जौनसार-बावर: माघ मरोज की तैयारी शुरू, एक माह तक चलेगा पर्व

साहिया। अनूठी लोक संस्कृति के लिए विख्यात जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में जनवरी के दूसरे हफ्ते में माघ-मरोज पर्व का आगाज हो जाएगा। पूरे एक माह तक चलने वाले इस पर्व के जश्न में हर कोई डूब जाता है। हर गांव के पंचायती आंगन लोक संस्कृति से गुलजार हो जाते हैं।

पर्व की शुरुआत बावर से होती है, जहां पर कयलू महाराज के मंदिर में चुराच का बकरा कटने के बाद ही समूचे जौनसार-बावर इलाके में माघ-मरोज पर्व की परंपरागत शुरुआत होती है। माघ-मरोज के चलते क्षेत्र में बकरों की डिमांड भी खूब बढ़ी है, मवेशी पालक व मीट व्यापारियों की पूरे माह चांदी रहती है। जौनसार-बावर में यहां हर साल जनवरी के शुरुआती चरण से पूरे एक माह माघ-मरोज पर्व परपंरागत तरीके से मनाई जाती है।

सालभर में एक बार आयोजित होने वाले इस पर्व की शुरुआत सिद्धपीठ श्री महासू देवता मंदिर हनोल के पास स्थित कयलू महाराज मंदिर से होती है। कयलू मंदिर में चुराच के बकरे की बलि के बाद उसके मांस का कुछ हिस्सा किरमिर राक्षस के नाम पर टोंस नदी में बहाया जाता है। नरभक्षी कहे जाने वाले किरमिर राक्षस के आंतक से क्षेत्रवासियों को मुक्ति मिलने की खुशी में जौनसार-बावर की सभी 39 खतों में लोग माघ-मरोज का जश्न धूमधाम से मनाते हैं। इस पर्व की तैयारियों के चलते माघ-मरोज के लिए क्षेत्र में सुडौल बकरों की खरीदारी शुरू हो गई है।

जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में माघ-मरोज पर्व के दौरान पूरे माह दावतों का दौर शुरू हो जाता है। पंचायती आंगन जौनसारी परंपरागत संस्कृति से गुलजार हो जाते हैं। पर्व का जश्न जौनसार-बावर की सभी 39 खतों में होता है। गांव से शहर गए नौकरी पेशा और अन्य कारोबारी पैतृक गांव आकर घर-परिवार के साथ माघ-मरोज का जश्न मनाते हैं। घर-घर में दावतों का दौर शुरू होने पर रिश्तेदारों, नातेदार व अन्य मेहमानों को दावत के लिए बुलाया जाता है।

क्षेत्र के पंचायती आंगन में ढोल-दमोऊ की थाप पर हारुल के साथ जौनसारी तांदी-नृत्य की प्रस्तुति दी जाती है। रात्रि भोज के बाद घरों में खांजरी व ढोलक की थाप पर माघ-मरोज के गीतों पर नाच-गाना किया जाता है। माघ-मरोज में मेहमाननवाजी का बड़ा महत्व है। लोग घर आए मेहमान की खूब खातिरदारी करते हैं। माघ-मरोज मनाने बाहरी क्षेत्र से आए कई अन्य लोग जौनसार-बावर में मेहमान नवाजी की तारीफ करते नहीं थकते।

 

बावर क्षेत्र में हर साल पौष मास में 26 गते को चुराच व 27 गते पौष को किसराट का त्योहार मनाया जाता है। कयलू मंदिर में चुराच के पहले बकरे की बलि के बाद बावर-देवघार क्षेत्र की 11 खतों में किसराट के दिन लोग घर-घर बकरे की बलि देते हैं। जबकि जौनसार की 28 खतों में इसके अगले दिन माघ-मरोज पर्व मनाया जाता है।

सुबह मंदिर में मत्था टेकने के बाद खाने में पहाड़ी लाल चावल व उड़द की खिचड़ी बनती है, जिसे अखरोट-भंगजीरा के बुरादे व घी के साथ मिलाकर परपंरागत लजीज व्यंजन का स्वाद चखा जाता है। रात के खाने का मीनू बदल जाता है। पहाड़ी लाल चावल, मीट व रोटी का स्वाद चखने के बाद पंचायती आंगन में हारुल, झेंता, रासो आदि नृत्य के साथ माघ-मरोज का जश्न शुरू हो जाता है।

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