मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश की मनाही नहीं !

उदय दिनमान डेस्कःअप्रैल 2019 में मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश की आजादी के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई। ये याचिका पुणे में रहने वाले मुस्लिम दंपति ने दायर की है।  इस याचिका  में कहा गया है कि महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी ‘असंवैधानिक’ है और इससे समता के अधिकार और लैंगिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन होता है।

आल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड  ने इस याचिका पर कोर्ट में दिए एफिडेविट में कहा कि इस्लामिक धर्मग्रंथों के मुताबिक इस्लाम मे महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और नमाज पढ़ने को लेकर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध या मनाही नही है।

हालांकि भारतीय उपमहाद्वीप में व्यवहार में  महिलाओं के नमाज पढ़ने और मस्जिदों में प्रवेश बहुत ही सीमित स्तर पर है। समाज की पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं के मस्जिद में नमाज पढ़ने को लेकर हतोत्साहित करती है और महिलाओं को घर मे और घर मे भी एकदम अंदर के हिस्सों में नमाज पढ़ने को प्राथमिकता देती है।

अधिकांश मस्जिदों में भी स्पष्ट रूप से मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश की मनाही नहीं है, लेकिन महिलाओं के लिए शौचालय या उनके लिए एक अलग प्रार्थना क्षेत्र का कोई प्रावधान नहीं है। वे केवल पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं।

महिलाओं के प्रवेश पर इस्लामी कानून क्या है? दरगाह या कब्रिस्तान में महिलाओं के जाने के अधिकार पर इस्लामिक विद्वानों के बीच स्पष्ट मतभेद हैं, वहीं मस्जिद के अंदर नमाज़ अदा करने के महिलाओं के अधिकार पर असहमति कम है यानी कि अधिकांशतः विद्वान सहमत है।

अधिकांश इस्लामी विद्वान इस बात से सहमत हैं कि नमाज़ घर पर पढ़ी जा सकती है लेकिन समूह में ही नमाज को वरीयता है, इसलिए मस्जिद जाने का महत्व है। अधिकांश इस बात से भी सहमत हैं कि बच्चों के पालन-पोषण और अन्य घरेलू जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं को छूट दी गई है, मस्जिद में जाने की मनाही नहीं है।

वास्तव में, कुरान कहीं भी महिलाओं को नमाज़ के लिए मस्जिदों में जाने से मना नहीं करता है। उदाहरण के लिए, सूरह तौबा की आयत 71 में कहा गया है, “ईमान वाले पुरुष और महिलाएं एकदूसरे के पूरक और सहायक हैं। वे (सहयोग) जो कुछ भी अच्छा है उसे बढ़ावा देते हैं और जो कुछ भी बुरा है उसका विरोध करते हैं; नमाज़ स्थापित करें और दान दें, और आज्ञा मानें।

क़ुरान जहाँ भी नमाज़ अदा करने की बात करता है, वह लैंगिक तटस्थता की बात करता है। पांचों वक़्त की दैनिक नमाज़ से पहले, एक प्रार्थना कॉल या अज़ान का उद्घोष मुअज़्ज़िन द्वारा किया जाता है। अज़ान प्रार्थना के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए एक सामान्य निमंत्रण है, जो लोगों को याद दिलाता है, ‘प्रार्थना के लिए आओ, सफलता के लिए आओ। यहाँ पर बिना स्त्री पुरुष के भेदभाव के अज़ान दी जाती है।

जब मुसलमान हज और उमरा के लिए मक्का और मदीना जाते हैं तो पुरुष और महिलाएं दोनों मक्का में हरम शरीफ और मदीना में मस्जिद-ए-नबवी में नमाज़ अदा करते हैं। दोनों जगहों पर पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग हॉल बनाए गए हैं।

साथ ही पूरे पश्चिम एशिया में नमाज़ के लिए मस्जिद में महिलाओं के आने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। अमेरिका और कनाडा में भी, महिलाएं नमाज़ के लिए मस्जिदों में जाती हैं, और रमज़ान में विशेष तरावीह की नमाज़ और कुरानख्वानी के लिए भी वहाँ इकट्ठा होती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *