फिर जिंदा की G2 नीति

वॉशिंगटन: अमेरिका ने चीन से दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए अपनी विदेश नीति और विश्व व्यवस्था में एक बड़े बदलाव का संकेत दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुले तौर पर चीन को कार्यात्मक रूप से समान (फंक्शनल इक्वल) माना है। इससे एक नए द्विध्रुवीय ढांचे (G-2 ड्यूपोली) की शुरुआत हुई है। ट्रंप प्रशासन का यह रुख बीजिंग को अस्तित्व के लिए खतरा मानने के वॉशिंगटन के एक दशक से ज्यादा पुराने दृष्टिकोण को खारिज करता है। यह यूरोपीय संघ, रूस, भारत और जापान जैसी शक्तियों को झटका देते हुए दरकिनार करता है।

डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अपनी मुलाकात से पहले ‘G-2 जल्द ही बैठक करेगा’ की घोषणा की थी। इसके बाद शनिवार को उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह सिर्फ एक रणनीतिक चाल नहीं है। उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ मेरी जी2 मुलाकात दोनों देशों के लिए बहुत अच्छी रही। यह मुलाकात चिरस्थायी शांति और सफलता की ओर ले जाएगी।’

अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने कहा कि वह ट्रंप से सहमत हैं कि अमेरिका और चीन के बीच संबंध पहले कभी इतने अच्छे नहीं रहे। जिनपिंग की ट्रंप से मुलाकात के अलावा हेगसेथ ने मलेशिया में चीन के राष्ट्रीय रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून के साथ बैठक की है। उन्होंने कहा कि चीनी एडमिरल और मैं इस बात पर सहमत हैं कि शांति और अच्छे संबंध हमारे दोनों देशों के लिए सही रास्ता है। उन्होंने चीन के साथ सैन्य चैनल स्थापित करने की भी जानकारी दी है।

ट्रंप और हेगसेथ के बयान एक आश्चर्यजनक बदलाव का संकेत देते हैं। ट्रंप प्रशासन ने पहले कार्यकाल से ही चीन को शत्रुतापूर्ण प्रतिद्वंद्वी कहा है, जिसने अमेरिका की तकनीक चुराई है। इस साल मई में ही सीआईए के उप निदेशक माइकल एलिस ने कहा था कि चीन अमेरिकी सुरक्षा के लिए एक ऐसा अस्तित्वगत खतरा है जिसका हमने पहले कभी सामना नहीं किया। हालांकि अब ट्रंप प्रशासन का रुख चीन पर बदल रहा है।

चीन के संबंध में जी-2 शब्द का इस्तेमाल पहली बार बुश काल में अर्थशास्त्री फ्रेड बर्गस्टन ने किया। इतिहासकार नियाल फर्ग्यूसन ने इसे ‘चिमेरिका’ कहा है। इसमें व्यापार असंतुलन, जलवायु परिवर्तन और वित्तीय स्थिरता जैसी चुनौतियों के लिए अमेरिका-चीन सहयोग की बात की गई है। हालांकि ओबामा के समय यह फीका पड़ गया, जब चीन को आक्रामक शक्ति के रूप में देखा गया। ऐसे में वॉशिंगटन ने चीन के मुकाबले भारत के समर्थन का निर्णय लिया।

साल 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर काफी आक्रामक रुख अपनाया। हालांकि इस साल दूसरी बार प्रेसिडेंट बने ट्रंप ने हालिया महीनों में चीन पर बदला हुआ रुख दिखाया है। वॉशिंगटन के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह बदलाव ट्रंप की ओर से चीन के खिलाफ टैरिफ युद्ध शुरू करने और यह देखने के बाद कि बीजिंग आगे है। टिप्पणीकार इस निष्कर्ष पर एकमत हैं कि टैरिफ युद्ध छेड़ने के बाद ट्रंप ने चीन के मुकाबले ज्यादा रियायतें दी हैं।

एक्सपर्ट का मानना है कि चीन और अमेरिका के इस द्विध्रुवीय ढांचे का तत्काल प्रभाव दुनिया के बड़े हिस्से पर होगा। इसमें खासतौर यूरोपीय संघ, रूस और भारत जैसे कभी प्रभावशाली देश शामिल हैं, जो अमेरिका-चीन ड्यूल स्टेट की स्थित में खुद को गौण पाते हैं। चीन और अमेरिका की दोस्ती पर भारत, रूस जैसे देशों को नए सिरे से सोचने की जरूरत होगी।

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