5000 हजार से अधिक महिलाओं-बच्चों को यौन हिंसा के दलदल से निकाला

नई दिल्लीः 1990 के दशक में दो पत्रकार एक स्थानीय दैनिक के लिए मैसूर में घोड़ा गाड़ी चालकों की दुर्दशा को कवर करने वाले एक असाइनमेंट पर गए थे। यहां वे दोनों नशे में धुत सेक्स वर्कर से टकरा गए। फिर क्या, उस सेक्स वर्कर ने उन दोनों पर गालियों की बौछार कर दी।

उसी समय महिलाओं की दुर्दशा के प्रति सहानुभूति रखने वाले स्टैनली वर्गीस और एमएल परशुराम ने उनके और समाज में हाशिये पर पड़े बच्चों के लिए काम करने की ठान ली। इसके लिए इन्होंने अपनी नौकरी तक छोड़ दी और ओडानाडी एनजीओ की शुरुआत की। स्टैनली-परशु की यह जोड़ी हिट है। कई लोगों को लगता है कि यह एक ही आदमी है। आखिर लोगों को यह भ्रम हो भी क्यों ना। आखिर ये नाम तीन दशक से एक साथ जो है।

आज, ओडानाडी अनाथ लड़कों और लड़कियों को आवासीय और शैक्षिक सहायता भी प्रदान करता है। इसमें प्राइमरी स्कूल के छात्रों से लेकर मास्टर्स पाठ्यक्रमों में पढ़ने वाले युवा भी शामिल हैं। एनजीओ के आज नीदरलैंड, स्वीडन, यूके, कनाडा और यूएस में कार्यालय हैं।

कर्नाटक में, ओडनाडी यौन हिंसा की शिकार महिलाओं और लड़कियों की मदद और जमीनी स्तर पर काम करने के लिए जाना जाता है। अपने मजबूत नेटवर्क के माध्यम से, एनजीओ ने कम से कम 13,000 महिलाओं को तस्करों के चंगुल से छुड़ाने में मदद की है। इसने सेक्स वर्करों के बच्चों और यौन हिंसा के शिकार लोगों के लिए शिक्षण संस्थाओं में 1 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

करीब 3 दशक बीतने के बाद स्टैनली और परशुराम का एनजीओ ओडानाडी कर्नाटक के अलग-अलग हिस्सों में जाते हैं। ये लोग मुसीबत में फंसी महिलाओं और बच्चों के लिए काम करते हैं। ये लोग अब तक 5000 महिलाओं और बच्चों को यौन हिंसा के दलदल से निकाल चुके हैं। ये सब मैसूर समेत अन्य जगहों पर सेक्स वर्कर के रूप में काम करने को मजबूर थे।

परशुराम बताते हैं कि हम लोग करीब तीन हजार महिलाओं और बच्चों का पुनर्वास कर चुके हैं। उन्होंने कहा, खुशी की बात यह है कि कई परिवार आगे आए हैं जिन्होंने अपने लड़कों की शादी हमारे यहां रह रही लड़कियों से की है। हम लोग अब ऐसी लगभग 100 शादियां करवा चुके हैं।

ओडनाडी के पास दो अलग-अलग भवन है। इनमें से एक लड़कियों और दूसरा लड़कों के लिए है। एनजीओ में 24 लोगों का स्टाफ काम करता है। इसमें तीन प्रफेशनल काउंसलर भी शामिल हैं। एनजीओ अपने यहां रहने वाले महिलाओं, लड़कियों और बच्चों की देखभाल पर हर महीने करीब तीन लाख रुपये खर्च करता है। एनजीओ पुलिस को कोठों की सूचना देने और छापों में मदद करने के साथ ही यौन हिंसा का शिकार हुए महिलाओं और बच्चों की मदद के लिए आगे रहता है।

एनजीओ इस तरह की महिलाओं और बच्चों से संपर्क कर उन्हें कानूनी मदद के साथ ही उनके रहने, पढ़ाई करने और उनके स्किल को बढ़ावा देने में भी मदद करता है। इससे उन लोगों को मुख्यधारा में शामिल होने में कोई दिक्कत नहीं होती है।

स्टेनली के अनुसार एनजीओ ने 3 आर पर काम करता है। ये रेस्क्यू, रिहैबिलिटेट और रिइन्टीग्रेट। ओडानाडी का कन्नड़ का अर्थ है एक साथी जो बिना शर्त व्यक्ति को स्वीकार करता है और एक छाया की तरह व्यक्ति के साथ चलता है। स्टैनली और परशुराम ने पहले यौनकर्मियों के बच्चों की देखभाल से शुरुआत की। इसके बाद महिलाओं को किराये के घर में बसने में मदद की।

इन दोनों को करीब चार दशक से जानने वाले एक्टिविस्ट और थिएटर डायरेक्टर प्रसाद कुंडुर कहते हैं कि इन दोनों को चारों तरफ से खतरे का सामना करना पड़ता है। इसमें पुलिस, असामाजिक तत्व और अंडरवर्ल्ड से खतरा भी शामिल है। ये लोग अपने जीवन को खतरे में डालकर यौन पीड़ित महिलाओं के लिए लड़ रहे हैं।

कई बार इन दोनों की इनकम टैक्स विभाग में शिकायत भी की गई। कहा गया कि ये लोग समाज सेवा के नाम पर पैसा बना रहे हैं। इसकी जांच हुई और जांच करने वाले अधिकारी पैसों की कमी की स्थिति से हैरान थे। अधिकारी ने हमसे एक जगह के लिए आवेदन करने को कहा।

परशुराम ने बताया कि दानकर्ताओं की मदद से इन दोनों ने एक पुनर्वास केंद्र बनाया। इसमें एनजीओ में लाए गए बच्चों की जरूरतों को पूरा किया जाता था। कुंडुर कहते हैं कि स्थितियां अब बदल गई हैं। अब समाज में ओडानाडी को लेकर समर्थन देखने को मिलता है। राज्य में सभी जगह अब इस एनजीओ की पहचान है।

हाल ही में चित्रदुर्ग के मुरुगा मठ के संत शिवमूर्ति स्वामी के खिलाफ कथित रूप से यौन उत्पीड़न का आरोप लगा कर वहां से भागीदो लड़कियां बेंगलुरु पहुंची तो उन्हें एक ऑटोरिक्शा वाले ने ओडानाडी से संपर्क करने को कहा। स्टैनली और परशुराम ने उन लड़कियों को अपने यहां लेकर आए। उनकी काउंसलिंग कराई और उन्हें हर तरह से कानूनी मदद उपलब्ध करा रहे हैं।

जब टाइम्स ऑफ इंडिया की टीम मैसूरू में एनजीओ के पुनर्वास केंद्र पहुंची तो उस समय परशुराम हाईप्रोफाइल मुरुगा मठ केस में अपने कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर मैसूरू पुलिस को पत्र लिखने की तैयारी में जुटे हुए थे। 54 साल के स्टैनली कहते हैं कि ये बेजुबानों और बच्चों के लिए लड़ने के खतरे हैं। उनका कहना है कि दशकों के संघर्ष के बाद अब उन्हें इसकी आदत हो गई है।

स्टैनली और परशुराम सबसे पहले मैसूरू में एक सामाजिक संगठन के कार्यक्रम में मिले थे। कोडागु से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद स्टैनली लॉ की पढ़ाई करने मैसूरू आ गए थे। परशुराम भी यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूरू में में इकोनॉमिक्स में मास्टर्स की पढ़ाई कर रहे थे। उस दौरान स्टैनली अकसर परशुराम के किराये के कमरे पर डेरा जमाए रहते थे।

अब परशुराम कहते हैं कि हमारा फोकस एनजीओ में रहने वाले बच्चों के बिहेवियरल इश्यूज पर होता है। इसके साथ ही उनके शिक्षा को बढ़ावा देना है। इससे उनके पुनर्वास में मदद मिलती है। परशुराम की मां कहती हैं कि वंचित महिलाओं और बच्चों की मदद करने के चक्कर में उनके बेटे ने अपना लेक्चरर बनने का सपना खत्म कर दिया।

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