सियासत न करे विपक्ष: अमित शाह

नई दिल्ली। विपक्षी दलों के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार के एलान के बीच गृहमंत्री अमित शाह ने साफ किया कि नया संसद भवन भारत की सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का प्रयास है और इस अवसर का साक्षी बनने के लिए सभी को आमंत्रित किया गया है। हमारी इच्छा है कि सभी इसमें शिरकत करें।

शाह ने कहा कि अंग्रेजों से भारतीयों के पास सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक रहा पवित्र सेंगोल नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। राजनीति को इसके साथ न जोड़ें। यह भारतीय परंपराओं से जुड़ने का महान क्षण होगा। इससे ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी। अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने 14 अगस्त 1947 को पवित्र सेंगोल को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपकर सत्ता हस्तांतरित की थी।

शाह ने कहा कि जिसे हम स्वतंत्रता के रूप में मना रहे हैं, वह वास्तव में यही क्षण है। सेंगोल की स्थापना पुरानी परंपराओं से नए भारत को जोड़ने के भाव का प्रतीक है। सेंगोल इस भाव का प्रतीक है कि शासन न्यायपूर्ण तरीके से चले, नीति के अनुसार चले और कर्तव्य के रास्ते पर चले। संसद में इसे स्थापित करने से यह संदेश पूरे देश की जनता और उनके प्रतिनिधियों के बीच लगातार जाएगा। उनके अनुसार तमिल भाषा से उत्पन्न शब्द सेंगोल का अर्थ ही नीति परायणता है।

सेंगोल के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा के तहत अग्रेजों से हुए सत्ता हस्तांतरण का उल्लेख करते हुए शाह ने कहा कि यह ऐतिहासिक परंपराओं के सम्मान और पुनर्जागरण के प्रधानमंत्री मोदी के लक्ष्य की दिशा में ये अहम कदम है। शाह के अनुसार पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 की रात को 10.45 बजे पूरे विधि-विधान के साथ सेंगोल को स्वीकार कर सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया को पूरा किया था।

दरअसल खुद अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने भारतीय परंपरा के अनुरूप सत्ता हस्तांतरण के समारोह की इच्छा जताई थी। दक्षिण भारत के पुरोहितों द्वारा विधि-विधान के साथ बनाए सेंगोल को स्वीकार कर नेहरू ने भारत की भावनात्मक एकता और आध्यात्मिक एकीकरण का संदेश दिया था। शाह ने कहा कि सेंगोल के माध्यम से सत्ता हस्तांतरण की इस पूरी घटना को बाद में भूला दिया गया और सेंगोल को भी इलाहाबाद के संग्रहालय में रख दिया गया।

अमित शाह ने कहा कि ऐतिहासिक सेंगोल को संग्रहालय में रखना उचित नहीं है और इसके लिए सबसे बेहतर स्थान संसद है। बता दें कि 28 मई को संसद भवन के उद्घाटन के दिन ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तमिल पुरोहितों से एक बार फिर इसे स्वीकार करेंगे और लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे। उन्होंने कहा कि इस सेंगोल को पूरा देश देख सकेगा और विशेष अवसरों पर इसे बाहर भी लाया जाएगा।

सेंगोल पांच फीट लंबा चांदी से निर्मित और सोना का लेप चढ़ाया हुआ दंड है। आठवीं सदी के बाद से लगभग 800 सालों तक चले चोल साम्राज्य में सत्ता का हस्तांतरण इसी के माध्यम से होता था। सी राजगोपालाचारी के सुझाव के बाद तमिलनाडु के तिरुवदुथुराई मठ ने इसे विशेष रूप से तैयार कराया था। इसके शीर्ष पर न्याय के रक्षक और प्रतीक नंदी अटल दृष्टि के साथ मौजूद हैं। वैदिक विधि-विधान के साथ सेंगोल को माउंटबेटन से लेकर पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था।

नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने पर असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यह विपक्ष का ड्रामा है। ये बहिष्कार तो होना ही था। असल में विपक्ष ने कभी नहीं सोचा था कि नए संसद भवन का निर्माण इतनी जल्दी पूरा हो जाएगा। सिर्फ अपना चेहरा बचाने के लिए विपक्ष बहिष्कार का नाटक कर रहे हैं। हिमंता ने कहा कि संसद का उद्घाटन उस दिन हो रहा है, जो वीर सावरकर से जुड़ा है। उस दिन बीडी सावरकर का जन्मदिन है। विपक्ष की ओर से बहिष्कार करने की एक वजह यह भी हो सकता है।

केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने विपक्ष के बहिष्कार करने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया और उनसे अपने रुख पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। जोशी ने कहा कि बहिष्कार करना और गैर-मुद्दे को बेवजह मुद्दा बनाना सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण है। जोशी ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष संसद के संरक्षक हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री को संसद भवन का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया है।

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