हैदराबाद: वर्ष 2025 का सितंबर महीना खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इस माह में मात्र 15 दिनों के अंतराल पर दो प्रमुख ग्रहण लगने वाले हैं — पहले चंद्रग्रहण और फिर सूर्यग्रहण. वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब एक ही महीने में दो ग्रहण घटित होते हैं, तो यह न केवल प्राकृतिक आपदाओं का संकेतक होता है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उथल-पुथल की भी आशंका बढ़ा देता है.
7 सितंबर 2025 को भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि को साल का अंतिम चंद्रग्रहण लगेगा. यह ग्रहण भारत सहित एशिया, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के कई देशों में दिखाई देगा.यह पूर्ण चंद्रग्रहण होने के कारण इसका धार्मिक और मानसिक प्रभाव विशेष रूप से अधिक माना गया है. वैदिक धर्मशास्त्रों के अनुसार, ग्रहण के समय भोजन, जल, पूजा-पाठ और शुभ कार्यों पर रोक होती है. गर्भवती महिलाओं को विशेष सतर्कता बरतने की सलाह दी जाती है.इसके 15 दिन बाद, 21 सितंबर को अश्विन मास की अमावस्या तिथि पर खंडग्रास सूर्यग्रहण घटित होगा. यह ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा, लेकिन इसका ज्योतिषीय प्रभाव बना रहेगा.
यह ग्रहण न्यूजीलैंड, पूर्वी मलेशिया, दक्षिणी पोलिनेशिया और अंटार्कटिका के कुछ भागों में देखा जाएगा. सूर्यग्रहण का दिन पितृ अमावस्या भी है, जो श्राद्ध और पितृ तर्पण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. ग्रहण के प्रभाव से पितृ दोष और पूर्वजों से जुड़े कर्मों का समाधान करने का यह उपयुक्त समय हो सकता है.
ज्योतिषाचार्य डॉ. सुभाष चौबे के अनुसार, प्राचीन ज्योतिष ग्रंथ बृहत्संहिता में वर्णन है कि जब एक ही माह में चंद्र और सूर्य दोनों ग्रहण घटित होते हैं, तो यह पृथ्वी पर भूकंप, तूफान, महामारी, युद्ध या राजनीतिक उथल-पुथल का कारण बन सकता है. यह संयोग समाज में अस्थिरता, हिंसा, तनाव और आर्थिक संकट को जन्म दे सकता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इन ग्रहणों के प्रभाव से कुछ राशियों पर विशेष रूप से नकारात्मक असर पड़ सकता है, जिनमें कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि शामिल हैं. इन राशियों के जातकों को नौकरी में अस्थिरता, पारिवारिक कलह और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ सकता है.
ग्रहण के दौरान मंत्र जाप, ध्यान, दान, और पूजा-पाठ को विशेष रूप से शुभ और शांति प्रदायक माना गया है. विशेषकर हनुमान चालीसा, शनि मंत्र, और दुर्गा सप्तशती का पाठ मानसिक स्थिरता बनाए रखने में सहायक होता है. इसके अतिरिक्त, ग्रहण से पूर्व और बाद में जलदान, अन्नदान, और पवित्र स्नान का भी बड़ा महत्व बताया गया है.