जोशीमठ: रोज बदल रहे हालात

देहरादून: जोशीमठ में भू-धंसाव की ताजा स्थितियों के बीच करीब 20 दिन बीत जाने के बाद रोज हालात बदल रहे हैं। राज्य सरकार बदलती परिस्थितियों के अनुसार फैसले ले रही है। सरकार को आठ वैज्ञानिक संस्थानों की फाइनल रिपोर्ट का इंतजार है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही जोशीमठ का भविष्य तय होगा। मोटे तौर पर अमर उजाला ने इन आठ एजेंसियां के काम की पड़ताल की है।

सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, रुड़की (सीबीआरआई) को सरकार ने नोडल एजेंसी बनाया है। जो अपने काम के साथ ही सभी दूसरी एजेंसी की रिपोर्ट का अध्ययन करेगी और रिपोर्ट देने के साथ ही सरकार के साथ समन्वय बनाने का काम करेगी।

जोशीमठ में असुरक्षित हुए भवनों का चिह्नीकरण, दरार वाले भवनों में क्रेक मीटर लगाकर उनकी मॉनिटरिंग और असुरक्षित भवनों को तोड़ने का काम संस्थान के वैज्ञानिकों की देखरेख में किया जा रहा है।

इसके अलावा अस्थाई पुनर्वास के लिए प्री-फेब्रीकेटेड मॉडल भवन भी संस्थान की देखरेख में उसकी और से नामित एजेंसी की ओर से बनवाए जा रहे हैं। संस्थान के पांच वैज्ञानिकों की देखरेख में 30 इंजीनियरों की टीम जोशीमठ में काम कर रही है। संस्थान की ओर से अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट तीन सप्ताह में सौंपनी है।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान जोशमीठ में सिस्मोलॉजी भू-भौतिकीय अन्वेषण के साथ ही जियोफिजिकल सर्वेक्षण का काम कर रहा है। संस्थान की ओर से यहां भूकंपीय हलचलों को भांपने के लिए तीन भूकंपीय जांच स्टेशन स्थापित कर दिए गए हैं।

इसके अलावा संस्थान के सात वैज्ञानिकों की टीम ग्राउंड जीरो पर लगातार काम कर रही है। अब तक इस टीम की ओर से दो जियोफिजिकल प्रोफाइल का काम पूरा कर लिया गया है।

जिसका अब लैब में डाटा अन्वेषण किया जा रहा है। संस्थान की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद सरकार को यह फैसला लेने में आसानी होगी कि वहां पुनर्निर्माण किया जाए या नहीं। संस्थान को अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट दो सप्ताह और फाइनल रिपोर्ट दो माह में सौंपनी है।

आईआईटी रुड़की की ओर से जोशीमठ में भू-तकनीकी अध्ययन (जियोटेक्निकल सर्वे) किया जा रहा है। इस अध्ययन में संस्थान के वैज्ञानिक पता लगाएंगे कि जोशीमठ के भूगर्भ में मिट्टी और पत्थरों की क्या स्थिति है। उसकी भार क्षमता कितनी है।

उस पर कितना बोझ डाला जा सकता है। कुल मिलाकर जब यह बात सामने आएगी कि प्रभावित इलाकों में नए भवन बनाने हैं या नहीं, पुराने भवनों को ठीक किया जाना है या नहीं, तब आईआईटी रिपोर्ट महत्वूर्ण होगी।

एनजीआरआई, हैदराबाद के 10 वैज्ञानिकों की टीम सबसर्फेस फिजिकल मैपिंग का काम करेगी। जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वे के जरिए जोशीमठ में 30 से 50 मीटर गहराई तक का भूगर्भ का मैप तैयार करेगी। इससे पानी के जमाव और मिट्टी की संरचना को समझने में मदद मिलेगी।

मिट्टी की मोटाई को मापने के लिए टीम एमएएसडब्ल्यू (मल्टी-चैनल एनालिसिस ऑफ सर्फेस वेव) प्रणाली का इस्तेमाल कर रही है। इसके अलावा टीम ‘ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार’ (भूमि की तह की स्थिति का पता लगाने वाला रडार) का इस्तेमाल कर भूमि के नीचे की मिट्टी में पड़ी मामूली दरारों और कम मात्रा में पानी के जमाव का पता लगाएगी।

इससे वहां जमीन के भीतर मौजूद पानी के भंडार, उसके स्रोत और बहने के रास्त का पता चलेगा। संस्थान को दो सप्ताह में अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट और तीन सप्ताह में अपनी अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंपनी है।

राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) की टीम जोशीमठ में हाईड्रोलॉजिकल सर्वे कर रही है। संस्थान की टीम यहां एक जमीन पर सतह और भूगर्भ में बहने वाले पानी का पूरा मैप तैयार करेगी। इस काम को एनआईएच एनजीआरआई के साथ मिलकर पूरा करेगा।

संस्थान की रिपोर्ट मिलने के बाद पता चल सकेगा कि वहां पानी की क्या स्थिति है और भविष्य में इससे क्या खतरा हो सकता है। इसके अलावा संस्थान की ओर से पानी के नमूनों की जांच भी की जा रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि अचानक फूटे पानी के स्रोतों का उद्गम कहां से है और उस पानी में क्या-क्या तत्व मौजूद हैं।

भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) की टीम जोशीमठ में प्रभावित क्षेत्र का भूमि सर्वेक्षण एवं पुनर्वास किए जाने के लिए चयनित भूमि का भूगर्भीय अध्ययन कर रही है। इसके अलावा जीएसआई एक सेंमीटर बराबर 50 मीटर स्केल पर पूरे जोशीमठ का हाई रेजूल्यूशन भौगोलिक मानचित्र तैयार करेगी। इन मानचित्रों के माध्यम से बहुत छोटे स्तर पर भी जोशीमठ की भौगोलिक स्थिति ज्ञात हो सकेगी।

सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) जमीन के भीतर स्प्रींग वाटर और उसके बहने की दिशा और दशा का पता लगाएगा। सीजीडब्ल्यबी की रिपोर्ट भविष्य में जोशीमठ के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण रहेगी।

इस रिपोर्ट से जोशीमठ के भूजल संसाधनों के प्रबंधन, अन्वेषण, मानीटरिंग, आकलन, संवर्धन एवं विनियमन का पता चल सकेगा। सीजीडब्ल्यूबी के चार वैज्ञानिकों की टीम अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट एक सप्ताह और अंतिम रिपोर्ट तीन सप्ताह में सौंपेगी।

भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आईआईआरएस) की टीम देहरादून से जोशीमठ के ग्राउंड मूवमेंट पर लगातार नजर बनाए हुए है। पिछले दिनों इसरों की ओर से जोशीमठ के कुछ सेटेलाइट चित्र अपनी वेबसाइट पर प्रसारित किए गए थे, लेकिन किन्हीं कारणों से इन्हें हटा दिया गया।

यह संस्थान डिनसार एडवांस तकनीक से जोशीमठ के भूधंसाव सा खिसकने की प्रक्रिया पर नजर बनाए हुए है। आईआईआरएस को एक सप्ताह में अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट और तीन माह में अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंपेगा। जिसमें जोशीमठ के लैंड मूवमेंट के सेटेलाइट फोटोग्राफ्स उपलब्ध होंगे।

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