एक भूल, घर जला, पीएम की कुर्सी गई

नेपाल : नेपाल में Gen Z आंदोलन अराजक रूप ले चुका है. जेन ज़ी यानी 20 से 30 साल के युवा प्रदर्शनकारियों ने महज दो दिनों में प्रधानमंत्री केपी ओली को नेपाल की सत्ता छोड़ने पर मजबूर कर दिया. महज 24 घंटे में नेपाली युवाओं का विरोध प्रदर्शन इतना उग्र हो गया कि ओली को पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. काठमांडू का नियंत्रण फिलहाल ने सेना ने अपने हाथ में ले लिया है और नेपाली सेना के प्रमुख ने प्रदर्शनकारियों से शांति की अपील की है.हालांकि प्रदर्शनकारियों का गुस्सा शांत होता नहीं दिखा. काठमांडू में मंगलवार को कर्फ्यू लगा दिया गया था, फिर भी अलग-अलग जगहों पर प्रदर्शनों और झड़पों की ख़बरें आई हैं.

इससे पहले मंगलवार शाम यहां गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने मंगलवार को काठमांडू स्थित संसद भवन पर धावा बोलते हुए आग भी लगा दी. इसके अलावा त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के पास से भी धुआं उठता देख गया, जिसके बाद विमानों की आवाजाही बंद कर दी गई.इन जेन जी प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली सहित कई पूर्व प्रधानमंत्रियों और मंत्रियों के घर में तोड़फोड़ और आगजनी भी की. यहां सिंह दरबार के नाम से प्रसिद्ध केंद्रीय सचिवालय आग की लपटों में धूं-धूंकर जलता दिखा.

दरअसल इस उग्र प्रदर्शन के पीछे की एक तात्कालिक वजह ओली सरकार सरकार के ही एक फैसले को बताया जा रहा है. नेपाल सरकार ने वहां फेसबुक, एक्स और यूट्यूब सहित लगभग सभी लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी थी. इसी के बाद सोमवार को युवाओं का सैलाब काठमांडू की सड़कों पर उमड़ पड़ा.

इन प्रदर्शनकारियों को काबू करने के लिए पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें कम से कम 21 लोगों की मौत हो गई और 250 से अधिक घायल हो गए. इस गोली ने मानो आग में घी का काम किया. इसके बाद तो प्रदर्शनकारी पूरी तरह अराजक हो गए. उन्होंने कई वरिष्ठ नेताओं के घरों में आग लगा दी और नारे लगाए… ‘सोशल मीडिया पर बैन बंद करो, भ्रष्टाचार रोको, सोशल मीडिया नहीं.’

सरकार ने कुल 26 सोशल मीडिया ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन इनमें टिक-टॉक शामिल नहीं था. एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक, चीनी स्वामित्व वाला यह प्लेटफॉर्म नेपाल में आधिकारिक तौर पर रजिस्टर्ड है. उसने नए कानूनों का पालन करने पर पहले ही सहमति दे दी थी, जिनके तहत कंपनियों को स्थानीय संपर्क कार्यालय बनाना जरूरी है.
टिक-टॉक को 2023 में ‘सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने’ और अश्लील सामग्री फैलाने के आरोप में बैन किया गया था. बाद में कंपनी ने नेपाली कानूनों का पालन करने का वादा किया और बैन हटा लिया गया.

रिपोर्ट में थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) की रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि, टिक-टॉक नेपाल में खास राजनीतिक महत्व रखता है. खासकर 16 से 24 साल के युवाओं ने इस प्लेटफॉर्म के जरिये हिंदू राष्ट्र और राजशाही बहाली की मुहिम चलाई, जिसे 2008 में खत्म कर दिया गया था. ओआरएफ का मानना है कि टिक-टॉक पर रोक न लगाने का फैसला इस ऐप की राजनीतिक सक्रियता में केंद्रीय भूमिका को दर्शाता है.

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल नेपाल में युवाओं की बेरोजगारी दर 20% रही और हर दिन करीब 2,000 युवा रोजगार की तलाश में विदेश जा रहे हैं. ऐसे में टिक-टॉक सिर्फ मनोरंजन का मंच नहीं, बल्कि गुस्से और राजनीतिक अभिव्यक्ति का जरिया बन गया है. भ्रष्टाचार और सिस्टम में बदलाव की मांग जैसे मुद्दों पर युवाओं ने इसे आंदोलन का हथियार बनाया.

इस बार प्रदर्शनकारियों को एकजुट करने में इसी टिक टॉक का बड़ा हाथ माना जा रहा है. हालांकि कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर सरकार टिक-टॉक पर भी बैन लगा देती, तो स्थिति और ज्यादा विस्फोटक हो सकती थी.
ओली सरकार के टिक टॉक को छूट देने के फैसले के पीछे चीन से बढ़ते रिश्तों का पहलू भी जुड़ा माना जा रहा है. 30 अगस्त को प्रधानमंत्री ओली ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन के दौरान मुलाकात की थी.

शी जिनपिंग ने नेपाल को ‘शांतिप्रिय पड़ोसी’ बताते हुए बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स और रणनीतिक सहयोग बढ़ाने का आश्वासन दिया. ओली ने भी ‘वन चाइना पॉलिसी’ के प्रति प्रतिबद्धता जताई और कहा कि नेपाली धरती का इस्तेमाल चीन विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होने दिया जाएगा.विश्लेषकों का कहना है कि टिक-टॉक को बैन से बाहर रखकर सरकार ने अनजाने में ही नेपाल की जनरेशन-ज़ी को एक मजबूत आंदोलनकारी हथियार दे दिया, जिसने ओली की सत्ता को गिराने में अहम भूमिका निभाई.

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