तकनीक के खेल मे बचपन कैद

उदय दिनमान डेस्कः आज तकनीक बच्चों से उनके बचपन को छीन रही है। बच्चे आज ज्यादा से ज्यादा समय कंप्यूटर और मोबाइल का प्रयोग करने में व्यस्त रहते हैं यह कहना गलत नहीं होगा कि चिपके रहते हैं और माता-पिता भी उन्हें नहीं रोकते। क्योंकि उन्हें लगता है कि बच्चा कंप्यूटर और मोबाइल का जितना ज्यादा इस्तेमाल करेगा वह उतना ही तकनीक को समझेगा। जबकि यह सही नहीं है।

तकनीक तरक्की का पैमाना बन चुकी है। जिस देश में तकनीक जितनी ज्यादा है,उस देश को उतना ही विकसित माना जाता है और वहां के लोगों को भी उतना ही पढ़ा-लिखा और समझदार समझा जाता है। लेकिन तकनीक का एक दूसरा पहलू भी है। जो बेहद घातक है,लेकिन लोग उसे अनदेखा कर रहे हैं।

मानव जीवन का सबसे खूबसूरत हिस्सा बचपन को माना जाता है। बच्चे बचपन में न सिर्फ अपनी जिंदगी को हंसी खुशी और खेलते कूदते हुए जीते हैं। वहीं दूसरी ओर बचपन का वक्त ही उनका शारीरिक और बौद्धिक विकास तय करता है। कहते हैं कि जिस बच्चे ने अपना बचपन खुलकर जिया हो वह बड़ा होकर शारीरिक और मानसिक तौर पर सुदृढ़ बनता है।

क्योंकि तकनीक एक बच्चे की मानसिक विकास पर बुरा असर डाल रही है। कम उम्र में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल उसकी सोचने और समझने की शक्ति को कम कर रहा है। इस पर कई रिसर्च भी हो चुकी हैं जिनमें यह परिणाम सामने आए हैं कि जो बच्चे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। उनकी याद रखने की क्षमता कम हो जाती है। वह रोजमर्रा के कामों में सही फैसले नहीं ले पाते और उनकी यादाशत भी सामान्य से कम हो जाती है।

इतना ही नहीं बच्चे शारीरिक तौर पर भी कमजोर हो जाते हैं,जो बच्चे बचपन में भागदौड़ और खेलकूद करते हैं। उनका शरीर और हड्डियां मजबूत होती हैं । बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी मजबूत होती है। इसके विपरीत जो बच्चे कमरे में बंद मोबाइल और लैपटॉप के साथ लगे रहते हैं वे शारीरिक तौर पर कमजोर रहते हैं।

ऐसा नहीं है कि बच्चों के मां-बाप को इस बात की जानकारी ना हो। मां बाप को इस बारे में जानकारी रहती है। लेकिन इसके बावजूद वे बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के इस्तेमाल से नहीं रोकते । कई बार माता-पिता जानबूझकर बच्चों के हाथ में मोबाइल पकड़ा देते हैं। ताकि बच्चा मोबाइल देखने में व्यस्त रहे और वह घर के कामकाज को निपटा सकें।

कई बार बच्चा मां बाप के साथ खेलने की कोशिश करता है या उन्हें बाहर जाने के लिए कहता है। तब भी मां-बाप उसे टालने के लिए उसे मोबाइल दे देते हैं ताकि बच्चा मोबाइल में व्यस्त रहें और किसी प्रकार की कोई जिद ना करें। इन वजहों से आज बच्चों की यादाशत कमजोर हो गई है। बच्चों के लिखने की क्षमता पहले से कमजोर होती जा रही है। पहले अपने पढ़ाई से जुड़ी जिन बातों को बच्चे याद रखते थे। आज उन्हें उसके लिए ऑनलाइन नोट्स और केलकुलेटर का सहारा लेना पड़ता है।

माता पिता ने सिर्फ अपनी लापरवाही से न सिर्फ बच्चों का बचपन छीन रहे हैं बल्कि उन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर भी कमजोर कर रहे हैं। बच्चों के लिए तकनीक से जुड़ना जरूरी है लेकिन इसकी भी एक उम्र है और तकनीक को इस्तेमाल करने की भी एक सीमा है। यह कहना भी सही है की अगर बच्चे कम उम्र में और सीमा से ज्यादा तकनीक से जुड़ेंगे तो यह उनके लिए लाभदायक कम और हानिकारक ज्यादा होगा।

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