मातृभाषा का सवाल भाषा से ज्यादा लिपि और माध्यम का सवाल 

उदय दिनमान डेस्कः अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य पर रामजस महाविद्यालय, एक सप्ताह का ’मातृभाषा अमृतोत्सव’ आयोजित किया जा रहा है। 21 से 28 फरवरी 2023 तक चलने वाले इस मातृभाषा अमृतोत्सव में भारत की सभी भाषाओं पर भाषाविदों के साथ मातृभाषा में शिक्षा एवं शिक्षण की चुनौतियों और संभावनाओं पर विचार विमर्श होगा। इस वैचारिक मंथन का शुभारंभ अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस यानि 21 फरवरी को रामजस महाविद्यालय के सभागार में हुआ।

रामजस कॉलेज के सभागार में आयोजित इस संगोष्ठी की अध्यक्षता रामजस महाविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. प्रीतम शर्मा ने की और वक्ता के रूप में डॉ. राकेश सिंह (पूर्व सलाहकार, भारतीय भाषा समिति) एवं प्रो. चौडुरी उपेंद्र राव (पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत एवं प्राच्यविद्या अध्ययन केंद्र, जेएनयू) ने अपने विचार रखे।
इस कार्यक्रम का आरम्भ प्राचार्य प्रो. मनोज कुमार खन्ना के स्वागत वक्तव्य से हुआ।

उन्होंने अतिथि विद्वानों का रामजस कॉलेज में स्वागत करते हुए कहा कि हम सभी को मातृभाषा के महत्व को समझना चाहिए शिक्षण का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए जैसे की कई यूरोपीय देशों में है। साथ ही उन्होंने भाषा संगम ऐप के जरिए अन्य भारतीय भाषाओं से जुड़ने के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित किया। इसी कड़ी में प्रो. चौडुरी उपेंद्र राव ने कहा कि मातृभाषा मातृ दुग्ध के समान है। संस्कृति की रक्षा हेतु सभी भाषाओं का संरक्षण जरूरी है। भारतीय ज्ञान परम्परा को समझना है तो भारतीय भाषाओं को समझना होगा।

उन्होंने आगे कहा कि हम भारतीयों के पास समृद्ध भाषा व्यवहार और शब्द भंडार है। आज जरूरत उसे समझकर उपयोग में लाने की है। किसी भी देश की उन्नति के लिए विदेशी या अंग्रेजी भाषा की आवश्यकता नहीं है, जैसे चीन और जापान आज जीडीपी में हम से ऊपर है जबकि इन दोनों देशों ने अपनी मातृ भाषा को ही ज्ञान विज्ञान एवं व्यवहार की भाषा के रूप में ग्रहण किया।

इसी कड़ी डॉ. राकेश सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि मातृभाषा का सवाल राजनीति का सवाल नहीं है बल्कि शिक्षा और माध्यम का सवाल है। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का जिक्र करते हुए कहा कि यह सरकार भारतीय भाषाओं में शिक्षा व शिक्षण को लेकर प्रतिबद्ध है। अभी 121 भारतीय भाषाओं में से कई भाषाओं में शिक्षण के लिए पाठ्यक्रम तैयार किए जा चुके हैं।

यह सरकार मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी और डिजिटल उपकरणों का भी प्रयोग कर रही है। डॉ. सिंह ने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा कि मातृभाषा का अर्थ सिर्फ हिन्दी नहीं है बल्कि इसमें तमाम भारतीय भाषाओं को समाहित करना अति आवश्यक है।

समस्त भारतीय भाषाओं को शिक्षण का माध्यम बना दिया जाए तो निश्चित ही मातृभाषाओं के विलुप्त होने की आशंका समाप्त हो जाएगी लेकिन दुर्भाग्य से विश्वविद्यालयों के भाषा विभागों ने ही भाषा का सबसे ज्यादा नुकसान किया है। इसके बाद अध्यक्षीय व्याख्यान में डॉ. प्रीतम शर्मा ने मातृभाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि अपनी मातृभाषा में बोलना एक तरह का गर्व महसूस करना है। हमको अधिक से अधिक अपनी मातृभाषा को व्यवहार में लाना चाहिए।

कार्यक्रम के अंत में संस्कृत विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. साहिब सिंह ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि – “निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नत को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. निर्भय कुमार ने किया। आयोजन कर्ताओं में डॉ. नीलम सिंह, डॉ. वंदना, डॉ. सतेंद्र शुक्ल एवं डॉ. प्रकाश चन्द्र थे। इस मौके पर सभागार में बड़ी संख्या में कॉलेज के अन्य विभागों के शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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