जोशीमठः प्रभावितों के पुनर्वास से पहले स्थलों की क्षमता परखेगी GSI

देहरादून: जोशीमठ में भूधंसाव की स्थिति गंभीर होने के साथ अब प्रभावित परिवारों के पुनर्वास को लेकर सरकार गंभीरता के साथ प्रयास कर रही है। पुनर्वास के लिए राज्य सरकार ने चमोली जिले में ही तीन स्थलों का चयन किया है।

हालांकि, किसी भी विकल्प पर अंतिम रूप से आगे बढ़ने से पहले सरकार ने वहां की जमीन की क्षमता का आकलन कराने का भी निर्णय लिया है। इसका जिम्मा भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआइ) को दिया गया है।

जीएसआइ उत्तराखंड के निदेशक मनोज कायस्थ के मुताबिक, सरकार ने पुनर्वास के लिए जोशीमठ से करीब 12 किलोमीटर दूरी पर स्थित कोटी फार्म समेत पीपलकोटी व गौचर का विकल्प सामने रखा है। किसी भी निर्णय पर आगे बढ़ने से पहले सरकार वहां की जमीन की क्षमता को लेकर आश्वस्त होना चाहती है।

पुनर्वास के प्रस्तावित स्थलों के आकलन की दिशा में जीएसआइ ने काम शुरू कर दिया है। इसमें देखा जाएगा कि प्रस्तावित स्थल आपदा के लिहाज से कितने सुरक्षित हैं। साथ ही वहां की भार वहन करने की क्षमता का आकलन भी किया जाएगा। इसके लिए सभी क्षेत्रों का नक्शा तैयार किया जाएगा।

कोटी फार्म : यह स्थल जोशीमठ के सर्वाधिक करीब है। इसकी दूरी जोशीमठ से करीब 12 किलोमीटर है। यहां राजस्व की भूमि पर पुनर्वास की संभावना तलाश की जाएगी।
पीपलकोटी : अलकनंदा नदी के किनारे बसे पीपलकोटी की दूरी जोशीमठ से करीब 36 किलोमीटर है। वहीं, चमोली से यहां की दूरी करीब 17 किलोमीटर है। यह क्षेत्र समुद्र तल से 1260 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

गौचर : समुद्र तल से करीब 800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गौचर एक हिल स्टेशन है, लेकिन यहां का अधिकांश भूभाग मैदानी है। गौचर राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों का सबसे बड़ा मैदानी भूभाग है। यहां की आबादी करीब 15 हजार है और इसकी दूरी जोशीमठ से करीब 88 किलोमीटर है।

जोशीमठ में भूधंसाव की स्थिति का आकलन भूगर्भ के लिहाज से करने के लिए नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआइ) की टीम को भी हैदराबाद से रवाना किया गया है। इस संस्थान को केंद्र सरकार की तरफ से अधिकृत किया गया है।

एनजीआरआइ की टीम वरिष्ठ विज्ञानी डा. आनंद पांडे के नेतृत्व में काम करेगी। जिसका मुख्य काम जोशीमठ के भूगर्भ का नक्शा तैयार कर दरारों की स्थिति का पता लगाना होगा। जिसमें स्पष्ट किया जाएगा कि जमीन पर उभरी दरारें भूगर्भ में कितनी गहराई तक हैं और इनमें क्या बदलाव देखने को मिल रहा है।वहीं, इसी तरह का काम राज्य सरकार की तरफ से वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान को भी सौंपा गया है। वाडिया की टीम ने धरातल पर काम भी शुरू कर दिया है।

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