दागने के लिए जाने जाते थे, अब कबाड़ बन चुके हैं. A-50 जैसे AEW&C एयरक्राफ्ट, जो हवा में दुश्मन का पता लगाते थे, अब खुद निशाना बन गए.

ज़ेलेंस्की ने इस ऑपरेशन को ‘ब्रिलियंट’ कहा और दावा किया कि इसे तैयार करने में 1 साल, 6 महीने और 9 दिन लगे. यही नहीं, ऑपरेशन की प्लानिंग उस बिल्डिंग से की गई जो रूस की FSB (KGB की उत्तराधिकारी) के हेडक्वार्टर के पास थी. सीधा मतलब: ये हमला सिर्फ टेक्नोलॉजी का नहीं, हिम्मत और साइकोलॉजिकल वॉरफेयर का भी कमाल था.

ये बात अब सामने आ चुकी है कि ये हमले पहले से रूस के अंदर स्मगल किए गए FPV ड्रोन से किए गए. इन ड्रोन को छोटे मोबाइल वुडन हाउस में छिपाकर रखा गया था. जब सही वक्त आया, तब उन घरों की छतें रिमोट से खुलीं और ड्रोन उड़ते हुए आसमान में निकल गए.

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये हाउस ट्रकों पर लोड थे और चलते-फिरते ‘ड्रोन बेस’ बन चुके थे. रूसी मीडिया में वायरल वीडियो में ड्रोन कंटेनर से उड़ते नजर आए, कुछ लोग उन्हें रोकने की नाकाम कोशिश करते भी दिखे.

ड्रोन कोई नई चीज नहीं है. वर्ल्ड वॉर I में भी रेडियो से कंट्रोल होने वाले पायलटलेस एयरक्राफ्ट्स टेस्ट किए गए थे. लेकिन जो यूज़ यूक्रेन कर रहा है, वो वाकई गेम-चेंजिंग है. अब हर यूक्रेनी ब्रिगेड में एक ‘ड्रोन यूनिट’ है. 2024 की शुरुआत में यूक्रेन ने 10 लाख FPV ड्रोन बनाने का टारगेट रखा था और अक्टूबर तक उनकी मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी 4 मिलियन सालाना तक पहुंच चुकी है.

एलन मस्क ने पिछले साल कहा था कि F-35 जैसे महंगे फाइटर जेट्स का जमाना अब खत्म हो गया है. उनका तर्क था कि ‘इन जेट्स में पायलट की जान को खतरा है, जबकि ड्रोन बिना जान गंवाए दुश्मन को तबाह कर सकते हैं.’ F-35, जिसे Lockheed Martin बनाता है, की कीमत 80 से 100 मिलियन डॉलर तक है.

इसमें स्टील्थ, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, इंटेलिजेंस और सर्विलांस की खूबियां हैं. लेकिन इसके सॉफ्टवेयर में बार-बार टेक्निकल प्रॉब्लम आती हैं. इसकी मेंटेनेंस बेहद महंगी है. और अब जब $500 का ड्रोन $100mn के जेट को गिरा सकता है, तो इसकी वैल्यू वाकई में सवालों के घेरे में है.

अब जंग जीतने के लिए अरबों डॉलर की जरूरत नहीं है, इनोवेशन और इंटेलिजेंस काफी है. चीन, तुर्किए और इजरायल भले ही ड्रोन एक्सपोर्ट में आगे हैं, लेकिन कई छोटे देश अब कम बजट में खुद के ड्रोन बना रहे हैं. पब्लिकली उपलब्ध सिविलियन ड्रोन भी अब थोड़े बहुत मॉडिफिकेशन के बाद युद्ध में इस्तेमाल हो रहे हैं. जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी सस्ती और सुलभ होती जा रही है, वैसे-वैसे पारंपरिक युद्ध के नियम और हथियार भी बदलते जा रहे हैं.

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