जिंदा है 20 अरब साल पुराना ‘राक्षस’!

जापान :धरती के अंदर से मिला 20 अरब साल पुराना जीव वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बन गया है. जापान के वैज्ञानिक इस खोज से हैरान हैं कि आखिर इतने सालों बाद भी यह ‘राक्षस’ आज तक कैसे जिंदा है.जापान के लोहे से भरपूर 5 गर्म पानी के झरनों में वैज्ञानिकों को ऐसे छोटे जीवों का समुदाय मिला जो 2.3 अरब साल पहले धरती पर थे. ये जीव कम ऑक्सीजन और ज्यादा आयरन वाले माहौल में जीवित रहते थे जो महासागरों जैसा था. ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट के समय ये जीवों ने बदलाव झेला था. ये खोज प्राकृतिक प्रयोगशाला की तरह काम करती है.2.3 अरब साल पहले ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट हुआ जब वायुमंडल में ऑक्सीजन अचानक बढ़ गई. ये सायनोबैक्टीरिया की वजह से था जो फोटोसिंथेसिस से ऑक्सीजन बनाते थे. इससे ज्यादातर पुराने जीव खत्म हो गए लेकिन कुछ एडाप्ट हो गए. ये इवेंट धरती के जीवन को बदलने वाला था.

माहौल बदलने से ज्यादातर जीव खत्म हो गए लेकिन एक छोटा ग्रुप बच गया जो आयरन को एनर्जी सोर्स बनाकर जीवित रहा. जापान के झरनों में आज भी ऐसे जीव मिले जो पुराने माहौल को मैच करते हैं. ये झरने कम ऑक्सीजन ज्यादा आयरन और न्यूट्रल pH वाले हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि ये झरने रहस्य सुलझाने की चाबी हैं.जापान के ये गर्म झरने मिट्टी और पानी की खास स्थिति पैदा करते हैं जो बहुत कम जगहों पर मिलती है. यहां आयरन बहुत ज्यादा है ऑक्सीजन बहुत कम और pH नॉर्मल है. ये माहौल 2.3 अरब साल पुराने समुद्रों जैसा था. शोध माइक्रोब्स एंड एनवायरनमेंट में छपा है.

वैज्ञानिकों ने झरनों से 200 से ज्यादा छोटे जीवों के जीन निकाले और जांच की. चार झरनों में आयरन खाने वाले जीव डोमिनेंट मिले जो फेरस आयरन को एनर्जी बनाते हैं. सायनोबैक्टीरिया भी थे लेकिन कम संख्या में जो ऑक्सीजन बनाते हैं. एक झरने में नॉन-आयरन मेटाबॉलिज्म डोमिनेंट था.ये आयरन ऑक्सीडाइजिंग जीव सायनोबैक्टीरिया और ऐनरोबिक जीवों के साथ शांतिपूर्वक रहते हैं. सभी मिलकर कार्बन नाइट्रोजन और सल्फर चक्र चलाते हैं. ये ट्रांजिशनल इकोसिस्टम दिखाते हैं जहां जीवन वेस्ट प्रोडक्ट को एनर्जी में बदल लेता है. ये पुराने जीवन की तरह काम करते हैं.

शॉन मैकग्लिन ने कहा कि ये झरने प्राकृतिक लैब हैं जो आर्कियन और प्रोटेरोजोइक युगों के माइक्रोबियल इकोलॉजी को समझाते हैं. ये आयरन और ट्रेस ऑक्सीजन से एनर्जी लेते थे न कि सनलाइट से. ये अध्ययन जीवन की शुरुआत और एडाप्टेशन को रिवील करता है. ये स्पेस मिशन्स के लिए भी क्लू देता है.खोज में पैटर्न मिला जहां आयरन खाने वाले जीव सबसे ज्यादा थे जो ऑक्सीजन बनाने वालों के साथ को-एग्जिस्ट करते हैं. ये सभी चक्रों को बैलेंस करते हैं जो पुराने इकोसिस्टम जैसा है. पांचवें झरने में अलग संरचना मिली जिसकी आगे जांच होगी. ये दिखाता है कि जीवन एक्सट्रीम कंडीशंस में कैसे सर्वाइव करता है.

ये खोज ऑक्सीजन बढ़ने पर जीवों के एडाप्टेशन को समझाती है जो आयरन को एनर्जी बनाकर बचे. ये धरती के अतीत के अलावा स्पेस में जीवन सर्च को प्रभावित करेगी. मार्स जैसे प्लैनेट्स पर आयरन-रिच लो ऑक्सीजन एनवायरनमेंट्स में जीवन पॉसिबल हो सकता है. ये सस्टेनेबल सॉल्यूशंस के लिए क्लू देती है.वैज्ञानिक और झरनों की स्टडी करेंगे ताकि प्राचीन जीवन को बेहतर समझ सकें. ये GOE के ट्रांजिशन को डीकोड करेगा जहां जीवन ने वेस्ट को रिसोर्स बनाया. सिटिजन साइंस और लैब टेस्ट्स से नई डिस्कवरी होंगी. ये क्लाइमेट चेंज के रिस्क को भी हाइलाइट करता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *