-कार्यक्रम में दूरदर्शन परिवार के सदस्यों, सम्मानित दर्शकों, विशिष्ट गणमान्य अतिथियों तथा आमंत्रित कलाकारों ने उत्साहपूर्वक सहभागिता की
-पद्मश्री से सम्मानित डॉ. माधुरी बड़थ्वाल, डॉ. बसंती बिष्ट, डॉ. बी.के.एस संजय, श्री कल्याण सिंह रावत “मैती”, डॉ. प्रीतम भारतवाण भी कार्यक्रम में हुए शामिल
देहरादून : उत्तराखण्ड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और दूरदर्शन की गौरवमयी परम्परा के अद्भुत संगम के रूप में, दूरदर्शन केंद्र, देहरादून ने बीते मंगलवार को अपनी रजत जयंती, 25वाँ स्थापना दिवस संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह सभागार, देहरादून में भव्य सांस्कृतिक संध्या – “कलादर्शनम” के रूप में आयोजित किया। इस अवसर पर दूरदर्शन परिवार के सदस्य, सम्मानित दर्शक, विशिष्ट गणमान्य अतिथि तथा आमंत्रित कलाकारों ने उत्साहपूर्वक सहभागिता की।
कार्यक्रम की शुरुआत सभी अतिथियों, कलाकारों एवं विशिष्ट व्यक्तियों, जिनमें पद्मश्री सम्मानित डॉ. माधुरी बड़थ्वाल, डॉ. बसंती बिष्ट, डॉ. बी.के.एस संजय, श्री कल्याण सिंह रावत “मैती”, डॉ. प्रीतम भारतवाण भी सम्मिलित थे, के औपचारिक स्वागत से हुई। तत्पश्चात दीप प्रज्वलन के साथ सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ किया गया।
विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती के आशीर्वाद हेतु सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। इसके पश्चात प्रसार भारती के क्लस्टर हेड, उपमहानिदेशक (अभियांत्रिकी) श्री सुरेश कुमार मीणा ने अपने स्वागत संबोधन में दूरदर्शन केंद्र, देहरादून की यात्रा, उपलब्धियों एवं दर्शकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
संगीत की शास्त्रीय धारा में डुबोते हुए आकाशवाणी के टॉप ग्रेड कलाकार पंडित रोबिन करमाकर ने राग देस में मनमोहक सितार वादन प्रस्तुत किया। इसके पश्चात आकाशवाणी के बी हाई ग्रेड कलाकार सनव्वर अली खान और शाहरुख खान ने ग़ज़ल गायन से वातावरण को सुरमयी बना दिया।
लोकसंस्कृति की विविध छटाएँ बिखेरते हुए राहुल वर्मा एवं समूह ने जौनसारी लोक नृत्य, योगंबर पोली एवं समूह ने गढ़वाली लोक नृत्य तथा मनोज सामंत एवं सहयोगी कलाकारों ने कुमाऊँनी लोक गीत प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम में भाग लेने वाले कलाकारों को प्रशस्ति-पत्र एवं स्मृति चिह्न प्रदान किए गए। अंत में कार्यक्रम प्रमुख, सहायक निदेशक (कार्यक्रम) श्री अनिल कुमार भारती ने उपस्थित सभी जनों के प्रति औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
दूरदर्शन केंद्र, देहरादून की यह “सांस्कृतिक संध्या” न केवल उत्तराखण्ड की लोक-परम्पराओं और संगीत-साहित्य की धारा को पुनर्जीवित करने का प्रयास थी, बल्कि यह दूरदर्शन की उस विरासत का भी उत्सव था, जो पिछले 25 वर्षों से दर्शकों तक सत्य, संस्कृति और सरसता का संदेश पहुँचाती आ रही है।