भारत के सबसे दिलदार दोस्त ने कर दिया बड़ा ‘खेल’

नई दिल्ली: यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विवादास्पद शांति योजना खटाई में पड़ गई। वहीं, इन सबके बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दिवसीय भारत दौरे पर हैं। यात्रा के दौरान वह 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले हैं। पुतिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ महत्वपूर्ण बैठकें करेंगे।

यह यात्रा दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण में हो रही है, क्योंकि वे भू-राजनीतिक उथल-पुथल से निपटते हुए अपनी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना चाहते हैं। पुतिन की यात्रा की एक प्रमुख प्राथमिकता द्विपक्षीय व्यापार संबंधों को और मजबूत करना है। भारत रूस से S-400 और Su-57 जंगी जेट भी खरीद सकता है। इस पर बातचीत चल रही है।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में भारत का खुला समर्थन किया। पुतिन से जब पूछा गया कि क्या अमेरिका टैरिफ लगाकर भारत पर दबाव डाल रहा है, तो पुतिन ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी दबाव में आने वालों में से नहीं हैं।

पुतिन कि यह टिप्पणी गुरुवार को भारत यात्रा से ठीक पहले आई है। इंटरव्यू में पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए कहा कि दुनिया ने भारत के मजबूत रुख को देखा है। भारत को अपने नेतृत्व पर गर्व हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत-रूस के बीच करीब 90 प्रतिशत से ज्यादा द्विपक्षीय लेन-देन सफलतापूर्वक पूरे हो चुके हैं।

फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, भारत-रूस व्यापार वर्तमान में 70 बिलियन डॉलर का है, लेकिन यह संतुलित नहीं है। भारत रूस से 65 बिलियन डॉलर का सामान आयात करता है, जबकि बदले में केवल 5 बिलियन डॉलर का निर्यात करता है।

नई दिल्ली ने बार-बार इस व्यापार घाटे पर चिंता जताई है। संरचनात्मक असंतुलन को दूर करने के प्रयास में दोनों पक्ष डॉलर आधारित कारोबार के विकल्प भी तलाश रहे हैं। दोनों देशों द्वारा रुपया-रूबल निपटान तंत्र के विस्तार पर चर्चा को आगे बढ़ाने की उम्मीद है, जो एक लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। इसका मकसद तीसरे देशों की मुद्राओं पर निर्भरता कम करना और व्यापार को पश्चिमी प्रतिबंधों और वित्तीय झटकों से बचाना है।

व्यापार के अलावा यूक्रेन संघर्ष मोदी और पुतिन की बातचीत का एक अहम हिस्सा जरूर बनेगा, खासकर जब ट्रंप अपने रुकी हुई शांति योजना को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत ने रूस के साथ अपनी ऊर्जा और रक्षा साझेदारी को मजबूत करते हुए युद्ध पर एक संतुलित तटस्थता बनाए रखी है।

रूस से भारत की दीर्घकालिक रक्षा खरीद में बेहद अहम S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की भी समीक्षा होने की संभावना है। यह प्रणाली भारत की वायु-रक्षा संरचना का केंद्रबिंदु बनी हुई है, भले ही देश अपने सैन्य आपूर्तिकर्ताओं में विविधता ला रहा हो।

भारत अपने कृषि क्षेत्र की सहायता के लिए रूसी उर्वरकों पर बहुत अधिक निर्भर करता है। 2025 की पहली छमाही में रूस से लगभग 25 लाख टन उर्वरक का आयात कर चुका है, जिससे भारत के कुल उर्वरक आयात में रूस की हिस्सेदारी बढ़कर रिकॉर्ड 33% हो गई है।

इसका मतलब है कि भारत द्वारा आयात किए गए हर तीन टन उर्वरकों में से एक टन रूस से आता है। यह वृद्धि 2022 से हुई है और यह रूस के लिए भारत एक महत्वपूर्ण उर्वरक बाजार बन गया है। रूस से मुख्य रूप से फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों (जैसे DAP) और NPK उर्वरकों की आपूर्ति में वृद्धि हुई है। इनकी एक स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करना एक रणनीतिक अनिवार्यता बनी हुई है।

उर्वरक के साथ-साथ ऊर्जा व्यापार, विशेष रूप से कच्चे तेल का व्यापार, यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से तेजी से बढ़ा है। दोनों देश स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, संस्कृति और मीडिया में भी सहयोग की संभावनाएं तलाश रहे हैं, जो पारंपरिक रक्षा-ऊर्जा धुरी से आगे संबंधों को व्यापक बनाने के उनके इरादे का संकेत देता है।

हालिया रिपोर्टों से पता चलता है कि एनर्जी सेक्टर के दिग्गज रोजनेफ्ट और लुकोइल पर ट्रंप के नए प्रतिबंधों के बावजूद भारत में रूसी तेल शिपमेंट में तेजी आई है। ऊर्जा विश्लेषण फर्म केपलर के अनुसार, भारतीय रिफाइनरों ने नवंबर में प्रतिदिन औसतन 1.27 मिलियन बैरल रूसी कच्चा तेल आयात किया। इसमें से अधिकांश बिचौलियों के माध्यम से आया, जो सीधे अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में नहीं आते हैं।

पुतिन की यात्रा की पूर्व संध्या पर रूसी संसद द्वारा भारत के साथ सैन्य रसद समझौते का अनुसमर्थन इस गहराती दोस्ती का स्पष्ट संकेत है। रसद समर्थन का पारस्परिक आदान-प्रदान (RELOS) दोनों देशों को सैन्य कर्मियों, साथ ही सैन्य जहाजों और विमानों के उपयोग के लिए एक-दूसरे की भूमि का उपयोग करने में सक्षम बनाता है।

यह समझौता, सोवियत काल के बाद, दोनों देशों के बीच अब तक का सबसे दूरगामी समझौता है। यह सैन्य और अन्य क्षेत्रों में व्यापक सहयोग की संभावनाओं को खोलता है। भारत, जो तेजी से महत्वपूर्ण होते आर्कटिक क्षेत्र से बहुत दूर है, इस समझौते के तहत उस तक पहुँच भी प्राप्त कर सकता है। भारतीय नौसैनिक जहाज, जिनमें वैज्ञानिक अनुसंधान में शामिल जहाज भी शामिल हैं।

अब आर्कटिक में एक रूसी बंदरगाह पर रुक सकते हैं और अपनी गतिविधियां संचालित कर सकते हैं। अन्य समझौते भी हो सकते हैं, जिनमें भारत द्वारा स्टील्थ लड़ाकू विमान के नवीनतम संस्करण SU-57s, S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली के उन्नत संस्करण और 2 बिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य की परमाणु पनडुब्बी की खरीद शामिल है।

पुतिन ने भारत रवाना होने से पहले मीडिया को बताया था, भारत (चीन के साथ) के साथ संबंधों ने आज की भू-राजनीति के संदर्भ में और भी ज्यादा अहमियत हासिल कर ली है। यह कोई आश्चर्यजनक स्वीकारोक्ति नहीं है, क्योंकि यूरोपीय देशों, खासकर नाटो के सदस्यों ने, हंगरी और सर्बिया जैसे कुछ देशों को छोड़कर लगभग पूरी तरह से रूस से दूरी बना ली है।

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