ध्रुपद और शास्त्रीय बांसुरी वादन के धुन से विरासत के लोग सराबोर

विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2022 के बारहवें दिन की शुरुआत ’सीट एंड ड्रा आर्ट कंपटीशन’ के साथ हुआ

देहरादून: विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2022 के बारहवें दिन की शुरुआत डॉ. बी. आर. अंबेडकर स्टेडियम (कौलागढ़ रोड) देहरादून में सीट एंड ड्रा आर्ट कंपटीशन के साथ हुआ। जिसमें देहरादून के 15 स्कूलों के 178 छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया। सीट एंड ड्रा आर्ट कंपटीशन के अंतर्गत बच्चों को ’हमारी विरासत’ एक टॉपिक दिया गया जिसमें उनको हमारी विरासत और धरोहर के उपर एक ड्रॉइंग बनाना था और इस दौरान छात्र विरासत में कही भी बैठ कर यह काम कर सकते थे। सभी बच्चों को एक धंटे 30 मिनट का समय दिया गया था। इस आर्ट कंपटीशन का परिणाम 28 अप्रैल को धोषित किया जाएगा।

सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं अनुज प्रताप सिंह द्वारा ध्रुपद प्रस्तुत किया गया। अनुज जी ने राग चंद्रकौं “चलो सखी ब्रज बें धूम माछी“ की प्रस्तुति दी, इसके बाद राग मलकाउन्स, “शंकर गिरिजापति पार्वती पाटेश्वर“ प्रस्तुत किया। उनके साथ आदित्य दीप जी, आदित्य शर्मा और सुनील भदौरिया (तानपुरा) पर थे। अनुज जी अपने गुरुजी के साथ पहले विरासत में अपनी प्रस्तुति दे चुके है और पुनः इस बार विरासत में अपनी प्रस्तुति देने में उन्हें बहुत  प्रसन्नता हो रही है।

ध्रुपद की उत्पत्ति सामवेद से मानी जाती है। यही कारण है कि इसे समागन के नाम से भी जाना जाता है। ग्वालियर के राजा महाराजा मानसिंह तोमर ने इसे और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए ध्रुपद का संस्कृत से बृज में अनुवाद किया था। उन्होंने “मानकौतुहल“ नाम से पांडुलिपि भी लिखी जिसमें उनके द्वारा रचित कई ध्रुपद शामिल हैं।

अनुज जी चंबल के बाहर के पहले ध्रुपद कलाकार हैं, उन्होंने अपना पहला संगीत प्रशिक्षण अपने पिता श्री गजेंद्र सिंह कुशवाह, श्री ज्ञान सिंह शाक्य और श्री राम मोहन मिश्रा से प्राप्त किया। 17 साल की उम्र में उनका रुझान ध्रुपद की ओर हो गया और ध्रुपद केंद्र के पहले छात्रवृत्ति बैच में उनका चयन भी हो गया। उन्होंने राजा मानसिंह तोमर संगीत और कला विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद के तहत ध्रुपद केंद्र ग्वालियर में गुरु शिष्य परंपरा में श्री अभिजीत सुखदाने से ध्रुपद सीखना शुरू किया।

अनुज ने एम.ए. संगीत भी ध्रुपद कला रत्न और प्रभाकर वायलिन और वोकल में किया है। वह नियमित रूप से ए.आई.आर और दूरदर्शन द्वारा रिकॉर्ड किये जाते है। उन्होंने तानसेन समारोह जैसे विभिन्न महोत्सवों में अपनी प्रस्तुति दिया है जिसमें ध्रुपद मेला वाराणसी, भवभूति समारोह, राजा छत्रसाल महोत्सव पन्ना शामिल है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुतियों में रजत प्रसन्ना द्वारा शास्त्रीय बांसुरी वादन प्रस्तुत किया गया। रजत प्रसन्ना द्वारा अलाप जोगझाला, विलंबित एक ताल में, राग श्याम कल्याण एवं राग जोग की प्रस्तुति दी, उसके बाद उन्होंने बनारस के धुन बजाई फिर पीलू के धुन के साथ उन्होंने अपनी प्रस्तुति समाप्त कि, उनके साथ तबले पर संगत में शुभ महाराज जी थे।

रजत प्रसन्ना संगीत के बनारस घराने से आते है औीर वे एक भारतीय शास्त्रीय बांसुरी वादक हैं। रजत जी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत अपने दादा स्वर्गीय पंडित रघुनाथ प्रसन्ना और पिता श्री रविशंकर प्रसन्ना से सीखा है। वे दूरदर्शन/ऑल इंडिया रेडियो के ए ग्रेडे कलाकार हैं और युवा कलाकारों के लिए प्रतिष्ठित सीसीआरटी छात्रवृत्ति के प्राप्तकर्ता भी हैं। वे नवाचार और परंपरा के लिए अपने प्यार के सम्मिश्रण के लिए जाने जाते हैं।

रजत ने विभिन्न संगीत समारोहों जैसे विश्व बांसुरी उत्सव सहित प्रतिष्ठित स्थानों पर देश भर में व्यापक रूप से अपनी प्रस्तुति दि है जिसमें रासरंग, दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय कला महोत्सव, नीमराना फोर्ट पैलेस, हरिबल्लभ संगीत महासभा के साथ साथ उन्होंने स्विट्ज़रलैंड में वर्ल्ड इकोनामिक फोरम एवं स्पेन, पुर्तगाल, फ्रांस मॉरीशस और मिस्त्र में भी अपनी प्रस्तुति दे चुके है।

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