एक मरती नदी की छटपटाहट

उदय दिनमान डेस्कः यमुना का अपना दर्द है, जो छलक पड़ा है. यही दर्द तटबंध तोड़कर सड़कों पर बह रहा है, घरों में घुस रहा है. ये दर्द एक मरती नदी की छटपटाहट है. नदी अपने बगल में बसे शहरों की लाइफलाइन होती है, लेकिन दिल्ली यमुना का गला दबाती रही है. यमुना पर ये सितम सदियों से हो रहा है.

नतीजा नदी अपनी जान बचाने के लिए वापस लड़ती है. किसी साल पूरी ताकत से, किसी साल जरा मद्धम. आज जब मैं नोएडा से दिल्ली के अपने दफ्तर जा रहा था, तो सड़कों के किनारे हजारों परिवार दिखे. ऐसा लगा जैसे नदी इनका बोझ सह न सकी और बाहर फेंक दिया है. लेकिन यमुना किनारे अवैध रूप से रह रहे ये लोग तो बड़ी बीमारी के छोटे लक्षण हैं.

गाद और गंदगी के बोझ से नदी व्याकुल है. बीमार नदी अपना इलाज चाहती है. नहीं मिलता तो बिलखती है, चीखती है, चिल्लाती है. एक ऐतिहासिक नदी की धमनियों से ‘लहू’ निकाल लिया गया है. एक पौराणिक नदी को नाले में बदल दिया गया है. ठीक कालीदास की तरह दिल्ली ने उस टहनी को काटा है, जिसपर वो बैठी है. हजार बातें हुईं, लेकिन आज भी साल के ज्यादातर हिस्से में यमुना एक गंदा नाला नजर आती है.

दिल्ली का गंदा पानी उसमें गिरता है. पानी नहीं होने के कारण उसमें गाद भरता जाता है. कभी गर्मियों में देख लीजिए, यमुना में सतह तक गाद भरा नजर आएगा. तो जब ज्यादा बारिश हो जाए या पहाड़ों से ज्यादा पानी आ जाए तो कहां बहे?

नदी में पानी के लिए जगह नहीं तो वो बाहर उफनती है. लेकिन वहां भी इंसानों की लालसा का घर बना है. 17वीं सदी में यमुना के इलाके का अतिक्रमण कर लाल किला बनाया, अंग्रेजों ने सिविल लाइन्स बसाया. आजाद भारत में नोएडा से ओखला बराज तक यमुना की सीमा का उल्लंखन दिखता है.

हम एक तरफ यमुना को बचाने का स्वांग करते रहे, दूसरी तरफ कभी यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन बनाया, कभी अक्षरधाम तो कभी कॉमनवेल्थ विलेज बनाया. यमुना किनारे अवैध निर्माण यमुना के नाम पर चलाई जा रही योजनाओं को मुंह चिढ़ाते हैं और हम मुंह मोड़े रहते हैं.

नदी का प्राकृतिक डूब क्षेत्र जो कभी 5-10 किलोमीटर होता था उसे कुछ सौ मीटर तक समेट दिया गया और कुछ जगहों पर तो चंद मीटर. फिर आप कहें कि यमुना के किनारे बसे इलाकों में बाढ़ आ गई. ये यमुना का इलाका था, वो जगह जहां जरूरत पड़ने पर यमुना अपनी बाहें फैला सके,

अंगड़ाई ले सके. नदी सीखचों में बांध दी गई. ज्यादा बारिश होती है, यमुना को अपने घर हिमालय से ताकत मिलती है, उसकी मां यमुनोत्री ऊर्जा देती है तो वो जी उठती है और अपना इलाका वापस पाना चाहती है.

इसे बाढ़ क्यों कहते हैं? जुल्म की भी इंतेहा होती है. यमुना को इतना सताएंगे तो वो बगावत करेगी. दिल्ली वालों के इस दर्द में यमुना का दर्द भी टटोलिए, तभी इस दर्द की दवा होगी.

(संतोष कुमार पिछले 25 साल से पत्रकारिता से जुड़े हैं. डिजिटल, टीवी और प्रिंट में लंबे समय तक काम किया है. राजनीति समेत तमाम विषयों पर लिखते रहे हैं.)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *