गैरसैंण: स्थायी राजधानी का कभी न समाप्त होने वाला मुद्दा

उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल का गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाए जाने को लेकर हाल ही में दिया गया बयान एक बार फिर इस पुराने मुद्दे को चर्चा में ले आया। उनका वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया, जिससे इस बहस ने फिर से जोर पकड़ लिया।

यह बयान एक स्थानीय समाचार पत्र में छपी उस खबर पर आधारित था जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा था कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वह गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाएंगे। न्यायमूर्ति थपलियाल ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि उत्तराखंड की जनता को इस मुद्दे पर लगातार गुमराह किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर गैरसैंण को समय रहते राजधानी बना दिया गया होता तो राज्य का विकास आज कहीं बेहतर स्थिति में होता—जबकि वर्तमान में केवल देहरादून तक ही विकास सीमित है।

गैरसैंण को राजधानी बनाने का विचार उस समय जन्मा था जब उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए आंदोलन चल रहा था। अलग राज्य की अवधारणा के समय ही आंदोलनकारियों की यह स्पष्ट सोच थी कि राजधानी गैरसैंण में ही होनी चाहिए, ताकि पर्वतीय क्षेत्रों का संतुलित विकास हो सके।

लेकिन जब नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया, तब गैरसैंण में प्रशासनिक ढांचे की कमी के कारण राजनीतिक और नौकरशाही नेतृत्व ने देहरादून को अस्थायी राजधानी के रूप में स्वीकार कर लिया।

समय के साथ, जब-जब राज्य या केंद्र में चुनाव आते हैं, गैरसैंण को राजधानी बनाने का मुद्दा फिर उठता है, लेकिन चुनावों के बाद यह ठंडे बस्ते में चला जाता है। उत्तराखंड क्रांति दल (UKD), जिसने राज्य आंदोलन की अगुवाई की थी, इस मुद्दे को उठाता रहा है, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन करके और मंत्रीपदों का लाभ लेकर उसने अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता खो दी।

मामले को शांत करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया। लेकिन यह केवल एक प्रतीकात्मक कदम ही बनकर रह गया। हालत यह है कि हाल ही में कुछ विधायकों ने ठंड के मौसम का हवाला देकर गैरसैंण में विधानसभा सत्र न कराने की मांग की। सोचने वाली बात है कि एक ऐसा राज्य जो मुख्य रूप से पर्वतीय क्षेत्रों के लिए बना था, आज उसके प्रतिनिधि ठंड का बहाना बना रहे हैं!

2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एक बार फिर गैरसैंण की बात कर रहे हैं—उन्हें पता है कि यह मुद्दा पहाड़ के लोगों की भावनाओं से जुड़ा है। लेकिन जनता उन्हें शायद ही गंभीरता से लेगी, क्योंकि जब उनके पास सत्ता थी, तब उन्होंने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

यदि गैरसैंण को राजधानी के रूप में विकसित किया जाए, तो यह न केवल आवश्यक बुनियादी ढांचा प्रदान करेगा, बल्कि संस्थागत विकास, कल्याणकारी योजनाओं की पहुंच, और सरकारी तंत्र को पर्वतीय इलाकों तक ले जाएगा। इसका सीधा असर राज्य के सामाजिक और आर्थिक संकेतकों पर पड़ेगा—सेवाओं की बेहतर आपूर्ति, और विकास कार्यों में स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी के रूप में।

– देवेंद्र कुमार बुडाकोटी
देवेंद्र कुमार बुडाकोटी एक समाजशास्त्री हैं और वे पिछले लगभग 40 वर्षों से गैर-सरकारी संगठन (NGO) विकास क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। वे नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र हैं और उनके शोध कार्य का उल्लेख नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अमर्त्य सेन की पुस्तकों में किया गया है।

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