उदय दिनमान डेस्कः चारपाई के नाम से 990 ऑस्ट्रेलियन डॉलर (हमारे 49 हजार रुपए) में बेच रहा है और हम हैं कि इसे #आउटऑफ़फैशन’ मानकर इसकी खटिया खड़ी कर रहे हैं।
सोने के लिए #खाट हमारे पूर्वजों की सर्वोत्तम खोज है। हमारे पूर्वजों को क्या लकड़ी को चीरना नहीं जानते थे? वे भी लकड़ी चीरकर उसकी पट्टियाँ बनाकर #डबलबेड बना सकते थे। डबल बेड बनाना कोई #रॉकेटसायंस नहीं है। लकड़ी की पट्टियों में कीलें ही ठोंकनी होती हैं। खटिया भी भले कोई सायंस नहीं है, लेकिन एक समझदारी है कि कैसे शरीर को अधिक आराम मिल सके। खटिया बनाना एक #कला है. उसे #रस्सी से बुनना पड़ता है और उसमें दिमाग और श्रम लगता है।
जब हम सोते हैं, तब सिर और पांव के मुकाबले पेट को अधिक #खून की जरूरत होती है; क्योंकि रात हो या दोपहर में लोग अक्सर खाने के बाद ही सोते हैं। पेट को #पाचनक्रिया के लिए अधिक खून की जरूरत होती है। इसलिए सोते समय खटिया की जोली ही इस स्वास्थ का लाभ पहुंचा सकती है।
दुनिया में जितनी भी #आरामकुर्सियां देख लें, सभी में खटिया की तरह जोली बनाई जाती है। बच्चों का पुराना #पालना सिर्फ कपडे की जोली का था, लकडी का सपाट बनाकर उसे भी बिगाड़ दिया गया है। खटिया पर सोने से कमर और पीठ का दर्द का दर्द कभी नही होता है। दर्द होने पर खटिया पर सोने की सलाह दी जाती है।
डबलबेड के नीचे अंधेरा होता है, उसमें रोग के #कीटाणु पनपते हैं, वजन में भारी होता है तो रोज-रोज सफाई नहीं हो सकती। खटिया को रोज सुबह खड़ा कर दिया जाता है और सफाई भी हो जाती है, #सूरज का प्रकाश बहुत बढ़िया #कीटनाशक है। खटिये को धूप में रखने से #खटमल इत्यादि भी नहीं लगते हैं।
भारत के #गाँव में अब भी इसी पर सोया जाता है। किसानों के लिए खटिया बनाना बहुत सस्ता पड़ता है, मिस्त्री को थोड़ी मज़दूरी ही देनी पड़ती है। #कपास खुद का होता है तो खुद रस्सी बना लेते हैं और खटिया खुद बुन लेते हैं। लकडी भी अपनी ही दे देते हैं। अन्य को लेना हो तो दो हजार से अधिक खर्च नही हो सकता।
हां, कपास की रस्सी के बदले #नारियल की रस्सी से काम चलाना पड़ेगा। आज की तारीख में कपास की रस्सी महंगी पड़ेगी। सस्ते #प्लास्टिक की रस्सी और पट्टी आ गयी है, लेकिन वह सही नही है। दो हजार की खटिया के बदले हजारों रुपये की #दवा और #डॉक्टर का खर्च बचाया जा सकता है।
साभार सोसल मीडिया