देहरादून। उत्तराखंड के चमाली जनपद में एक ऐसी जगह है, जहां पिंडदान करने से पितर जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। साथ ही परिजनों को पितृदोष से मुक्ति मिल जाती है। मान्यता है कि यहां भागवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी।
पंडित मोहित सती ने बताया कि पुराणों में पितृ तर्पण के लिए जो माहात्म्य बिहार स्थित गया तीर्थ का बताया गया है, वही माहात्म्य बदरीनाथ धाम ( Badrinath Dham) के पास स्थित ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) तीर्थ का भी है।
मान्यता है कि अलकनंदा नदी के तट पर स्थित ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) तीर्थ में एक बार यदि पितरों का पिंडदान व तर्पण कर दिया तो पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। वैसे तो बदरीनाथ (Badrinath) धाम के कपाट खुलने से लेकर बंद होने तक यहां पर पिंडदान का महत्व है। लेकिन, पितृपक्ष के दौरान यहां किए जाने वाले पिंडदान व तर्पण को श्रेयस्कर बताया है।
सनातनी परंपरा में हर वर्ष पितृपक्ष में भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष मनाया जाता है। इस दौरान लाखों लोग पितरों के पिंडदान व तर्पण करने के लिए ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) तीर्थ आते हैं।
बदरीनाथ धाम (Badrinath Dham) में स्थति ब्रह्मकपाल तीर्थ की कथा भगवान शिव और ब्रह्मा से जुड़ी है। शिव ने जब ब्रह्मा का पार्श्व सिर काट दिया तो सिर त्रिशूल से अलग नहीं हुआ। इससे मां पार्वती परेशान हो गईं कि अब भगवान को ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा।
मां पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि आप गया तीर्थ जाकर पिंडदान करें। इससे आपको ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी। भगवान शिव ने ऐसा ही किया, तब भी वह इस पाप से मुक्त नहीं हुए। इसके बाद उन्होंने काशी (Kashi) व हरद्विार (Haridwar) में भी पिंडदान किया, लेकिन ब्रह्म हत्या से मुक्ति नहीं मिली।
एक बाबा ने उनसे कहा कि बदरीनाथ धाम (Badrinath Dham) जाओ, वहां आपको ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी। भगवान शिव पार्वती के साथ बदरीनाथ पहुंचे। यहां अलकनंदा नदी के तट पर पिंडदान किया। इसके बाद त्रिशूल से चिपका हुआ ब्रह्मा का पार्श्व सिर अलग होकर वहां गिर गया।
पूजा सफल होने पर भगवान शिव व माता पार्वती ने कहा कि जो यहां पितरों का पिंडदान या तर्पण करेगा, उसे फिर कहीं पिंडदान करने की जरूरत नहीं होगी। ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) तीर्थ में भगवान बदरी नारायण के भोग से पिंडदान होता है। पिंड पके हुए चावल से बनाए जाते हैं।
स्कंद पुराण में कहा गया है कि पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज और काशी भी श्रेयस्कर हैं, लेकिन भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) में किया गया पिंडदान इन सबसे आठ गुणा ज्यादा फलदायी है।
श्रीमद्भागवत महापुराण में उल्लेख मिलता है कि महाभारत (Mahabharata) के युद्ध में बंधु-बांधवों की हत्या करने पर पांडवों (Pandav) को गोत्र हत्या का पाप लगा था। इससे मुक्ति पाने को स्वर्गारोहिणी यात्रा पर जाते हुए पांडवों ने ब्रह्मकपाल (Brahmakapal) में पितरों को तर्पण किया था। अलकनंदा नदी के तट पर ब्रह्मा के सिर के आकार की शिला आज भी विद्यमान है।