पूर्वजों के सम्मान व श्रद्धा का प्रतीक है श्राद्ध

देहरादून: पूर्वजों के सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक श्राद्ध पक्ष शनिवार से (आज) शुरू हो गए हैं। दोपहर तीन बजकर 29 मिनट तक पूर्णिमा में श्राद्ध किया जा सकेगा।

इसके बाद प्रतिपदा में श्राद्ध शुरू हो जाएगा। जोकि शनिवार दोपहर एक बजकर 19 मिनट तक रहेगा। 25 सितंबर यानी सर्वपित अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष चलेगा। इन 16 दिनों के दौरान पितरों के निमित्त घरों में तर्पण व नदी तट पर पिंडदान किया जाएगा।

हिंदू धर्म में वैदिक परंपरा के अनुसार अनेक रीति-रिवाज व व्रत-त्योहार हैं। इसी के तहत पितरों का श्राद्ध भी किया जाता है।वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है, लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़े में श्राद्ध कर्म करने का विशेष विधान है।

जो शनिवार को किसी कारणवश प्रतिपदा का श्राद्ध नहीं कर पाएं, वह रविवार दोपहर 1 बजकर 19 मिनट से पहले तक कर सकते हैं। इसके बाद द्वितीय श्राद्ध शुरू हो जाएगा। द्वितीय से 25 सितंबर तक श्राद्ध तिथिवार रहेंगे।श्राद्ध का मतलब अपने कुल देवताओं व पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना है।

मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में पितृ पितृलोक से किसी न किसी रूप में अपने स्वजन से मिलने के लिए धरती पर आते हैं और भोजन व भाव ग्रहण करते हैं।पिंडदान, तर्पण कर्म और ब्राह्मण को भोजन कराने से पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

जानिए कब कौन सा श्राद्ध
10 सितंबर- पूर्णिमा / प्रतिपदा
11 सितंबर- प्रतिपदा, द्वितीया
12 सितंबर- तृतीया
13 सितंबर- चतुर्थी
14 सितंबर- पंचमी
15 सितंबर- षष्ठी
16 सितंबर- सप्तमी
17 सितंबर- अष्टमी
18 सितंबर- नवमी
19 सितंबर- दशमी
20 सितंबर- एकादशी
21 सितंबर-द्वादशी
22 सितंबर- त्रयोदशी
23 सितंबर- चतुर्दशी
24 सितंबर- पंचमी
25 सितंबर- अमावस्या

आचार्य डा. सुशांत के मुताबिक पूर्णिमा तिथि पर उन्हीं का श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन पूर्णिमा पर हुआ हो। जबकि जिस व्यक्ति की मृत्यु किसी महीने के शुक्ल व कृष्ण पक्ष की जिस तिथि को होती है उसका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को दिया जाता है।किसी को अपने- अपने पूर्वजों के निधन की तिथि का पता न होने की स्थिति में अश्विन अमावस्या को कर सकते हैं। अकाल मृत्यु या दुर्घटना का शिकार व्यक्ति का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है।

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