ऋषिगंगा जल प्रलय की भयावहता: कई गांवों के घराें में पड़ी दरार

चमोली:गौरा देवी ने जंगल बचाने के लिए आंदोलन किया था। उनका कहना था कि जंगल बचने से जल और जमीन भी खुद ही बच जाते हैं। 47 साल पहले गौरा देवी ने रैणी गांव के जंगल को बचाने के लिए चिपको आंदोलन चलाया था। तब इस अनोखे आंदोलन से यह गांव विश्व पटल पर आ गया था। आज भी इस आंदोलन की मिसाल दी जाती है, लेकिन अब इसी रैणी गांव के लोग यहां नहीं रहना चाहते। वह सरकार से पुनर्वास की मांग कर रहे हैं।

इस आंदोलन की धरती के लोग अपनी इस जमीन को छोड़कर कहीं और बसना चाहते हैं। उन्होंने सरकार से उन्हें कहीं और बसाने की मांग की। रैणी गांव के ग्राम प्रधान भवान राणा का कहना है कि गांव में लोग डर रहे हैं। स्थिति यह है कि कई घरों में दरारें पड़ी हुईं हैं। अब कोई दूसरी आपदा न आ जाए, लोगों को इसका डर सता रहा है। खुद गौरा देवी की सहेली रही उखा देवी भी गांव के पुनर्वास की मांग कर रही हैं। उन्होंने कहा कि गांव में कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। उनका गांव ऋषि गंगा से करीब 500 मीटर की दूरी स्थित है। गांव के नीचे नदी ने कटान कर दिया है। इससे भविष्य में खतरा हो सकता है।

वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉक्टर कालाचांद सांईं की अगुवाई में संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम ने नीती घाटी में आई भयावह प्राकृतिक आपदा के उद्गम स्थल का एरियल सर्वे कर तमाम अहम जानकारियां जुटाई हैं। इतना ही नहीं संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम ने उद्गम स्थल का एरियल सर्वे करने के साथ ही उन तमाम इलाकों का भी एरियल सर्वे किया, जहां आपदा के बाद भारी तबाही हुई है। आपदा से हुई तबाही को देखकर संस्थान के वैज्ञानिक भी हैरान है।

चमोली आपदा को लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के की ओर से डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी यानी डीएसटी को प्रथम दृष्टया रिपोर्ट सौंप दी गई है। वाडिया इंस्टीट्यूट की ओर से डीएसटी को भेजी गई रिपोर्ट में बताया कहा गया है कि चमोली के नीती घाटी में भारी भरकम चट्टानों के साथ ही हैंगिंग ग्लेशियर के टूटने और लाखों टन बर्फ नीचे खिसकने की वजह से भयावह आपदा आई।

वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचांद साईं की ओर से डीएसटी को भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि 5600 मीटर की ऊंचाई से हजारों टन वजनी चट्टानों के साथ ही हैंगिंग ग्लेशियर के टूटने व लाखों टन बर्फ के नीचे खिसकने से ना सिर्फ भयावह आपदा आई, वरन नीचे घाटी में कुछ समय के लिए अस्थाई तौर पर झील का भी निर्माण हो गया। लेकिन पहाड़ की ऊंचाई से आपदा उद्गम स्थल से लगातार आ रहे मलबे के चलते नीचे बहुत अधिक दबाव बन गया जिसकी वजह से अस्थाई तौर पर बनी झील टूट गई और फिर नीचे हिस्से में भयावह ह तबाही मच गई।

रिपोर्ट के मुताबिक ऊपर से आए लाखों टन मलबे की वजह से धौलीगंगा व ऋषिगंगा नदियों पर बने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पूरी तरह से तबाह हो गए। वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ कालाचॉद सांईं का कहना है कि संस्थान के वैज्ञानिकों की टीमें फिलहाल चमोली में ही है और आपदा से जुड़े तमाम पहलुओं का विस्तृत अध्ययन कर रही है। वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे अध्ययन के बाद विस्तृत रिपोर्ट डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टतेक्नोलॉजी के सौंपी जाएगी। रिपोर्ट में इस बात का भी सुझावे दिया जाएगा कि आखिरकार ऐसी आपदाओं को रोकने को लेकर क्या क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

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