नए संसद भवन में रखा जाएगा ‘सेंगोल’

नई दिल्ली:भारत के नए संसद भवन को लेकर सियासी संग्राम जारी है। हालांकि, केंद्र सरकार इस समारोह को भव्य बनाने में जुटी हुई है, लेकिन विपक्षी दल इस उद्घाटन समारोह का विरोध कर रहे हैं। इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन होगा और इस दौरान ‘सेंगोल’ को स्थापित किया जाएगा। ऐसे में भारत के ‘राजदंड’ सेंगोल का अचानक नाम सामने आने के बाद इसे लेकर चर्चाएं होने लगी है कि आखिर सेंगोल क्या है, जिसे नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा।

दरअसल, ‘राजदंड’ सेंगोल भारत की स्वतंत्रता से जुड़ा एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रतीक है। जब अंग्रेजों ने भारत की आजादी का एलान किया था तो सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल का इस्तेमाल किया गया था। लॉर्ड माउंटबेटन ने 1947 में सत्ता के हस्तांतरण को लेकर नेहरू से सवाल पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए। इसके बाद नेहरू ने सी राजा गोपालचारी से राय ली। उन्होंने सेंगोल के बारे में जवाहर लाल नेहरू को जानकारी दी। इसके बाद सेंगोल को तमिलनाडु से मंगाया गया और ‘राजदंड’ सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था।

बता दें कि नए संसद भवन में सेंगोल को स्पीकर के आसन के पास लगाया जाएगा। गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उचित स्थान कोई हो ही नहीं सकता। इसलिए जब संसद भवन देश को समर्पण होगा, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी बड़ी विनम्रता के साथ तमिलनाडु से आए सेंगोल को स्वीकार करेंगे और लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे।

सेंगोल का इतिहास सदियों पुराना है। इसका रिश्ता चोल साम्राज्य से रहा है। इतिहासकारों की मानें तो चोल साम्राज्य में राजदंड सेंगोल का इस्तेमाल सत्ता के हस्तांतरण के लिए किया जाता था। उस दौर में जब सत्ता हस्तांतरित होती थी, जो मौजूदा राजा दूसरे राजा को सेंगोल सौंपता था। इस परंपरा की शुरूआत चोल साम्राज्य में हुई थी। दक्षिण भारत के राज्यों में इसको खास महत्व दिया जाता है।

तमिल में इसे सेंगोल कहा जाता है और इसका अर्थ संपदा से संपन्न और ऐतिहासिक है। सेंगोल संस्कृत शब्द ‘संकु’ से लिया गया है, जिसका मतलब शंख है। सनातन धर्म में शंख को बहुत ही पवित्र माना जाता है। मंदिरों और घरों में आरती के दौरान शंख का इस्तेमाल आज भी किया जाता है।

बता दें कि सेंगोल को को इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और अब नए संसद भवन में ले जाया जाएगा। अमित शाह ने बताया कि यह सेंगोल वही है जो स्वतंत्रता के समय पूर्व पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू को दिया गया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 की रात लगभग 10:45 बजे तमिलनाडु के अधिनाम के माध्यम से सेंगोल को स्वीकार किया। जिसके बाद इसका इस्तेमाल सत्ता हस्तांतरण के लिए किया गया।

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