उत्तराखंड के लोक गीत एवं लोक नृत्य पर जमकर झुमें लोग

विरासत के ग्यारहवें दिन की शुरुआत विरासत हेरीटेज क्वेस्ट क्विज के साथ हुआ

डॉ अन्वेसा महंता ने आसामी लोक नृत्य सत्रिया प्रस्तुत कर विरासत के लोगो का दिल जिता

नबनिता चौधरी के शास्त्रीय संगीत पर विरासत में मैजूद लोग जमकर झुमें और आनंदित हुए

मसूरी के 200 साल पूरे होने के उपलक्षय में सानिया पाटनकर द्वारा मसूरी में शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत किया गया

देहरादून: विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2022 के ग्यारहवें दिन की शुरुआत डॉ. बी. आर. अंबेडकर स्टेडियम (कौलागढ़ रोड) देहरादून में विरासत हेरीटेज क्वेस्ट क्विज के साथ हुआ। जिसमें देहरादून के 8 स्कूलों के 16 छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया। विरासत हेरीटेज क्वेस्ट क्विज के अंतर्गत क्रॉसवर्ड पहेली राउंड, कनेक्ट और एसोसिएट प्रतियोगिता एवं बजर राउंड जैसे क्विज हुआ। विजेताओं स्कूल में दून इंटरनेशनल स्कूल (प्रथम), जसवंत मॉडर्न स्कूल (द्वितीय) और फलाईफोट पब्लिक स्कूल (तीसरा) स्थान पर रहा।

सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं नवज्योति संस्कारी एवं सामाजिक संस्था की ओर से जितेंद्र बलूनी द्वारा उत्तराखंड की लोक संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए जिसमें उत्तराखंड के लोक गीत के साथ-साथ लोक नृत्य भी प्रस्तुत किया गया। जिसमे डांस में साथ दे रहे थे नील शाह, स्वेता जोशी, जे पी रावत, संगीता एवं आशीष वही म्यूजिशियंस गोविंद शरण, वीरेंद्र, चंद्रपाल साथ ही साथ गायन में राजलक्ष्मी, नीरू वाला एवं विपिन राणा ने सगंत दी।  इस्तेमाल किए जाने वाले वाद्ययंत्र में ढोलक, तबला और हुडका जैसे वाद्ययंत्र थे।

सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुतियों में डॉ अन्वेसा महंता द्वारा आसामी लोक नृत्य सत्रिया प्रस्तुत किया गया।उनकी पहली प्रस्तुति देव वंदना थी एवं अन्वेषा जी की अंतिम प्रस्तुति थी मथुरा विहार…कृष्ण और कुब्ज की कहानी थी। उनके संगत में खोल पर बयानाचार्य घनकांत बोरा के शिष्य देबजित सायरिया, गायक के रूप में हरिचंद्र ब्यान के शिष्य गौतम ब्यान, बांसुरी पर लेफ्टिनेंट जयहरी दास के शिष्य प्रसन्ना बरवा थे।

बताते चले कि डॉ अन्वेसा महंता एक सत्रिया नृत्य प्रशिक्षक हैं, वे एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता और प्राग्ज्योति अंतर्राष्ट्रीय नृत्य के निदेशक हैं। अन्वेसा जी ने सत्रिया नृत्य की अनूठी व्याख्या के लिए बहुत प्रशंसा प्राप्त की, जिसमें उन्होंने रूप के मूल दर्शन और इसकी कर्मकांड प्रथा को बरकरार रखा है। वे सत्त्रिया परंपरा के प्रख्यात उस्ताद माने जाते है। डॉ अन्वेसा महंत पद्मश्री बयानाचार्य घनकांत बोरा की शिष्या हैं। उन्हें उनके सुंदर और जीवंत नृत्य और अभिनय के लिए कई कलाओं के पारखी और विद्वानों से प्रशंसा मिली है।

वे “वैश्विक मंच पर कलाओं को प्रतिनिधित्व करने के लिए एक स्टार एंबेसडर“ हैं। उन्हें उनके योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी द्वारा 2013-14 के राष्ट्रीय पुरस्कार, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार और क्वीन्स यूनिवर्सिटी बेलफास्ट में शोध करने के लिए प्रतिष्ठित “चार्ल्स वालेस फैलोशिप“ ब्रिटिश काउंसिल से सम्मानित किया गया है। उन्होंन भारत के साथ -साथ मलेशिया, थाईलैंड, हांगकांग, इंग्लैंड, जापान, उत्तरी आयरलैंड, कनाडा, अमेरिका, श्रीलंका, फ्रांस, न्यूजीलैंड आदि देशों में बड़े पैमाने पर अपनी प्रस्तुति दी है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम कि अगली प्रस्तुति में नबनिता चौधरी द्वारा शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत किया गया। नबनिता चौधरी के शास्त्रीय संगीत से विरासत में मैजूद लोग जमकर झुमें और आनंदित हुए। नबोनिता जी की पहली प्रस्तुति थी राग जोग, बड़ा ख्याल में विलाम्बित एक ताल और दो छोटा ख्याल, उनका अगला प्रस्तुति दादरा था.. “रंगी साड़ी“..और उन्होंने अपने गुरुजी, श्री राजन मिश्रा जी को समर्पित भजन के साथ अपने प्रस्तुति को समापन किया। उनके संगत में तबले पर मिथिलेश जी, हारमोनियम पर जाकिर धौलपुरी साब, तानपुरा पर योगेश जी और ऋषभ जी ने साथ दिया।

नबनिता चौधरी एक उत्कृष्ट गायिका के साथ-साथ एक संगीतकार हैं जिनके पास आध्यात्मिक माधुर्य और दिव्य सौंदर्यशास्त्र का एक भावपूर्ण मिश्रण है। रचनात्मकता और आशुरचना नबनिता के प्रदर्शन का सार है। नबनिता को शुरू में अपनी माँ से बहुत ही कम उम्र में संगीत का मार्गदर्शन मिला। बाद में उन्होंने पद्म भूषण पंडितों राजन-सजन मिश्रा, पद्म भूषण विदुषी (स्वर्गीय) शोभा गुरतु,  एवं पं दीपक चटर्जी “रसिक रंग“ से संगीत का प्रशिक्षन मिला।

ख़याल और ठुमरी-दादरा में मूल रूप से प्रशिक्षित होने के बावजूद, उन्हें सूफी, ग़ज़ल, कजरी, चैती, झूला, गीत और भजन जैसे शास्त्रीय संगीत गाना पसंद है। रवींद्र संगीत (हिंदी और बंगाली), नजरूल गीती और लोक संगीत भी वे बहुत प्रेम से गाती है। नबनिता ने कई संगीत संगठनों के तत्वावधान में पूरे भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार आदि में बड़े पैमाने पर अपने कला को प्रस्तुत किया है। जब वह प्रस्तुति नहीं कर रही होती है, तो वह उदारता से दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले महत्वाकांक्षी और प्रतिभाशाली शिष्यों को पढ़ाने के लिए खुद को समर्पित करती है।

मसूरी के 200 साल पूरे होने के जश्न में सानिया पाटनकर द्वारा मसूरी के सीफोर्थ एस्टेट, सर्कुलर रोड, लंढौर कैंट में हदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया यह कार्यक्रम भी विरासत का एक हिस्सा है जो मसूरी के 200 साल पूरे होने के उपलक्षय में मनाया जा रहा है।

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