हड़ताल पर प्राइवेट डॉक्टर्स

जयपुर। राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल (Right To Health Bill In Rajasthan) के विरोध में निजी डॉक्टर पिछले 12 दिन से हड़ताल पर हैं। जिसके कारण पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं। डॉक्टरों का कहना है कि जब तक सरकार इस बिल को वापस नहीं लेगी तब तक हम अपनी हड़ताल खत्म नहीं करेंगे।

बता दें कि राजस्थान में आज डॉक्टरों की हड़ताल का 13वां दिन है। हाल ही में विधानसभा द्वारा पारित स्वास्थ्य के अधिकार विधेयक (RTH bill in Rajasthan) के खिलाफ राज्य भर में चिकित्सा कर्मचारियों के साथ डॉक्टरों ने हड़ताल शुरू की थी। जिसके कारण पूरे राजस्थान में चिकित्सा सेवाएं चरमरा गई हैं।

जयपुर की मीनू (42) को दिल्ली भागना पड़ा क्योंकि उनकी बेटी (13) का हाल ही में ऑपरेशन हुआ था और उसे टांके खुलवाने हैं।मीनू ने कहा, मेरी बेटी दर्द में है। उसे सिस्ट थी और उसका ऑपरेशन किया गया था। हमें नहीं पता था कि इस तरह की हड़ताल होगी। अब हम उसके टांके खुलवाने के लिए टैक्सी से दिल्ली जा रहे हैं क्योंकि उसे बहुत दर्द हो रहा है। एक और प्रोफेशनल अंकित भी अपनी बहन के एक्सीडेंट के बाद अहमदाबाद के लिए रवाना हो गए।

चिकित्सकीय मदद नहीं मिलने पर वह उसे अहमदाबाद ले गए। सीकर में इलाज के इंतजार में चार महीने के बच्चे रुबिन की मौत हो गई।सीकर के सभी अस्पतालों के चिकित्साकर्मी हड़ताल पर थे, इसलिए उसे जयपुर के जेके लोन रेफर कर दिया गया। हालांकि, अस्पताल के गेट पर ही उनका निधन हो गया। जालोर में तीन साल के एक और बच्चे ने डॉक्टरों की हड़ताल के चलते दम तोड़ दिया।

वरिष्ठ चिकित्सक वीरेंद्र सिले राज्य छोड़ चुके हैं या राजस्थान अस्पताल (Rajasthan’s Hospitals) से दवा लेने के लिए पास के राज्यों में जाने की योजना बना रहे हैं, उन्होंने न्यूज एजेंसी IANS को बताया कि हम चाहते हैं कि हड़ताल इस 13वें दिन समाप्त हो जाए।हम अपने रोगियों के संपर्क में रहने के बाद भी बुरा महसूस कर रहे हैं जो चिकित्सा उपचार चाहते हैं लेकिन हमें उन्हें मना करना पड़ रहा है। हम असहाय हैं।

उन्होंने कहा, डॉक्टर इस बिल से डरे हुए हैं क्योंकि इसमें सजा का प्रावधान है। अगर हमें एक सूचना मिलती है तो हमारी रातों की नींद हराम हो जाएगी।एक प्रावधान है कि उनके खिलाफ कोई भी शिकायत कर सकता है और शिकायत एक समिति (grievance committee) के पास जाएगी और हम पर जुर्माना लगाया जाएगा। अब डॉक्टर डरे हुए हैं कि अगर कोई मरीज मुकदमेबाजी के लिए गया तो क्या होगा।

यह पूछे जाने पर कि क्या यह अहंकार का मुद्दा (ego issue) है, उन्होंने कहा, इसका कोई सवाल ही नहीं है, लेकिन डॉक्टरों में डर है।उन्होंने कहा, अब इस हड़ताल से डॉक्टरों के लिए पैसों की चुनौती भी आ रही है। आर्थिक नुकसान काफी बढ़ रहा है। खर्चे तो बहुत हैं, लेकिन पैसा आ नहीं रहा है।डॉक्टर ने कहा कि यह वेतन पैकेज के पुनर्गठन के बारे में सोचने का समय है, इससे वित्तीय संकट और बढ़ जाएगा।

वीरेंद्र सिंह ने गुरुवार को डॉक्टरों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) से मुलाकात की, जिसके बाद गहलोत ने डॉक्टरों से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से बात करने को कहा। हालांकि, डोटासरा ने डॉक्टरों के सुझावों को सुनने के लिए एक समिति गठित करने का सुझाव दिया है।PCC प्रमुख ने कहा कि विधेयक के वापस लेने की कोई संभावना नहीं है; हालांकि राज्य सरकार बातचीत की सुविधा दे सकती है।

इस बीच, राजस्थान उच्च न्यायालय (Rajasthan High Court) ने शुक्रवार को जारी हड़ताल पर राज्य सरकार, आंदोलनकारी डॉक्टर एसोसिएशन और राजस्थान मेडिकल काउंसिल को नोटिस जारी किया है।प्रमोद सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति अनिल उनमान की खंडपीठ ने सरकार से गतिरोध खत्म करने के लिए डॉक्टरों के साथ हुई बातचीत को 11 अप्रैल को होने वाली अगली सुनवाई में पेश करने को कहा है।

इस याचिका में अदालत से हड़ताल पर गए डॉक्टरों के लाइसेंस/पंजीकरण को रद्द करने और हड़ताल का समर्थन करने वाले निजी डायग्नोस्टिक केंद्रों की मान्यता रद्द करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है।याचिका में कहा गया है कि डॉक्टरों की हड़ताल के कारण राजस्थान में स्वास्थ्य संकट है जिससे कुछ मरीजों की मौत हो रही है।

राजस्थान देश का पहला राज्य है जिसने स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक जैसा कानून बनाया है जिसके तहत न तो सरकारी अस्पताल और न ही निजी अस्पताल किसी भी व्यक्ति को आपातकालीन उपचार से मना कर सकते हैं।विधेयक में आपातकालीन उपचार की बात कही गई है जिसमें दुर्घटना देखभाल, सांप के काटने और बच्चे के जन्म की सेवाएं शामिल हैं, जिसके लिए रोगी निकटतम स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं।

याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं (health care providers) को इन खर्चों की प्रतिपूर्ति (Reimburse) करेगी। हालांकि, प्रदर्शनकारियों (डॉक्टरों) ने दावा किया कि बिल मरीजों की ज्यादा मदद नहीं करता है, लेकिन डॉक्टरों और अस्पतालों को दंडित करता है।बिल को लेकर सबसे बड़ा विवाद इसके इमरजेंसी में इलाज के प्रावधान पर है। बिल में कहा गया है कि सभी निजी और सरकारी अस्पतालों में बिना किसी प्रीपेमेंट के आपातकालीन इलाज किया जाएगा।

IMA के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शरद कुमार अग्रवाल ने कहा कि स्वास्थ्य प्रत्येक नागरिक का अधिकार है, हालांकि नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। चूंकि वे ऐसा करने में असमर्थ हैं, इसलिए वे डॉक्टरों पर दारोमदार डाल रहे हैं।अधिनियम में उल्लेख है कि सरकार अस्पतालों की प्रतिपूर्ति (reimburse) करेगी, लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह धनराशि कैसे और कब वापस आएगी, इस पर कोई स्पष्टता (clarity) नहीं है।

जयपुर एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अमित यादव ने कहा, बिल से जुड़ी कई समस्याएं हैं। एक, जब वे कहते हैं कि अस्पतालों को आपातकालीन सेवा प्रदान करनी है, तो उन्होंने यह परिभाषित नहीं किया है कि आपातकाल क्या है।

हालांकि, डॉक्टर-राज्य सरकार के इस गतिरोध के बीच सबसे ज्यादा परेशानी गरीब मरीजों को होती दिख रही है क्योंकि उनके पास न तो आस-पास के राज्यों में जाने के लिए संसाधन हैं और न ही वे अपनी दैनिक नौकरी छोड़ सकते हैं।

इस बीच कुछ डॉक्टर ऐसे भी हैं जो भारी कीमत पर मरीजों को पिछले दरवाजे से प्रवेश की अनुमति दे रहे हैं। यहां तक कि एक मिनट के डायग्नोस्टिक टेस्ट के लिए भी बाजार मूल्य से पांच गुना अधिक शुल्क लिया जा रहा है।

राजस्थान के लिए 21 मार्च का दिन ऐतिहासिक दिन था, जब गहलोत सरकार का बहूप्रतीक्षित राइट टू हेल्थ बिल (Right To Health Bill) काफी मशक्कत के बाद विधानसभा से पारित हुआ था। प्राइवेट डॉक्टरों के लगातार विरोध करने के बावजूद अब राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां जनता के पास स्वास्थ्य के अधिकार हैं।

इस बिल के कानून बनने के बाद अब प्रदेश में कोई भी सरकारी और प्राइवेट अस्पताल (Rajasthan’s Government And Private Hospitals) किसी मरीज को इलाज से मना नहीं कर सकते हैं और अस्पतालों में हर व्यक्ति को इलाज की गारंटी मिलेगी।

बिल में प्रावधान है कि मरीज की इमरजेंसी हालत में प्राइवेट हॉस्पिटल को भी फ्री में इलाज देना होगा। इसके अलावा प्राइवेट हॉस्पिटलों में इमरजेंसी इलाज में आने वाले खर्चे का सरकार एक अलग से फंड तैयार करेगी। मरीज की शिकायतों के लिए जिला और राज्य स्तर पर एक प्राधिकरण भी बनाया जाएगा।

बिल के मुताबिक सरकार एक्ट शुरू होने के 6 महीने के अंदर कम्प्लेंट रिड्रेसल सिस्टम (Complaint Redressal System) क्रिएट करेगी जिसके तहत कोई भी मरीज अपनी शिकायत को उक्त संस्था यानि अस्पताल के इंचार्ज को पूरे दस्तावेजों के साथ लिखित में शिकायत कर सकता है। बिल पर आपत्ति में पहले ऑनलाइन सिस्टम के जरिए शिकायत करने का प्रावधान था।

यदि शिकायत पर 3 दिन के भीतर निवारण नहीं होता है तो मामला फिर जिला शिकायत निवारण प्राधिकरण (District Grievance Redressal Authority) के पास भेजा जाएगा। जिला प्राधिकरण के सदस्य उस शिकायत पर 30 दिन के भीतर समाधान करेंगे और शिकायतकर्ता को बुलाकर समाधान निकालने का प्रयास किया जाएगा।

राइट टू हेल्थ बिल को लेकर डॉक्टरों द्वारा आज हड़ताल का 13वां दिन है। वहीं, इससे पहले भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चिकित्सकों से अपील की थी। उन्होंने कहा था कि RTH को लेकर आपको भ्रमित किया जा गया है।

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