भारत-अमेरिकी सेनाओं ने दिखाए चीन सीमा पर जौहर

देहरादून : भारत और अमेरिकी सेनाओं ने उत्तराखंड के औली में दो सप्ताह लंबा युद्धाभ्यास किया। जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच बढ़ते रक्षा संबंधों को सुदृढ़ करने के साथ ही कार्यप्रणालियां व रणनीतियों का आदान-प्रदान करना था। इस दौरान दोनों देशों के सैनिकों ने किसी भी प्राकृतिक आपदा के मद्देनजर त्वरित और समन्वित राहत कार्य शुरू करने का भी अभ्यास किया।

वैसे तो इसे द्विपक्षीय सैन्य रणनीति का हिस्सा बताया गया है, पर पूर्वी लद्दाख में चीन सीमा पर जारी गतिरोध के बीच यह युद्धाभ्यास ड्रैगन के लिए भी एक संदेश है। अब तक भारतीय सेना को जंगल वारफेयर यानी जंगल में होने वाले युद्ध में कुशल माना जाता है।

कई देश भारत से यह कला सीखने आते भी हैं, लेकिन औली में हुए युद्धाभ्यास के बाद दुनिया को पता चल जाएगा कि भारतीय सेना हाई एल्टीट्यूट यानी बर्फीली पहाड़ियों और कड़ाके की सर्दी में होने वाली जंग में भी कितनी कुशल है।

औली में जहां यह संयुक्त अभ्यास हुआ, वह करीब साढ़े नौ हजार फुट की ऊंचाई पर, भारत-चीन सीमा से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है। भारतीय सेना ने पहली बार संयुक्त सैन्य अभ्यास के लिए हाई एल्टीट्यूट में फारेन ट्रेनिंग नोड बनाया है। हाई एल्टीट्यूट में किस तरह एकदम खड़ी चढ़ाई चढ़ी जा सकती है, चोटियों के बीच में छुपे दुश्मन से कैसे मोर्चा लिया जा सकता है।

अगर दुश्मन किसी को बंधक बना ले तो कैसे उससे निपटा जा सकता है, इसका अभ्यास यहां हुआ। युद्धाभ्यास के समय दोनों देशों के सैनिक कई परिस्थितियों पर पर खुद की परख की। सेना के जनसंपर्क अधिकारी कर्नल सुधीर चमोली ने बताया कि यह प्रशिक्षण आज समाप्त हो जाएगा। इस दौरान दोनों देशों के सात सौ सैनिक अधिकारी मौजूद रहे। बताया गया कि अमेरिका से 350 अधिकारी, सैनिक इस युद्धाभ्यास में शामिल हुए।

भारत चीन सीमा पर इस युद्धाभ्यास को सैन्य विशेषज्ञ महत्वपूर्ण मान रहे हैं। इस अभ्यास के कई कूटनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं।अमेरिका की सेना आधुनिक स्वचालित हथियारों से लैस होकर प्रशिक्षण में सम्मलित हुई। वहीं, भारतीय सेना के पहले चील कमांडो अर्जुन का भी प्रदर्शन किया गया। यह एंटी ड्रोन चील है। भारतीय सेना चीलों और कुत्तों को ऐसे मिशनों के लिए प्रशिक्षित कर रही है।

ये प्रशिक्षण मेरठ के रीमाउंट वेटरीनरी कोर में दिया जा रहा है। जिसके बाद ड्रोंस को मार गिराने के लिए एंटी ड्रोन गंस की जरूरत नहीं पड़ेगी। चीलों की खासियत ये है कि ऊंचाई पर उड़ते हैं, निगाह तेज होती है और दूर तक देख सकते हैं।

जब भी दुश्मन का ड्रोन भारतीय सीमा में घुसेगा चील उसे अपने नुकीले पंजों और ताकतवर पंखों से मार गिराएंगे। इस दौरान एमआइ 17 हेलीकाप्टर के साथ आपरेशन, सैनिकों के निहत्थे होने के बाद भी मोर्चे पर जुटे रहना सहित अन्य प्रशिक्षण दोनों देश की सेनाओं ने आदान प्रदान किया है।

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