देहरादून। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की विधानसभा सीटें बचाने और छीनी गई सीटें वापस पाने के लिए एक बार फिर निर्णायक संघर्ष की चेतावनी दी गई है। मूल निवास भू-कानून संघर्ष समिति के संस्थापक संयोजक और उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा के महासचिव मोहित डिमरी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर पहाड़ के हक़ के लिए एक और लड़ाई लड़नी पड़ी, तो उसे पूरी ताक़त से लड़ा जाएगा।
मोहित डिमरी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य निर्माण का मूल उद्देश्य पहाड़ की आवाज़ को मज़बूत करना था, लेकिन 2008 के परिसीमन में पहाड़ से 6 विधानसभा सीटें कम कर दी गईं। उन्होंने बताया कि एक समय पहाड़ की 40 विधानसभा सीटें थीं, जो दुर्गम भूगोल, सीमांत संवेदनशीलता और बिखरी आबादी को ध्यान में रखकर तय की गई थीं। परिसीमन के बाद चमोली की नन्दप्रयाग, पौड़ी की धूमाकोट व बीरौंखाल, पिथौरागढ़ की कनालीछीना, बागेश्वर की कांडा और अल्मोड़ा की भिकियासैंण सीट समाप्त कर दी गईं, जिससे पहाड़ की राजनीतिक ताक़त कमजोर हुई।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब आज पहाड़ में स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, रोजगार, आपदा प्रबंधन और पलायन जैसी समस्याएँ पहले से अधिक गंभीर हैं, तो प्रतिनिधित्व घटाया क्यों गया। डिमरी ने उदाहरण देते हुए कहा कि बद्रीनाथ विधानसभा का क्षेत्रफल लगभग 5500 वर्ग किलोमीटर है, जहां करीब 95 हजार वोटर हैं, जबकि हरिद्वार में 150–200 वर्ग किलोमीटर में ढाई से तीन लाख वोटर हैं।
उन्होंने उत्तर-पूर्वी राज्यों का हवाला देते हुए कहा कि अरुणाचल, मणिपुर, नागालैंड जैसे पहाड़ी राज्यों में परिसीमन में भूगोल और दुर्गमता को प्राथमिकता दी जाती है, फिर वही नियम उत्तराखंड में क्यों नहीं लागू होते।
मोहित डिमरी ने दो टूक कहा कि यह कोई भीख नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकार की लड़ाई है। पहाड़ से छीनी गई 6 विधानसभा सीटें वापस होनी चाहिए और आने वाले परिसीमन में पहाड़ का प्रतिनिधित्व बढ़ना चाहिए। उन्होंने घोषणा की कि जल्द ही इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक आयोजित कर ठोस रणनीति तय की जाएगी।
उन्होंने कहा—“उत्तराखंड तभी मजबूत होगा, जब उसका पहाड़ मजबूत होगा और पहाड़ की आवाज़ विधानसभा में पूरी ताक़त से गूँजेगी।”

