नई दिल्ली :भारत-ब्रिटेन व्यापार और मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) जैसे द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों पर निगरानी और समीक्षा करने वाली प्रतिष्ठित भारतीय और ब्रिटिश एजेंसियों व संस्थानों का मानना है कि भारत और ब्रिटेन के बीच संपन्न हुआ ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) केवल दो देशों के बीच व्यापार बढ़ाने तक सीमित नहीं है। इससे वैश्विक रणनीतिक समीकरण, निवेश के प्रवाह, रोजगार के अवसर और उपभोक्ताओं के अनुभवों में भी व्यापक परिवर्तन की संभावना है। यह समझौता न केवल उद्योगों और व्यापारियों के लिए नए द्वार खोलेगा बल्कि आम भारतीय को भी सस्ते उत्पादों, बेहतर सेवाओं और नए रोजगार अवसरों के रूप में सीधा लाभ पहुंचाएगा।
रिसर्च एंड इनफॉरमेशन सिस्टम्स फॉर डेवलपिंग कंट्रीज (आरआईएस) और ब्रिटिश चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता एक विन-विन करार है जो केवल आर्थिक आंकड़ों तक सीमित नहीं है। यह भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, डिजिटल इकोनॉमी और रणनीतिक साझेदारी के केन्द्र में स्थापित करता है। यह समझौता भविष्य में भारत की एफटीए कूटनीति की दिशा तय करने वाला मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है और विश्व को यह संदेश देता है कि भारत अब सिर्फ उभरती अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि नीति-निर्माता वैश्विक शक्ति बन रहा है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री और विदेश व्यापार विशेषज्ञ प्रो. डॉ. राहुल पटेल कहते हैं कि यह समझौता भारत की रणनीतिक व्यापार नीति की परिपक्वता का प्रमाण है। यह सिर्फ एक एफटीए ही नहीं भारतीय उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे लाने का एक मजबूत मंच है।इस मुक्त व्यापार समझौते के तहत भारत और ब्रिटेन ने वस्तुओं और सेवाओं के आयात-निर्यात पर लगने वाले कस्टम शुल्क में कटौती, गैर-शुल्कीय बाधाओं को सरल करने, डिजिटल व्यापार, वित्तीय सेवाएं, शिक्षा और निवेश जैसे क्षेत्रों में सहयोग को प्रोत्साहित करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
इसी तरह समझौता लागू होने के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार 30 अरब डॉलर से 2030 तक दोगुना होने की संभावना जताई जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत के पूर्व प्रतिनिधि डॉ. सुरजीत भल्ला का कहना है कि भारत को अब ऐसी एफटीए रणनीति चाहिए थी जो केवल ‘व्यापार मुक्त’ न हो बल्कि ‘विकास अनुकूल’ भी हो। यूके के साथ यह समझौता इस दिशा में सही कदम है और इससे सेवा क्षेत्र में भारत ताकत और बढ़ेगी।
वैश्विक व्यापारिक ताकत के रूप में भारत की छवि निखरेगी। इस समझौते से भारत की छवि एक उदारीकृत, भरोसेमंद और सहयोगी व्यापारिक राष्ट्र के रूप में मजबूत होगी। विकसित देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते करने की भारत की क्षमता बढ़ेगी जिससे आने वाले समय में अमेरिका, यूरोपीय संघ और खाड़ी देशों के साथ वार्ता में भारत को अधिक प्रभाव मिलेगा।निर्यात आधारित विकास को बढ़ावा मिलेगा।
ब्रिटेन में भारतीय उत्पादों जैसे वस्त्र, रसायन, फार्मा, ऑटो-पुर्जे, खाद्य वस्तुएं पर लगने वाले शुल्क में कटौती से भारतीय निर्यातकों को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलेगी। इससे भारत का निर्यात बढ़ेगा और देश का ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।विदेशी निवेश (एफडीआई) में वृद्धि होगी। ब्रिटिश कंपनियों को भारत में आने की प्रक्रिया आसान होगी, जिससे निर्माण, रिटेल, शिक्षा और वित्तीय सेवा क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा। इससे स्थानीय उद्योगों में तकनीक, प्रबंधन और पूंजी का संचार होगा जो भारत के औद्योगिक विकास को गति देगा।
रोजगार और कौशल विकास को बल मिलेगा।ब्रिटिश निवेश और व्यापारिक विस्तार से देश में विशेषकर युवा आबादी के लिए रोजगार के नए अवसर बनेंगे। शिक्षा और सेवा क्षेत्रों में सहयोग से कौशल विकास के नए कार्यक्रम और प्रशिक्षण संस्थान भी आ सकते हैं।मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को मजबूती मिलेगी। इस समझौते से घरेलू उद्योगों को नए बाजार और उच्च गुणवत्ता वाले इनपुट्स सुलभ होंगे। इससे मेक इन इंडिया अभियान को प्रोत्साहन मिलेगा और भारत वैश्विक विनिर्माण हब बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर हो सकेगा।नीति-निर्माण में रणनीतिक लाभ होगा।यह समझौता भारत को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के ढांचे से अलग द्विपक्षीय स्तर पर अपनी शर्तों पर समझौते करने की रणनीतिक छूट देता है। इससे भारत का आर्थिक कूटनीतिक प्रभाव और नीतिगत आत्मनिर्भरता दोनों बढ़ेंगे।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट्स ऑर्गेनाइजेशंस(एफ आईईओ) से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार शुल्क कटौती निर्यात बढ़ाने में काफी लाभदायक होगी। भारत को ब्रिटेन की विशाल उपभोक्ता अर्थव्यवस्था में अधिक प्रतिस्पर्धी तरीके से प्रवेश मिलेगा। रेडीमेड गारमेंट्स, ज्वैलरी, फार्मास्युटिकल्स, मशीनरी और आईटी सर्विसेज जैसे क्षेत्रों में टैरिफ कम होने से भारत के निर्यातकों को सीधा लाभ होगा।
इसी तरह यूके डिपार्टमेंट ऑफ बिजनेस एंड ट्रेड(डीबीटी) के अनुसार इस समझौते से ब्रिटिश कंपनियों को बृहद भारतीय भारतीय बाजार मिलेगा। खासतौर पर तेजी से बढ़ते मिडिल क्लास बाजार में पांव जमाने का मौका मिलेगा। ब्रिटेन की स्कॉच व्हिस्की, हाई-एंड कारें, फाइनेंशियल सर्विसेज और एजुकेशन सेक्टर को भारत में प्रवेश और विस्तार के लिए सरल और लागत प्रभावी रास्ता मिलेगा। इससे ब्रिटिश निवेशकों को भी भारत में अधिक अवसर मिलेंगे।
यूके ट्रेड पॉलिसी ऑब्जर्वेटरी के वरिष्ठ व्यापार विश्लेषक एडवर्ड हंट का कहना है कि ब्रिटेन के लिए यह समझौता ब्रेक्सिट के बाद का सबसे रणनीतिक एफटीए है। भारत के विशाल उपभोक्ता और डिजिटल बाजार तक पहुंच बनाने के लिए यह एक ऐतिहासिक अवसर है। विशेष रूप से फाइनेंशियल सर्विसेज और शिक्षा क्षेत्र को बड़ा फायदा होगा। समझौते के तहत दोनों देशों के बीच निवेश वरना भी लगभग तय है।
समझौते में निवेश सुरक्षा और विवाद समाधान तंत्र को भी शामिल किया गया है, जिससे दोनों देशों के उद्योगपतियों को दीर्घकालिक स्थिरता और भरोसे का वातावरण मिलेगा। हाउस ऑफ लॉर्ड्स के पूर्व व्यापार सलाहकार लॉर्ड जॉर्ज पार्कर के अनुसार यह डील सिर्फ व्यापार नहीं बल्कि ब्रिटेन-भारत संबंधों की रणनीतिक गहराई का प्रतीक है। ब्रिटिश कंपनियों को भारत में दीर्घकालिक निवेश की स्थिरता और संरक्षित माहौल मिलेगा।
दोनों देशों की विशेषज्ञों का कहना है इस समझौते से आम उपभोक्ता को भी सीधे राहत मिलेगी। ब्रिटिश चैंबर ऑफ कॉमर्स के चीफ इकोनॉमिस्ट अमांडा टेनेट के अनुसार इस एफटीए के जरिए ब्रिटिश एमएसएमई भारत के विशाल मिडिल-क्लास बाजार में प्रवेश कर पाएंगे। इससे द्विपक्षीय व्यापार 2030 तक दोगुना हो सकता है और दोनों देशों के उपभोक्ताओं को भी इसका सीधा लाभ होगा। टैरिफ घटने से कई आयातित वस्तुएं जैसे ब्रिटिश चॉकलेट, व्हिस्की, सौंदर्य प्रसाधन और कुछ विशेष तकनीकी उत्पाद भारतीय बाजार में सस्ते होंगे।
इससे मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं को फायदा होगा। निर्यात में वृद्धि और ब्रिटिश निवेश से औद्योगिक गतिविधियां बढ़ेंगी, जिससे खासकर विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। शिक्षा और वीजा में भी सहूलियत मिली मिलेगी। इस समझौते से छात्रों और पेशेवरों के लिए वीजा प्रक्रियाएं सरल होने की संभावना जताई जा रही है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटियों में भारतीय छात्रों को अधिक स्कॉलरशिप व कोर्स विकल्प मिल सकते हैं।
भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार यह समझौता भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य में मददगार सिद्ध होगा। वहीं ब्रिटिश प्रधानमंत्री की टिप्पणी थी कि यह समझौता दोनों देशों के ऐतिहासिक रिश्तों को 21वीं सदी की कारोबारी साझेदारी में रूपांतरित करेगा। नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगड़िया यूके के साथ यह एफटीए भारत के लिए बहुत संतुलित है। इसमें न तो अत्यधिक बाजार छूट दी गई है, न ही घरेलू उद्योगों को नुकसान होगा। इसके चलते आने वाले वर्षों में भारत का निर्यात 5 से 7 बिलियन डॉलर तक बढ़ सकता है।
यूके इंडिया काउंसिल से जुड़े आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता कई अन्य देशों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है। इस तरह के द्विपक्षीय समझौते का अंतरराष्ट्रीय व्यापार और भू-राजनीतिक समीकरणों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।यह चीन के लिए चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि ब्रिटेन अब भारत को एक वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र के रूप में देख सकता है।
भारतीय वस्त्र, फार्मा और ऑटो सेक्टर में ब्रिटिश निवेश बढ़ने से चीन के बाजार प्रभुत्व को चुनौती मिल सकती है।डिजिटल क्षेत्र में सहयोग से भारत-यूके टेक अलायंस बन सकता है जो चीन की तकनीकी पकड़ को संतुलित कर सकता है।भारत और यूरोपीय संघ के बीच लंबे समय से लंबित एफटीए वार्ता चल रही है। ब्रिटेन के साथ सफल समझौते से अब ईयू पर दबाव बढ़ेगा कि वह भी भारत के साथ जल्दी समझौता करे। यदि ब्रिटिश कंपनियां भारत में तेजी से निवेश करती हैं तो यूरोपीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा में नुकसान हो सकता है।
अमेरिका और भारत के बीच अब तक कोई पूर्ण एफटीए नहीं हुआ है। ब्रिटेन के साथ हुए इस समझौते को देखकर अमेरिका भारत के साथ व्यापार सहयोग को पुनर्संतुलित कर सकता है। साथ ही अमेरिका यूके के साथ अपने ट्रांस अटलांटिक व्यापार संबंधों को भारत के साथ यूके की नई निकटता के संदर्भ में पुनर्मूल्यांकित कर सकता है।भारत ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के साथ ‘इंडस ईसीटीए’ और कनाडा के साथ प्रस्तावित एफटीए वार्ता की है।यूके के साथ हुआ यह समझौता मॉडल एग्रीमेंट के रूप में पेश किया जा सकता है, जिससे भारत अन्य देशों से भी समान या बेहतर शर्तों की मांग कर सकता है।
भारत जैसे विकासशील देश का एक विकसित देश के साथ संतुलित और लाभकारी एफटीए करना दक्षिणी देशों के लिए एक प्रेरणा मॉडल बन सकता है।इससे वैश्विक दक्षिण की सौदेबाजी की शक्ति मजबूत हो सकती है और वे अपने व्यापारिक हितों को वैश्विक पटल पर अधिक मजबूती से रख सकेंगे।ब्रिटेन ने ब्रेक्सिट के बाद राष्ट्रमंडल देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की रणनीति अपनाई है। भारत के साथ यह समझौता इस दिशा में प्रारंभिक और प्रतीकात्मक सफलता है।इससे अन्य राष्ट्रमंडल देश जैसे नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया भी ब्रिटेन के साथ व्यापारिक रिश्तों में पुनर्समीक्षा कर सकते हैं।
कनफेडरेशन का ब्रिटिश इंडस्ट्री के महानिदेशक रेनॉल्ड फिलिप्स का कहना है कि भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता एक द्विपक्षीय करार होते हुए भी बहुपक्षीय प्रभावों वाला समझौता है। यह न केवल क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करेगा बल्कि वैश्विक व्यापार नीति, रणनीतिक साझेदारी और एफटीए मॉडलिंग की दिशा को भी प्रभावित करेगा। ऐसे में इस समझौते को सिर्फ दो देशों के बीच का आर्थिक सहयोग न मानकर भविष्य की वैश्विक आर्थिक दिशा के संकेत के रूप में देखा जा सकता है।