30 साल बाद मिला न्याय !

मीरजापुर : अपर सत्र न्यायाधीश वायु नंदन मिश्रा ने फर्जी मुकदमे में निर्दोष व्यक्तियों को मिथ्या आरोप लगाकर फंसाने वाले पांच पुलिसकर्मियों को दोषी पाते हुए उन्हें पांच वर्ष की सजा सुनाई। साथ ही 59 हजार रुपये के जुर्माने से दंडित भी किया। कहा कि अर्थदंड न जमा करने पर छह-छह माह की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी।

कोर्ट ने अर्थदंड की 50 प्रतिशत राशि पीड़ित के परिवार को देने का आदेश दिया। आरोपितों में तत्कालीन निरीक्षक अमरेंद्र कांत सिंह, तत्कालीन आरक्षी राम सिंहासन सिंह, दीनानाथ सिंह, रामअचल ओझा व तत्कालीन आरक्षी चालक दिनेश बहादुर सिंह शामिल हैं।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, पुलिस ने भोला तिवारी की मां रामपति के साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया, उनकी पिटाई भी की। इससे आहत रामपति ने पुलिस के सामने ही अपने शरीर पर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगा ली। जब रामपति जलने लगीं तो पुलिस वाले भागे। रामपति की इस घटना में मौत हो गई।

जब भोला तिवारी के भाई सुभाष ने इसकी शिकायत थाने में करनी चाही तो रिपोर्ट नहीं लिखी गई। उन्होंने तत्कालीन समाज एवं महिला कल्याण राज्यमंत्री से शिकायत की। मंत्री प्रेमलता कटियार ने 30 नवंबर, 1992 को मामले की जांच पुलिस महानिदेशक को सौंपी। नौ दिसंबर, 1992 को अपर पुलिस महानिदेश अपराध अनुसंधान विभाग जांच में जुटे। बयान लेने के बाद आरोप पत्र कोर्ट में प्रेषित किया गया।

अभियोजन के अनुसार 24 अगस्त, 1992 को विंध्याचल थाना के विरोही ग्राम निवासी भोला तिवारी के घर पुलिस धमक पड़ी। आरोप लगाया कि वह गांजा का अवैध धंधा करता है। पुलिसकर्मियों के मुताबिक भोला तिवारी पुलिस वालों को देखकर एक बोरी लेकर अपने मकान के छत पर चढ़ गया। बोरी को मकान से नीचे फेंककर छत से कूदकर फरार हो गया। पुलिस ने मौके से बोरी में गांजा बरामद किया और मुकदमा दर्ज कर लिया।

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