अंबाला. दुकानों से लोग अपना सामान निकाल रहे हैं. चेहरे पर नाखुशी है और दिल में गुस्सा भी है. दिमाग में एक ही सवाल उठ रहा है कि अब उनकी रोजी रोटी कैसे चलेगी. सोफे और दूसरा सामान निकाल रहे लोगों को फिलहाल, भगवान से ही आस है. कहानी हरियाणा के अंबाला छावनी के तोपखाना परेड इलाके की है. यहां पर कैंटोनमेंट बोर्ड की टीम ने कई दुकानों को सील कर दिया है. Local 18 ने मौके से ग्राउंड रिपोर्ट की.
दरअसल, तोपखाना परेड इलाका अंग्रेजों के जमाने से बसा हुआ है. लेकिन अब कंटोनमेंट बोर्ड ने इसे खाली करवा दिया है और कहा कि जमीन पर लोगों ने कब्जा किया है. बीते कई दिनों से यहां पर रह रहे लोग मालिकाना हक को लेकर सीएम नायब सिंह सैनी और कैंटोनमेंट बोर्ड के कई अधिकारियों से मिल चुके हैं. लोगों ने कहा कि 182 साल पहले यह इलाका बसा था।
ब्रिटिशकाल ने अंग्रेजों ने यहां लोगों को बसाया गया था. लेकिन अब वह बेघर हो गए हैं.जानकारी के अनुसार, अंग्रेजी काल में लोग यहां पर सब्जियां उगाकर ब्रिटिश फौज को दिया करते थे और इससे उनका गुजारा होता था. हालांकि, अब कैंटोनमेंट बोर्ड प्रशासन की ओर से इस जगह को अपनी बताकर दुकानों को सील कर दिया है.
लोगों ने लोकल-18 को बताया कि कैंटोनमेंट बोर्ड ने कहा है कि यह उनकी जगह है और वह अपनी जगह वापस ले रहे हैं. तोपखाना परेड के निवासियों ने बताया कि वह इस जगह पर लगभग 182 साल से रह रहे थे. उनके बुजुर्ग पहले यहां पर खेती किया करते थे. अब दुकान बनाकर यहां पर अपना व्यापार कर अपना पेट पाल रहे थे. इस जगह पर लगभग 15000 से भी ज्यादा लोग रहते हैं. हालांकि, कैंटोनमेंट बोर्ड ने अब उनकी दुकानें सील की कर दिया है और अब रोजगार को लेकर संकट छा गया है.
लोगों ने कहा कि दुकान सील होने के बाद हम बेरोजगार हो जाएंगे और अपने बच्चों का पेट हम किस तरह से हम भरेंगे. परेड निवासियों ने बताया कि कुछ दिन पहले वह मालिकाना हक को लेकर अंबाला कैंट से पैदल यात्रा करते हुए चंडीगढ़ सीएम निवास पर भी गए थे और सीएम नायब सिंह सैनी से मालिकाना हक के लिए अपील की थी. उन्होंने बताया कि फिलहाल कोर्ट में भी उन्होंने इस जगह के मालिकाना हक के लिए अपील की है और इस मामले में अगली तारीख लगने वाली है.
महिलाओं ने बताया कि लगभग 180 साल से वह जगह पर रह रहे थे और अब सरकार को हमें इस जगह का मालिकाना हक दिया जाना चाहिए. क्योंकि इस जगह पर स्कूल बने हुए हैं और बच्चे पढ़ाई करने के लिए स्कूल में जाते हैं, और ऐसे में अगर हमसे यह जमीन छीनी जाती है तो हम किस स्थान पर अपना जीवन बिताएंगे. एक शख्स ने बताया कि यहां पर सरकारी स्कूल भी है. जो कि सरकार ने ही खोला है. उन्होंने कोई कब्जा यहां नहीं किया था.