वॉशिंगटन: दुनिया के केमिकल वेपन के वॉचडॉग ने घोषणा की है कि दुनिया में मौजूद सभी घोषित केमिकल हथियार खत्म हो गए हैं। दरअसल, शुक्रवार को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बताया कि US ने अपने सभी केमिकल हथियार नष्ट कर दिए हैं। इसी के साथ ऑर्गेनाइजेशन ऑफ प्रॉहिबिशन ऑफ केमिकल वेपन (OPCW) के चीफ फर्नान्डो एरियास ने कहा- ये दुनिया के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
द हेग आधारित इस वॉचडॉग के मुताबिक अमेरिका इकलौता ऐसा देश बचा था, जिसके पास केमिकल हथियार थे। रॉयटर्स के मुताबिक, फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में पहली बार बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुए केमिकल हथियारों के जखीरे को अमेरिका ने 70 सालों से स्टोर किया हुआ था।
1997 के केमिकल वेपन कन्वेंशन के मुताबिक इसमें शामिल सभी देशों को सितंबर 2023 के आखिर तक सभी केमिकल हथियारों को नष्ट करना था। तब से अमेरिका कोलोराडो में US आर्मी प्यूब्लो केमिकल डिपो और केन्टकी के ब्लू ग्रास आर्मी डिपो में लगातार अपने केमिकल हथियारों को नष्ट कर रहा है।
2022 में केन्टकी में आखिरी M55 रॉकेट को नष्ट किया था, जिसमें VX केमिकल वेपन मौजूद थे। अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट को हथियारों को नष्ट करने में 3 लाख करोड़ रुपए खर्च करने पड़े हैं, जो तय बजट से 2900% ज्यादा है।सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, 1968 में अमेरिका के पास 40 हजार टन केमिकल वॉरफेयर एजेंट्स मौजूद थे। केमिकल वेपन वॉचडॉग ने पिछले कुछ सालों में सीरिया पर सिविल वॉर में इनके इस्तेमाल का आरोप लगाया है।
OPCW चीफ एरियास ने कहा- हाल ही में केमिकल हथियारों के इस्तेमाल की धमकी को देखते हुए हमारी प्राथमिकता दोबारा इनके निर्माण पर रोक लगाना होगा। UN की रिपोर्ट के मुताबिक, पहले विश्व युद्ध में केमिकल हथियारों की वजह से करीब 1 लाख लोगों की जान चली गई थी। तब इसे केमिस्ट वॉर कहा गया था। वहीं इसके प्रभाव से अब तक करीब 10 लाख लोगों की मौत हो चुकी है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 1970 के दशक में सेना केमिकल हथियारों को एक पुराने जहाज में लोड कर उसे समुद्र में बहा देना चाहती थी। हालांकि, लोगों के विरोध जताने के बाद ऐसा नहीं किया गया। इसके बाद इन केमिकल हथियारों को एक फरनेस में डालकर जलाए जाने का प्रस्ताव रखा गया। इसे भी मंजूरी नहीं मिल पाई।
फिलहाल अमेरिका ने केमिकल हथियारों को खत्म करने में रोबोटिक मशीन की मदद ली है। शेल्स में रखे गए इन वेपन्स को खोलकर , सुखाकर और धोकर 1500 डिग्री फेरेनहाइट पर जलाया गया है।1918 के बाद से अमेरिकी सेना ने युद्ध में घातक रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया है। हालांकि, वियतनाम युद्ध के दौरान उन्होंने एजेंट ऑरेंज जैसे कैमिकल्स का इस्तेमाल किया था जो इंसानों के लिए खतरनाक माने जाते हैं।
1989 में अमेरिका और सोवियत संघ अपने-अपने रासायनिक हथियारों के भंडार को नष्ट करने के लिए सहमत हुए थे। हालांकि, इसका इकलौता रास्ता यही था कि उन्हें जला दिया जाए, लेकिन इससे जहरीला धुआं निकलता, जिसके असर को संभालना काफी मुश्किल है।
साल 1986 में अमेरिकी राज्य उटाह में अचानक 5600 भेड़ों की मौत हो गई। ये जगह केमिकल वेपन्स की टेस्ट साइट के काफी करीब थी। अमेरिकी कांग्रेस के दबाव डालने के बाद सेना ने माना था कि वो VX नाम के एक केमिकल वेपन की टेस्टिंग कर रहे हैं। उनके पास 8 राज्यों में केमिकल हथियारों को जखीरा जमा है।
रूस का कहना है कि उसने 2017 में ही अपने सारे केमिकल हथियार नष्ट कर दिए थे। हालांकि, यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने आशंका जताई थी कि रूस-यूक्रेन के खिलाफ केमिकल हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। वहीं, रूस ने इसके पहले अमेरिका पर यूक्रेन में केमिकल और बॉयोलॉजिकल हथियार बनाने का आरोप लगाया था।
चीन का कहना है कि उसने कभी भी केमिकल हथियार नहीं बनाए। हालांकि, उसके पास सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान जापानी सेना के छोड़े हुए केमिकल हथियारों का बड़ा जखीरा था, जिन्हें अब नष्ट करने की बात कही जा रही है। भारत ने साल 2009 में अपने सारे केमिकल वेपन्स नष्ट कर दिए थे।
ऑर्गेनाइजेशन फॉर द प्रॉहिबिशन ऑफ केमिकल वेपंस यानी OPCW के मुताबिक, केमिकल हथियार ऐसे हथियार होते हैं जिनमें जहरीले केमिकल का इस्तेमाल जानबूझकर लोगों को मारने या नुकसान पहुंचाने के लिए होता है। ऐसे सैन्य उपकरण जो खतरनाक केमिकल को हथियार बना सकते हैं, उन्हें भी केमिकल हथियार या रासायनिक हथियार माना जा सकता है।
केमिकल हथियार इतने घातक होते हैं कि ये पल भर में हजारों लोगों को मौत की नींद सुला सकते हैं और साथ ही उन्हें अलग-अलग बीमारियों के प्रभाव से तिल-तिल कर मरने को मजबूर कर सकते हैं।
पहले विश्व युद्ध के बाद से दो खाड़ी युद्धों (इराक-ईरान युद्धों) सहित, कम से कम 12 लड़ाइयों में केमिकल हथियारों का इस्तेमाल हो चुका है।इराकी सेना ने 1980 के दशक में पहले खाड़ी युद्ध के दौरान ईरान के खिलाफ केमिकल हथियार का इस्तेमाल किया था, जिससे कम से कम 50 हजार ईरानी मारे गए थे।
तानाशाह सद्दाम हुसैन के निर्देश पर 1988 में इराकी सेना ने अपने ही देश के कुर्दों के खिलाफ घातक मस्टर्ड और नर्व एजेंट केमिकल गैसों का इस्तेमाल किया था। करीब एक लाख कुर्दों को मौत के घाट उतार दिया था।2013-17 के दौरान सीरिया के गृह युद्ध में राष्ट्रपति बशर अल असद ने कथित तौर पर रूस की मदद से कई बार अपने देश के विद्रोहियों के खिलाफ केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया है।
जापान में आतंकियों ने 90 के दशक में सरीन गैस से केमिकल हमला किया था, जिससे 1994 में 7 और 1995 में टोक्यो मेट्रो में इसके हमले से 12 लोगों की मौत हो गई थी।UN के मुताबिक, सोवियत संघ-अमेरिका के बीच कोल्ड वॉर के दौरान कम से कम 25 देशों ने केमिकल हथियार बनाने और इकट्ठा करने का काम किया, हालांकि पहले विश्व युद्ध के बाद इनका काफी कम इस्तेमाल हुआ है।