उदय दिनमान डेस्कः देवभूमि उत्तराखण्ड के पहाड़ी गांवों के प्रत्येक कुल में ऐसी महिलाएं होती हैं, जिनके त्याग, ममता, संघर्ष, पति परायणता आदि की अनुगूंज काफी पीढ़ियों तक सुनी जाती है। अभी भी यहाँ की दुर्गम व नीरस पहाड़ियां प्रत्येक क्षेत्र में इन्हीं के कारण बुलन्दी पर हैं।
आज महिला दिवस पर किसी महिला के अनिर्वचनीय त्याग के बारे में संक्षेप में बता रहा हूं।
पौड़ी गढ़वाल का चैधार गांव 17 वीं शताब्दी में टिहरी राजा ने किसी उद्भट विद्वान् को दान में दिया गया था। आज उन्हीं के वंश में गांव व देश-विदेश में सैकड़ों परिवार हैं।
लगभग 100 वर्ष पहले इस गांव में बहुत सम्पन्न, विद्वान् व प्रतिष्ठित व्यक्ति नैथानी जी रहते थे। उनका तिमंजिला क्वाठा था, जिसमें अंग्रेज भी निवास करने आते थे। अपने पिता की इकलौती सन्तान होने से स्पष्ट है कि उनको किसी वस्तु की कमी नहीं थी। वे बहुत स्वाभिमानी व्यक्ति थे। जब वे वयः सन्धि की सीढ़ी पर थे, तो ज्वाल्पा देवी की तरफ के एक गांव से उनके लिए कोई व्यक्ति कन्या देने के लिए तैयार हुए, लेकिन नैथानी जी के परिवार ने मना कर दिया।
कुछ समय बाद चैधार गांव वाली पहाड़ी पर ही लगभग चढ़ाई चढ़ते हुए 4 किमी दूर बघ्याली गांव से एक कन्या के साथ नैथानी जी की सगाई हुई। नियत दिन पर धूमधाम से बारात वहाँ गयी। दुर्भाग्यवश विवाह की रश्म होने के बाद वरपक्ष और कन्या पक्ष के परिवारों में किसी बात पर विवाद हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि रात बीतने पर सुबह सुबह वह बारात विना कन्या के वहाँ से लौटकर सीधे चैधार न आकर ज्वाल्पा देवी की तरफ गयी, जहाँ के रिश्ते का प्रस्ताव पहले आया था। वहाँ की कन्या के पिता की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि प्राचीन काल से समाज में प्रतिष्ठा व सम्पनन्नता को सभी पसंद करते हैं। संक्षेप में वर- कन्या का विवाह संस्कार किया गया और उसी दिन वहाँ की कन्या को डोली में बैठाकर बारात चैधार लौट आयी।

कुछ दिन चैधार में नैथानी जी की क्वोठे पर बघ्याली वाली शादी के बारे में परिवार में विचार विमर्श हुआ, जिसमें निर्णय हुआ कि विवाद तो कन्या के घर वालों से हुआ था, कन्या तो निर्दोष थी, क्यों न इस शर्त पर कि वह कभी अपने मायके की तरफ देखेगी भी नहीं, उसको भी लाया जाए। नैथानी जी एक दिन उस कन्या को लेने वहाँ पहुंचे और उसको यह शर्त बता दी। कन्या यह शर्त मंजूर कर और अत्यन्त हर्षित होकर अपने पति के साथ चल दी। जिस जगह पर मैं यह लिख रहा हूं, यहाँ से आधा किमी नीचे उनका मकान था। नैथानी जी ने उस पत्नी के लिए अपने घर से पहनने के लिए नये कपड़े व गहने लाये और उसके मायके से लाये कपड़े उतरवा कर फेंक दिये और कहा कि आज के बाद वहाँ तुम्हारा कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा।
अब नैथानी जी की दो पत्नियाँ हो गयीं। दोनों बहनों में सगी बहनों से भी अधिक प्रेम था। कालान्तर में दोनों के बच्चे हुए, जिनमें बघ्याली वाली पत्नी का एक पुत्र व एक ही पुत्री हुई।
नैथानी जी की बघ्याली वाली पत्नी भी बहुत सम्पन्न घर की थीं। उनके भाई तहसीलदार थे। उस समय अधिकारी लोग घोड़ों में बैठकर जाते थे। संयोगवश उनको एक दिन पोखड़ा की तरफ अपने ससुराल चैधार होकर जाना था। उन्होंने चैधार में अपनी बहन को सन्देश भिजवाया कि मुझसे मिलना हो, तो रास्ते पर आ जाना। तहसील दार चैधार के रास्ते पर रुके लेकिन उनकी बहन उस दिन इस वजह से कमरे से बाहर भी नहीं निकलीं।
उन महिला की एक सहेली 90 वर्षीया दीदी जी हमारे कमरे के बगल में रहती हैं। उन्होंने बताया कि वह महिला तो अब नहीं है, लेकिन उनके नाती- पोते रुड़की में रहते हैं। उनके परिवार में सहारनपुर से आजकल ही शादी थी।
तो हमारे उत्तराखण्ड की देवीतुल्या नारियों का यह एक नमूना था।
( मैंने परिवार की इजाजत के विना ये सत्य प्रस्तुति लिखी है, वे बहुत सारे फेसबुक मित्र हैं।)

की फेसबुक वाल से साभार