ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रोके चीन

बीजिंग: भारत के सिंधु जल संधि को सस्पेंड करने के बाद पाकिस्तान के लोग लगातार चीन से भारत का पानी बंद करने की मांग कर रहे हैं। पाकिस्तान के लोगों को उम्मीद है कि चीन, निश्चित भारत को सबक सिखाएगा। इसके अलावा पाकिस्तान के एक्सपर्ट्स इस तरह से इस बात को प्रोजेक्ट कर रहे हैं, कि भारत की तमाम नदियां चीन से ही निकलती हैं और चीन के पानी रोकने के बाद भारत एक एक बूंद पानी के लिए तरसेगा।

भारत के सिंधु जल संधि को सस्पेंड करने पाकिस्तान पर इसका गहरा असर पड़ सकता है। हालांकि तत्काल प्रभाव की संभावना नहीं है, लेकिन अगर भारत ने पानी का डेटा शेयर करना बंद किया तो पाकिस्तान के लिए बाढ़ और सूखे का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाएगा। जिसका असर खेती पर होगा। लिहाजा बिलावल भुट्टो समेत तमाम पाकिस्तानी नेता और एक्सपर्ट भारतीयों का खून बहाने की बात कर रहे हैं।

दूसरी तरफ भारत ने साफ कर दिया है कि आतंकवाद किसी भी हाल में कबूल नहीं है और पाकिस्तान का हुक्का पानी बंद कर दिया गया है। पाकिस्तान ने आतंकवाद और “एक हजार कट” की रणनीति का उपयोग करके भारत का खून बहाने के लिए अपने पास मौजूद सभी संसाधनों का इस्तेमाल किया है। लेकिन भारत के सब्र का बांध अब टूट चुका है। आपको बता दें कि पाकिस्तान को सिंधु नदी बेसिन के कुल संसाधनों का 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा दिया गया है, इसके अलावा पश्चिमी पंजाब की नदियों पर बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता भी दी गई है। लेकिन अब भारत ने इस संधि को रोककर पाकिस्तान के पैरों तले जमीन हिला दी है।

पाकिस्तान को लेकर भारत ने काफी धैर्य दिखाया है। 1965 की युद्ध से लेकर 1971 की लड़ाई, कारगिल की लड़ाई और दर्जनों आतंकी हमलों के बावजूद भारत ने सिंधु जल समझौते को नहीं रोका था। इसीलिए इस वक्त भारत का ये सबसे आक्रामक कदम लग रहा है। लेकिन भारत का तर्क है कि पाकिस्तान ने अब कूटनीति के सारे दरवाजे बंद कर दिए हैं। सिंधु जल समझौते को आधार बनाकर अगर चीन और भारत की बात करें तो निश्चित तौर पर चीन और भारत के संबंध भी तनावपूर्ण रहे हैं। लेकिन भारत और चीन के बीच के विवाद की मूल प्रकृति पाकिस्तान की तुलना में अलग है।

सबसे पहली बात कि भारत, चीन में आतंकवाद नहीं फैलाता है और दोनों देशों के बीच के विवाद आपसी बातचीत से सुलझाए जाते हैं, जैसा गलवान के बाद किया गया है। उसके अलावा भारत, चीन के अंदर किसी अलगावलादी आंदोलन या देश के अंदर किसी तरह की घरेलू हिंसा को भड़काने की कोशिश नहीं करता है। इसीलिए चीन के पास इस तरह की कोई वजह नहीं है। दोनों देशों के बीच विशुद्ध सीमा विवाद है, जिसके निश्चित तौर पर खतरनाक स्थिति में पहुंचने की संभावना रहती है, लेकिन चीन के पास भारत की तरह वजहें नहीं हैं।

इसके अलावा जिस तरह से भारत और पाकिस्तान सिंधु जल समझौते में बंधे थे, भारत और चीन के बीच इस तरह का कोई संमझौता नहीं है। दोनों देशों के बीच कानूनी रूप से बाध्यकारी, व्यापक जल-साझाकरण को लेकर कोई संधि नहीं है। हालांकि बाढ़ के मौसम के दौरान ब्रह्मपुत्र जैसी कुछ नदियों के लिए जल विज्ञान संबंधी आंकड़ों को साझा करने के संबंध में समझौता ज्ञापन (एमओयू) हैं,

ऊपरी तटवर्ती देश के रूप में चीन, सिंधु जल संधि ढांचे के तहत भारत की तुलना में काफी कम बाधाओं के साथ काम करता है। इसके अलावा चीन अगर पानी रोकता भी है तो इसकी वजह उसकी ऊर्जा परियोजना या जियो-पॉलिटिकल बढ़त हासिल करने की होगी, ना की आतंकवाद। इसीलिए पाकिस्तानियों की ये चाहत कि चीन, भारत के साथ ऐसा कर सकता है, ये उनकी किसी और को ‘पिता’ बनाने की हरकत से बढ़कर कुछ और नहीं है।

चीन ने तिब्बत के मेडोग रीजन में ब्रह्मपुत्र पर एक सुपर डैम बनाने की घोषणा की है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चीन डैम बनाकर पानी के बहाव को रोक सकता है। लेकिन इसका असर पूरे भारत पर नहीं होगा। इसका असर अरुणाचल प्रदेश, असम और सिक्किम पर होगा। वहां की खेती पर असर पड़ेगा और लाखों लोग प्रभावित हो सकते है। लेकिन भारत के सामने पाकिस्तान जैसी समस्या नहीं होगी।

भारत के पास खुद अपने ही देश से निकलने वाली दर्जनों नदियां हैं और भारत अपने प्रभावित क्षेत्रों को पीने की पानी की समस्या से जूझने नहीं देगा। इसके अलावा अगर खेती पर असर पड़ता है तो कम से कम अनाज की किल्लत नहीं होगी। वहीं भारत अरुणाचल प्रदेश और असम में फास्ट-ट्रैक डैम्स बनाकर चीन को काउंटर कर सकता है। ताकि पानी स्टोर कर आपातकाली स्थितियों में इस्तेमाल किया जा सके।

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