देव आत्माएं करेंगी इच्छाएं पूरी

उदय दिनमान डेस्कःकार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को ही रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा एकसाथ करने से मनानुसार फल की प्राप्ति होती है।

कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को ही रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा एकसाथ करने से मनानुसार फल की प्राप्ति होती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है तथा माता लक्ष्मी का रमा के रूप में पूजन किया जाता है। इस दिन पूजन करने से माता लक्ष्मी व श्री हरि विष्णु शीध्रातीशीध्र प्रसन्न हो जाते हैं।

सनातन धर्म के अनुसार रमा एकादशी का व्रत बुरे कर्मों का नाश करके पुण्य परिणाम को जागृत करता है। जब पापों का नाश होता है तो शुभ सूचनाएं स्वयं ही आनी शुरू हो जाती हैं। इस दिन सुबह के समय स्वच्छ वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु व लक्ष्मी जी को फूल, धूप, दीप व तुलसी के पत्ते अर्पण करके उनकी पूजा करनी चाहिए।

मान्यताओं के अनुसार यह पूजा कामधेनु और चिंतामणी के समान फल प्रदान करने वाली मानी जाती है। यदि रमा एकादशी का व्रत सच्चे मन से किया जाये तो देव आत्माएं उनकी इच्छाएं शीघ्र पूर्ण कर देती है। यदि आप आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हैं तो यह व्रत आपके लिये काफी लाभदायक साबित हो सकता है।

पौराणिक युग में मुचुकुंद नामक प्रतापी राजा थे, इनकी एक सुंदर कन्या थी, जिसका नाम चन्द्रभागा था। इनका विवाह राजा चन्द्रसेन के बेटे शोभन के साथ किया गया। शोभन शारीरिक रूप से अत्यंत दुर्बल था तथा भूख को बर्दाशत नहीं कर सकता था। एक बार दोनों मुचुकुंद राजा के राज्य में गये। उसी दौरान रमा एकादशी व्रत की तिथी थी।

चन्द्रभागा को यह सुन चिंता हो गई क्योंकि उसके पिता के राज्य में एकादशी के दिन पशु भी अन्न आदि नहीं खा सकते थे तो मनुष्य की तो बात ही दूर रही। उसने यह बात अपने पति शोभन से कही और कहा अगर आपको कुछ खाना है, तो इस राज्य से दूर किसी अन्य राज्य में जाकर भोजन ग्रहण करना होगा। पूरी बात सुनकर शोभन ने निर्णय लिया कि वह रमा एकादशी का व्रत करेंगे, इसके बाद ईश्वर पर छोड़ देंगे।

रमा एकादशी व्रत संकल्प प्रारम्भ हुआ। शोभन का व्रत बहुत कठिनाई से बीत रहा था, व्रत होते-होते रात बीत गई और शोभन ने प्राण त्याग दिये। पूर्ण विधि विधान के साथ उनकी अंत्येष्टि की गई और उसके बाद उनकी पत्नी चन्द्रभागा अपने पिता के घर ही रहने लगी।

उसने अपना पूरा मन पूजा-पाठ में लगाया और विधि के साथ एकादशी का व्रत किया। दूसरी तरफ शोभन को एकादशी व्रत का पुण्य मिलता है और वो मरने के बाद एक बहुत भव्य देवपुर का राजा बनता है, जिसमें असीमित धन और एश्वर्य हैं।

एक दिन सोम शर्मा नामक ब्रह्माण उस देवपुर के पास से गुजरता है और शोभन को देख पहचान लेता है। उससे पूछता है कि कैसे यह सब ऐश्वर्य प्राप्त हुआ। तब शोभन उसे बताता हैं कि यह सब रमा एकादशी का प्रताप है लेकिन यह सब अस्थिर है। कृपा कर मुझे इसे स्थिर करने का उपाय बताएं।

इसके पश्चात सोम शर्मा उससे विदा लेकर शोभन की पत्नी से मिलने जाते हैं और शोभन के देवपुर का सत्य बताते हैं। चन्द्रभागा यह सुन बहुत खुश होती है और सोम शर्मा से कहती है कि आप मुझे अपने पति से मिलवा दो। तब सोम शर्मा उसे बताते हैं कि यह सब ऐश्वर्य अस्थिर है। तब चन्द्रभागा कहती है कि वो अपने पुण्यो से इस सब को स्थिर कर देगी।

सोम शर्मा अपने मन्त्रों एवं ज्ञान के द्वारा चन्द्रभागा को दिव्य बनाते हैं और शोभन के पास भेजते हैं। तब चन्द्रभागा उससे कहती है मैंने पिछले आठ वर्षाे से नियमित रमा एकादशी का व्रत किया है।

मेरे उन सब जीवन भर के पुण्यों का फल मैं आपको अर्पित करती हूं। उसके ऐसा कहते ही देव नगरी का ऐश्वर्य स्थिर हो जाता है। इस प्रकार रमा एकादशी का महत्व पुराणों में बताया गया है। इसके पालन से जीवन की दुर्बलता कम होती है तथा जीवन पापमुक्त होता है।

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