प्रीत की कुंगळी डोर सि छिन ईं—–पर्वत जन कठोर भी छिन ईं——- हमरा पहाड़ की नारी- बेटि-ब्वारी” -सुमति गौड
रूद्रप्रयाग । पिताजी दयाराम पुरोहित जी के घर क्वीली चोपड़ा, रूद्रप्रयाग मै, छै नवंबर उन्नीस् सौ पिचत्तर मैं जन्म हुआ, बचपन से ही पहाड़ के साथ साक्षात्कार होता रहा, मुलमुल हँसते बाॅज बुरांश, और क्वळै चीड के पेड़ों के साथ पहाड़ जैसे हौंसले भी पनपते रहे और सोलवी उम्र की दहलीज पर पिताजी ने दानकोट के गौड ब्राह्मण परिवार मै 9 मार्च उन्नीस सौ इक्कानवे मैं देवशरण गौड जी के साथ दाम्पत्य जीवन मैं बांध दिया।
बस जीवन संघर्ष अनवरत चलता रहा, भरेपूरे परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभाते निभाते चेहरे की हॅसी को कभी मुरझाने नही दिया।
पति देवशरण गौड सामाजिक सरोकारों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता थे सो घर से बाहर ज्यादा रहते थे परिवार की जिम्मेदारी मै
तीन बेटियों और एक बेटे के साथ घर गांव मैं पंचायत मैं मिले पदों को बखूबी दमखम के साथ निभाया।
पति का साथ ज्यादा लंबा नही मिला और तेईस चौबीस साल के वैवाहिक सफर के बाद सुमती देवी अकेले ही पिछले तीन चार सालों से चार बच्चों की जिम्मेदारी मजबूती के साथ उठा रही है और बखूबी निभा रही है।
एक बेटी की शादी बड़े धूमधाम से संपन्न कर चुकी है, बेटा महाविद्यालय मैं ऊच्च शिक्षा ग्रहण कर रहा है, बेटियाँ तैयारी कर माॅ के सपने को साकार करने को तैयारी मैं जुटी है।
परिवार की मुखिया होने के बाद समाज के ताने-बाने, उलझनों के बीच भी स्वयं परिवार और समाज दोंनो की प्रबल जिम्मेदारी निभा रही है।
समाज के बीच अद्भुत नेतृत्व क्षमता के साथ क्षेत्र मैं अपनी एक विशेष पहचान रखती है,
वर्तमान मैं महिला मंगल दल दानकोट की अध्यक्ष है
विभिन्न सामाजिक आंदोलनों मैं सक्रिय भूमिका मैं हमेशा खड़ी रही चाहे वो मंदाकिनी नदी बचाओ आंदोलन हो या जल जंगल जमीन बचाने का आंदोलन हो।
शराब बंदी आंदोलन की अलख हो या पेड़ बचाओ आंदोलन हर स्तर पर दमखम के साथ पुरुष वर्ग को टक्कर देती खड़ी रहती है।
साधनविहीन कमाई के बावजूद भी खेती पशुपालन आजीविका और आत्मनिर्भरता की बेमिसाल उदाहरण है सुमति देवी गौड।
एक और कभी हल नसूडे को पकड़े आपको बैलो के साथ खेतों मैं हल लगाते मिलेंगी तो दूसरी और खेतों के ढहते पुश्ते संजोते या फिर सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रम उर्याते।
कभी कीर्तन भजन मंडली मै भजन गाती मिलेंगी तो कभी कभी घास की कंडी स्वळटी लिए, कभी विभिन्न मेलों मैं अतिथि के मंच पर।
पहाडी संस्कृति से भी बडी गहराई से चिपकी है, हर तीन साल मै देवनृत्य ‘देवता पुजै’ का पाॅच-छै दिवसीय आयोजन बड़ी भक्ति भावना से करती हैं जिसमें ढोल दमौं डौंर थाली समेत रांसा जागर का आयोजन किया जाता है जिसमें ग्रामीण बढचढकर भाग लेते है नै छ्वाली तक लोकसंस्कृति की धमकी प्रसारित होती है।
घरेलू काम के साथ खर्क मैं दो भैंसे और एक जोड़ी बैल आपको हमेशा ही बंधी दिखेंगी। जून महीने मै घर आए प्रवासियों के घर-घर तक दूध, दही, छांछ का आसार भी इनकी मेहनत और पहाड़ी हौंसले की कहानी बयां करता है।
रोंपणी हो या निराई गुडाई ,गाँव मैं मौ-मदद करने मैं भी इनका कोई सानी नही।
स्वरोजगार की और मजबूत जज्बे के साथ जुड़कर आजीविका के बहुत सारे प्रोजेक्ट से जुड़ी है,
आजीविका सेवा इंटरनेशनल महासंघ की सचिव के पद के साथ जलागम आजीविका मैं तीस महिलाओं के समूह मै गाँव में सब्जी उत्पादन का बेहतर विकल्प भी तराश रही है,
हाल ही मैं आजीविका स्वरोजगार अभिनव पहल हेतु चार दिवसीय हिमाचल भ्रमण पर भी आपका चयन हुआ।
अश्विनी गौड रूद्रप्रयाग